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आदित्य नारायण चोपड़ा; सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और जनजाति को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने को लेकर दायर याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। इससे पहले जस्टिस नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने सभी सम्बद्ध पक्षों की दलीलें सुनीं। केन्द्र ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपालन ने कहा है कि आजादी के करीब 75 वर्ष बाद भी एससी, एसटी के लोगों को उस स्तर पर नहीं लाया जा सका है, जहां अगड़ी जातियों के लोग हैं। एससी, एसटी वर्ग के लोगों को ग्रुप ए श्रेणी के उच्च पद प्राप्त करना मुश्किल है। अब समय आ गया है कि जब शीर्ष कोर्ट को एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग के रिक्त पदों को भरने के लिए ठोस आधार देना चाहिए।पदोन्नति में आरक्षण का मसला काफी जटिल और विवादास्पद रहा है। आरक्षण को लेकर सबसे पहले 1992 में इंदिरा साहनी जजमेंट आया था। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में एससी, एमटी समुदाय को दिए जा रहे आरक्षण पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए इसे 5 वर्ष के लिए लागू रखने का आदेश दिया था। इंदिरा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद भी यह मामला विवादों में है। हालांकि वर्ष 1995 में संसद ने 77वें संविधान संशोधन पारित करके पदोन्नति में आरक्षण जारी रखा था। इस संशोधन में यह प्रावधान किया गया कि केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को यह अधिकार है कि वह पदोन्नति में आरक्षण दे सकती है लेकिन यह मामला भी सर्वोच्च न्यायालय में चला गया। तब न्यायालय ने यह व्यवस्था दी कि इस संदर्भ में आरक्षण दिया जा सकता है लेकिन वरिष्ठता नहीं मिलेगी। इसके बाद 85वां संविधान संशोधन पारित किया गया और इसके माध्यम से परिणामी वरिष्ठता की व्यवस्था की गई। पदोन्नति में एससी-एसटी की तत्कालीन स्थिति नागराज और अन्य बनाम भारत सरकार वाद पर सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2006 के निर्णय के पश्चात पुनः बदल दी गई। नागराज और अन्य बनाम भारत सरकार संसद द्वारा किए गए 77वें और 85वें संशोधनों को सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों द्वारा चुनौती दी गई। न्यायालय ने अपने निर्णय में इन संवैधानिक संशोधनों को तो सही ठहराया किन्तु पदोन्नति में आरक्षण के लिए तीन मापदंड निर्धरित किए। इन तीन मापदंडों में पहला एससी और एसटी समुदाय को सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा होना चाहिए, दूसरा सार्वजनिक पदों पर एससी-एसटी समुदाय का पर्याप्त प्रतिनिधित्व न होना और तीसरा इस प्रकार की आरक्षण नीति का प्रशासन की समग्र दक्षता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।पदोन्नति में आरक्षण के विरोधियों और आलोचकों का मानना है कि आरक्षण का उद्देश्य सामाजिक स्तर पर सभी लोगों से समान व्यवहार करना है किन्तु पदोन्नति में इसे लागू करने से यह विपरीत कार्य करता है और पहले से समान स्तर पर मौजूद लोगों के साथ असमानता का व्यवहार करता है। रोजगार और पद प्राप्त करना सामाजिक भेदभाव की समाप्ति सुनिश्चित नहीं करता है। अतः पिछड़ेपन के आकलन के लिए एकमात्र साधन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। अलोचकों का यह भी मानना है कि सार्वजनिक पदों पर अरक्षण देने से यह प्रशासन की दक्षता में कमी ला सकता है। पदोन्नति में आरक्षण के समर्थक आरक्षण को एक प्रकार से सकारात्मक भेदभाव के रूप में देखते हैं। वे आरक्षण को सामाजिक अन्याय से सुरक्षा प्रदान करना मानते हैं।संपादकीय :सीमा पर चीन की बगुला भक्तिक्रिकेट, कश्मीर और पाकिस्तानजोखिम भरा है स्कूल खोलनाआइये मिलाएं क्लब की Life Lines सेपटाखे नहीं दीये जलाओशाह की सफल कश्मीर यात्रासुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा है कि वह एससी, एसटी को आरक्षण के लिए क्रीमीलेयर के मुद्दे पर विचार नहीं कर रही, वह सिर्फ इस बात पर विचार कर रही है कि क्या पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए उच्च पदों पर पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए संख्यात्मक आंकड़ा लाना जरूरी है? और या यह आरक्षण देने से प्रशासनिक दक्षता तो प्रभावित नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट केन्द्र सरकार और कई राज्यों की याचिकाओं पर भी विचार कर रही है, जिन्होंने पदोन्नति में आरक्षण देने की अनुमति मांगी है। केन्द्र सरकार ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 16 (4 ए) के तहत आरक्षित वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण दे सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में केन्द्र सरकार से उन कदमों की जानकारी मांगी थी जो केन्द्रीय नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का आंकलन करने के लिए उठाए गए हैं। पीठ ने सरकार से कहा है कि पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए साल 2006 के नागराज मामले में संविधान पीठ के फैसले का पालन करने के लिए की गई कवायद की जानकारी उपलब्ध करवाए। सुप्रीम कोर्ट की पीठ अब इस बात का फैसला करेगी कि नागराज मामले में दिए गए फैसले के अनुसार एक समुचित अनुपात या प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता का आधार होना चाहिए। यदि हम आरक्षण की पर्याप्तता का निर्धारण करने के लिए जनसंख्या से जाते हैं तो इसकी बड़ी खामियां हो सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक होगा। इस बात का ध्यान भी रखना होगा कि सबको समान अवसर मिलें।