सम्पादकीय

जम्मू कश्मीरः बातचीत की पहल

Triveni
21 Jun 2021 4:06 AM GMT
जम्मू कश्मीरः बातचीत की पहल
x
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर विचार-विमर्श करने के लिए बुलाई जा रही बैठक बेहद अहम है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर विचार-विमर्श करने के लिए बुलाई जा रही बैठक बेहद अहम है। 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के तहत दिया गया विशेष दर्जा समाप्त किए जाने के बाद से यह पहला मौका है, जब जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों या नेताओं को केंद्र सरकार की ओर से बातचीत के लिए बुलाया गया हो। स्वाभाविक ही इस प्रस्तावित बैठक को लेकर राजनीतिक गहमागहमी देखी जा रही है। हालांकि किसी भी दल की ओर से अभी बैठक को लेकर रुख औपचारिक रूप से स्पष्ट नहीं किया गया है, लेकिन आम तौर पर इसे सकारात्मक कदम माना जा रहा है। ज्यादातर नेता औपचारिक निमंत्रण मिलने से पहले ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि वे बातचीत के खिलाफ नहीं हैं और अगर उन्हें बुलाया गया तो वे बैठक में शामिल होकर अपनी बात रखना चाहेंगे। इससे इतना तो साफ हो ही जाता है कि किसी एक या दूसरे दल का रुख चाहे जो भी हो, पर यह पहल जम्मू-कश्मीर के आम लोगों की मन:स्थिति से मेल खाती है। वे चाहते हैं कि राजनीतिक संवाद शुरू हो और लोकतांत्रिक प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाए।

जहां तक बैठक के अजेंडे का सवाल है तो अभी औपचारिक तौर पर कुछ भी साफ नहीं है, लेकिन बैठक में बुलाए गए नेताओं के लिए फिलहाल सबसे बड़ा मुद्दा जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा वापस दिलाना है। स्वाभाविक है कि यह मसला बातचीत में उभरेगा। कुछ पार्टियां अनुच्छेद 370 को फिर से बहाल करने की बात भी कर सकती हैं। लेकिन जो कुछ भी होगा, उससे प्रधानमंत्री के साथ इस बैठक में जम्मू-कश्मीर के लोगों का मन खुलेगा। यह स्पष्ट होगा कि वे चाहते क्या हैं। हो सकता है इसमें यह भी स्पष्ट हो कि वे जो चाहते हैं उसे पूरा करने में सरकार के सामने किस तरह की दिक्कतें हैं। चर्चा यह भी है कि संभवत: इस बातचीत के जरिए राज्य में विधानसभा चुनावों की जमीन तैयार करने की कोशिश हो रही है। कुल मिलाकर देखा जाए तो बैठक के बाद क्या होगा और क्या नहीं होगा, जैसी कयासबाजी में उलझे बगैर भी इतना जरूर कहा जा सकता है कि इस बैठक के जरिए संवाद की जो प्रक्रिया शुरू की जा रही है, वह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। यही प्रक्रिया जम्मू-कश्मीर को सामान्य स्थिति की ओर ले जाएगी। इसीलिए इस एक बैठक में उभरी सहमति-असहमति पर जरूरत से ज्यादा जोर देने के बजाय यह सुनिश्चित करना ज्यादा जरूरी है कि राजनीतिक संवाद की यह प्रक्रिया अलग-अलग स्तरों पर जारी रहे और इसके आधार पर आपसी विश्वास और सद्भाव को बढ़ाने का प्रयास आगे बढ़ता रहे। पड़ोसी देशों द्वारा दुनिया भर में किए जा रहे दुष्प्रचार को बेअसर करने का भी यह सबसे बेहतर तरीका होगा।


Next Story