सम्पादकीय

जम्मू और कश्मीर: न जीत-न न्याय वाला 'केंद्र शासित क्षेत्र'

Rounak Dey
31 Oct 2021 1:52 AM GMT
जम्मू और कश्मीर: न जीत-न न्याय वाला केंद्र शासित क्षेत्र
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शांतिपूर्ण विरोध करने का संकल्प पैदा कर दिया होगा।

केंद्रीय गृहमंत्री पिछले हफ्ते 'केंद्र शासित क्षेत्र' जम्मू और कश्मीर के दौरे पर थे। पांच और छह अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने, जम्मू और कश्मीर राज्य (जिसमें लद्दाख भी शामिल था) का विभाजन करने और उसे दो केंद्र शासित क्षेत्रों-जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख में सीमित कर देने जैसे भड़काने वाले और विवादास्पद कदमों के बाद यह उनका पहला दौरा था। (संसद ने एक कानून पारित कर सरकार के इन फैसलों पर मुहर लगाई।)

हैरत है कि गृहमंत्री ने अगस्त, 2019 के बाद दो साल तक इस पूर्व राज्य का दौरा नहीं किया। इस बीच, अनेक मंत्रियों ने केंद्र शासित क्षेत्रों का दौरा किया, लेकिन लोगों ने उनका पूरी तरह से बहिष्कार किया। रक्षा मंत्री ने अपनी यात्राओं को रक्षा बलों के कब्जे वाले स्टेशनों और चौकियों तक ही सीमित रखा। कुल मिलाकर केंद्र सरकार ने इन दोनों केंद्र शासित क्षेत्रों को उपराज्यपालों और अधिकारियों के भरोसे छोड़ दिया।
तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक 31 अक्तूबर, 2019 तक प्रभारी रहे, जब तक कि जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन ऐक्ट, 2019 अमल में नहीं आ गया। पहले उपराज्यपाल जी सी मुरमू सात अगस्त, 2020 तक करीब सात महीने यहां रहे। मौजूदा उपराज्यपाल (मनोज सिन्हा) को एक साल से कुछ अधिक हो चुके हैं। मुझे यकीन है कि गृहमंत्री ने पाया होगा कि जम्मू और कश्मीर के प्रशासन में शायद ही कोई नेतृत्व हो।
नया नॉर्मल
* गृहमंत्री के प्रवास से पहले स्थिति के 'सामान्य' होने के कई दावे किए गए, जिनमें खुद वह भी शामिल थे। जम्मू और कश्मीर कितना 'सामान्य' है?
* गृहमंत्री के प्रवास से पहले सात सौ लोग हिरासत में लिए गए, जिनमें कुछ को कठोर पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट (पीएसए) के तहत पकड़ा गया;
* कुछ बंदियों को जम्मू और कश्मीर से बाहर की जेलों में भेजा गया;
* नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) ने आठ अन्य लोगों को आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के शक में गिरफ्तार किया गया (इस तरह गिरफ्तार किए जाने वालों की संख्या 13 हो गई);
* गृहमंत्री जिन सड़कों से गुजरने वाले थे, वहां स्नाइपर्स तैनात किए गए;
* श्रीनगर में परिवहन संबंधी बंदिशें लगाई गईं, जिसके तहत दोपहिया सवारों को गहन जांच का सामना करना पड़ा ( एक रिपोर्ट कहती है कि दोपहिया वाहनों पर 'रोक' लगाई गई थी।);
* गृहमंत्री ने जम्मू और कश्मीर में कर्फ्यू और इंटरनेट पर रोक को सही ठहराते हुए इसे 'अनेक जिंदगियों को बचाने के लिए कड़वी दवा' करार दिया;
* जम्मू और कश्मीर की अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में गृहमंत्री ने कहा कि जम्मू और कश्मीर को प्रति व्यक्ति सर्वोच्च अनुदान मिला, लेकिन यहां गरीबी कभी खत्म नहीं हुई (वह सरकारी आंकड़ों का ही खंडन कर रहे हैं, जिसके मुताबिक 2019 में जम्मू और कश्मीर में गरीबी की दर 10.35 फीसदी थी, जो कि श्रेष्ठ राज्यों में आठवें नंबर पर थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 21.92 फीसदी था);
* गृहमंत्री ने जोर देकर कहा, 'क्या पांच अगस्त, 2019 से पहले जम्मू और कश्मीर का युवा इस देश का वित्तमंत्री या गृहमंत्री बनने का सपना देख सकता था?' ( उनके दिमाग से यह बात जरूर निकल गई होगी कि मुफ्ती मोहम्मद सईद 1989-90 के दौरान भारत के गृहमंत्री थे);
* उन्होंने आलंकारिक ढंग से समापन किया, आतंकवाद खत्म हो गया है और पत्थरबाजी बंद है। (सर्वाधिक विश्वसनीय डाटा साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल में उपलब्ध है, जिसके मुताबिक 2014 से 2021 के बीच मौतों के आंकड़े इस तरह थेः नागरिक-306, सुरक्षा बल-523 और आतंकवादी/उग्रवादी-1428। वास्तव में अक्तूबर, 2021 तो पिछले दो महीनों में सबसे खराब था)
* अपने प्रवास के आखिरी दिन गृहमंत्री ने अपनी सरकार की नीति की घोषणा कीः 'डॉ. फारुख साहिब ने सलाह दी है कि मैं पाकिस्तान से बात करूं। यदि मैं बात करूंगा, तो सिर्फ जम्मू और कश्मीर के लोगों से और उसके युवाओं से, किसी और से नहीं।'
विजेता का न्याय
गृहमंत्री ने किसी भी राजनीतिक पार्टी के नेताओं से मुलाकात नहीं की; उन्होंने 'तीन परिवारों' की निंदा की, जिन्होंने जम्मू और कश्मीर को 'बर्बाद' कर दिया। चूंकि वहां कोई निर्वाचित विधायिका नहीं है, इसलिए उन्होंने किसी विधायक से मुलाकात नहीं की। कोई भी नागरिक समाज संगठन स्वेच्छा से उनसे मिलने नहीं आया। गृहमंत्री किसी से बात करने के इच्छुक ही नहीं थे, इसलिए हैरत नहीं हुई कि कोई भी उनसे बात करने का इच्छुक नहीं था।
वहां दरबार में सिर्फ गृहमंत्री और चापलूस नौकरशाहों के बीच संवाद हुआ। पीड़ादायक ढंग से यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार की जम्मू और कश्मीर की नीति विजेता के न्याय पर आधारित हैः (1) गुप्त रूप से जल्दबाजी में लाया गया असांविधानिक कानून;(2) ऐसी नौकरशाही जिसके बारे में कहा जा सकता है कि वह चापलूस है; (3) पीएसए जैसा बर्बर कानून; (4) ऐसे प्रतिबंध जो अभिव्यक्ति, आंदोलन, निजता, स्वतंत्रता और जीने के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों और कानून के राज पर अंकुश लगाते हों; (5) राज्य विधानसभा के चुनावों से पहले अनुचित लाभ के इरादे से परिसीमन की कवायद; (6) किसी भी परिस्थिति में पाकिस्तान से कोई बात नहीं।
प्रतिरोध को पुरजोर तरीके से रोकना
क्या यही सामान्य स्थिति और शासन है, मोदी सरकार का जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों के लिए? ऐसा लगता है, लेकिन एक बात स्पष्ट हैः ऐसी 'सामान्य स्थिति' और ऐसा 'शासन' जम्मू और कश्मीर में किसी राजनीतिक समाधान की ओर नहीं ले जाएंगे। यह स्वाभाविक है कि मोदी सरकार मानती है कि जम्मू और कश्मीर में कोई 'राजनीतिक मसला' नहीं है, यदि वहां ऐसा कोई मसला था भी, तो अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर उसका 'समाधान' कर लिया गया!
यदि मोदी सरकार इतिहास, ऐतिहासक तथ्यों, भारत और पाकिस्तान के बीच लड़े गए युद्धों, वादों, पिछली वार्ताओं ( गोलमेज बातचीत और रिपोर्ट्स) के नतीजों, राजनीतिक आकांक्षाओं, अतीत की ज्यादतियों, सरकार की उत्पीड़क कार्रवाइयों, सुरक्षा बलों की भारी-भरकम उपस्थिति और कानून के राज के निरंतर उल्लंघन को किनारे करती है, तो कोई सार्थक बातचीत नहीं हो सकती। गृहमंत्री दिलों को जीतने में सफल नहीं हुए; अनजाने में, उन्होंने लोगों के दिलों और दिमागों में संविधान की अपवित्रता और लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन का शांतिपूर्ण विरोध करने का संकल्प पैदा कर दिया होगा।

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