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सम्पादकीय
इंक़लाब जिंदाबाद : कभी याद आते, कभी भूलते, कभी बदल भी जाते हैं यूं देश के हीरो
Gulabi Jagat
23 March 2022 4:00 AM GMT
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इसमें कोई शक नहीं कि हर समाज को अपने उन नायकों को याद रखना
संजय वोहरा।
इसमें कोई शक नहीं कि हर समाज को अपने उन नायकों को याद रखना, उन का सम्मान करना और उनके विचारों को ज़िंदा रखते हुए उन पर अमल करना चाहिए जो उस समाज-देश के कल्याण के लिए अपना सब कुछ कुरबान कर गए. भगत सिंह (Bhagat Singh) भी उन्हीं में से एक थे. 'इंकलाब जिंदाबाद ' का नारा भले ही स्वतंत्रता सेनानी और उर्दू शायर उन्नाव के सैयद फ़जल उल हसन (Syed Fazl-ul-Hasan) यानि हसरत मोहानी ने कांग्रेस (Congress) के 1921 के अधिवेशन में पहली बार पूर्ण आजादी की मांग के साथ लगाया हो लेकिन ये नारा भगत सिंह की पहचान बन गया. पंजाब की नई विधान सभा के पहले दिन में भी ये नारा तब गूंजा जब विधानसभा परिसर में शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की प्रतिमा लगाने का प्रस्ताव पास हुआ.
हालांकि इस प्रस्ताव में भारत के संविधान निर्माता डॉ भीमराव बाबा साहेब अम्बेडकर की प्रतिमा लगाना भी शामिल हैं. इसी बीच कांग्रेस के विधायक प्रताप सिंह बाजवा नें मुग़ल शासन से लोहा लेने वाले और खालसा राज की स्थापना करने वाले महाराजा रणजीत सिंह की भी प्रतिमा लगाने की मांग इस मौके पर कर दी. शहीद ए आज़म भगत सिंह की शहादत की बरसी से एक दिन पहले इस प्रस्ताव के साथ ये ऐलान भी हुआ कि पंजाब में 23 मार्च को शहीद दिवस के अवसर पर राज्य में सरकारी छुट्टी रहेगी.
क्रांतिकारी भगत सिंह वामपंथी विचारधारा के समर्थक थे
इसी दिन (23 मार्च 19 31) को पंजाब के भगत सिंह और सुखदेव थापर के साथ महाराष्ट्र के राजगुरु को लाहौर की सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी, वो भी तय समय से 12 घंटे पहले. फांसी के लिए 24 मार्च का दिन मुकर्रर हुआ था लेकिन अंग्रेज़ी शासकों को डर था कि कहीं फांसी के लिए तय समय का इंतज़ार करना भारी न पड़ जाए और अपने युवा क्रन्तिकारी नायकों की मौत से भारतीयों के आक्रोश के आगे ब्रिटिश हुकूमत को घुटने न टेकने पड़ जाएं. हमेशा जोश से भरपूर रहने वाले क्रांतिकारी भगत सिंह वामपंथी विचारधारा के समर्थक थे. भगत सिंह और डॉ अम्बेडकर के बुत लगाने का ऐलान तो पंजाब में सरकार बनाने से पहले ही आम आदमी पार्टी ने विधानसभा चुनाव से पहले ही कर दिया था. वैसे खुद मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान भगत सिंह को हमेशा अपना हीरो मानते रहे हैं. जब वो राजनीति में सक्रिय भी नहीं थे तब भी वो भगत सिंह के नाम पर भावुक थे. मान तब कलाकार थे और हास्य उनका विषय था.
आधुनिक भारत के इतिहास में ख़ास जगह रखने वाली शख्सियतों डॉ. अम्बेडकर और भगत सिंह के बुत लगाने, छुट्टी ऐलान करने आदि जैसे विषय पर विधायकों के चर्चा करने के दौरान पंजाब विधान सभा में कुछ अजीब स्थिति भी पैदा हुई. इसके साथ कुछ ऐसे प्रश्न भी खड़े हुए जो सियासत दानों के इन महान हस्तियों और उनकी विचारधारा को समझने और दिल से मानने की सोच को उजागर करते हैं. कांग्रेस के विधायक अमरिंदर सिंह राजा वडिंग जब भगत सिंह के बारे में खड़े होकर बोलने लगे तो उन्होंने अपना मज़ाक ही उड़वा लिया जब सीएम भगवंत मान के पूछने पर भगत सिंह की जन्म तिथि तक न बता सके. ये हाल तो तब है जब पंजाब की सियासत में पके हुए नेता माने जाने वाले राजा वडिंग युवाओं का संगठन कहलाने वाली यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे.
उन्हीं की पार्टी के परिपक्व नेता प्रताप सिंह बाजवा की मांग (महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा) तो इसलिए अजीब लगी कि इतने साल खुद सत्ता में रहने पर उन्होंने इस काम को नहीं किया. पंजाब में हमेशा अकालियों ने राजनीति में पंथक मुद्दों को ख़ास तवज्जो दी है लेकिन राज्य में कांग्रेस का चरित्र तो ऐसा कभी नहीं रहा. आलम तो ये है कि होली के दिनों में श्री आनंदपुर साहिब में होने वाले धार्मिक – सांस्कृतिक और सामाजिक सालाना आयोजन होला महल्ला से भी कांग्रेस खुद को दूर रखती रही है. आनंदपुर साहिब में सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. यहां होला महल्ला पर विभिन्न अकाली दलों के समागम होते थे लेकिन कांग्रेस का पंडाल नहीं लगता था.
अपने-अपने हिसाब से महापुरुषों को याद करते हैं नेता
जिस तरह आम आदमी पार्टी की सरकार आने पर भगवंत सिंह मान (Bhagwant Mann) ने खटकड़ कलां में शपथ ली वैसे ही एक ज़माने में शिरोमणि अकाली अकाली दल के नेता और भारत के सबसे अनुभवी उम्र दराज़ नेता प्रकाश सिंह बादल ने भी ऐतिहासिक चप्पड़ चिड़ि में सरकार का शपथ ग्रहण किया था. बहुत पुरानी नहीं ये 2012 की बात है जब उनके राज में योद्धा भाई बन्दा सिंह बहादुर की चप्पड़ चिड़ि में शानदार यादगार बनाई गई थी. ये भारत का सबसे ऊंचा युद्ध स्मारक है जिसे फतेह बुर्ज़ नाम दिया गया है. गुरु गोबिंद सिंह के दो पुत्रों को दीवार में जिंदा चिनवा देने वाले तानाशाह शासक मुग़ल गवर्नर वज़ीर शाह को बन्दा सिंह बहादुर ने यहीं हरा कर जोरावर सिंह और फतेह सिंह की हत्याओं का बदला लिया था.
यहां शपथ लेने के बाद अकाली नेता तो इस स्थान को भूले ही, उनके बाद सत्ता में आई कांग्रेस की सरकार ने भी सिख योद्धाओं के स्मारक की कभी सुध नहीं ली. कोरोना वायरस संक्रमण काल में तो यहां हालत ये हो गई कि इस विशाल परिसर की रूटीन की देखरेख के भी लाले पड़ गए. कुछ महीने पहले ही सरकार ने किसी प्राइवेट कंपनी के भरोसे इसे छोड़ दिया है. इस जगह का बुरा हाल लेखक ने हाल ही में देखा. 328 फुट ऊंचे इस फतेह बुर्ज़ पर पहुंचने के लिए लिफ्ट लगाईं गई जो अब तक नहीं चल सकी.
वक्त के हिसाब से अपने नायकों को याद करने, उनका महिमामंडन करने और यहां तक की उनको बदलने की अवसरवादिता वाला चरित्र भारत के विभिन्न सियासी दल हमेशा ही दिखाते रहे हैं. मौका पड़ने पर ये उन नायकों के प्रति जन मानस की भावनाओं को भुनाने में भी बाज़ नहीं आते. 1989 में कांग्रेस को बोफोर्स तोप की सप्लाई में दलाली के मुद्दे पर घेर कर हराने वाली वीपी सिंह की सरकार ने उन डॉ. अम्बेडकर को जिंदा किया और हीरो बनाया जिनको बाकी सियासत दान भुला चुके थे. वीपी सिंह ने आरक्षण के मुद्दे पर सियासत शुरू की जिसने भारत में जातिवादी राजनीति को ज़बरदस्त बढ़ावा दिया.
पंजाब में सियासत करनी है तो भगत सिंह प्राथमिकता होंगे
मायावती ने भी इसी लीक पर चलते हए यूपी के मुख्यमंत्री के ओहदे की सवारी की. लोकसभा में मात्र 2 सीटों में सिमटी बीजेपी ने अपनी डूबी लंका बचाने में दिलों में बसते भगवान राम को मंदिर से निकाल राजनीति में हीरो की तरह इस्तेमाल किया. मंदिर का ताला खुलवाने में कामयाब रहे राजीव गांधी इस मामले में पीछे रह गए थे. भारत में अगर किसी सियासी शख्सियत से राम का नाम सबसे ज़्यादा जुड़ता है तो वो आज भी महात्मा गांधी ही हैं. स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर राष्ट्रपिता बनने तक के उनके सफर में राम का नाम हमेशा उनके इर्द गिर्द रहा. हिन्दू मुस्लिम दंगे रुकवाने के लिए जब वो अनशन पर बैठे तब भी राम नाम ही जपा. राजनीति की विडम्बना है या अवसरवाद की पराकाष्ठा, नफरत में अंधे जिस विचारधारा वाले शख्स ने गांधी को मार डाला उसी विचारधारा वालों ने गांधी को अपना हीरो बनाया.
गांधी जो कभी कांग्रेस के हीरो थे उसे बीजेपी ने अपना ही बना कर लोगों को अपनी तरफ खींचा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के आते ही सबसे बड़ी सफाई मुहिम 'स्वच्छ भारत अभियान' के हीरो महात्मा गांधी और उनकी प्रेरणा बने. उनका गोल फ्रेम वाला चश्मा तो स्वच्छता अभियान का लोगो बन गया. करेंसी नोट के साथ गांधी जी सबसे ज्यादा दिखाई दिए तो इसी अभियान के लोगो के तौर पर. महात्मा गांधी को झाडू के साथ अंगीकार कर पीएम से लेकर सीएम तक संसद से लेकर सड़क पर सफाई करते दिखाई दिए.
सौहार्द, धार्मिक सद्भाव और एकता के लिए प्राण तजने वाले राष्ट्रपिता से बापू बने महात्मा गांधी के झाड़ू पर ही आम आदमी पार्टी ने सवारी शुरू की थी. गांधीवादी अन्ना हजारे के साथ भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाते चलाते आम आदमी पार्टी बनाने वाले नेताओं के यहां अब गांधी की महिमा शायद उतनी नहीं है. विचारधारा बदली या हीरो की परिभाषा. दलित वोटों की राजनीति भी लगातार हावी है. सो, अब दीवार पर डॉ अम्बेडकर के साथ शहीद ए आज़म भगत सिंह की तस्वीर है. राष्ट्रपिता को अब दीवार पर स्थान नहीं मिला. वैसे भी जब पंजाब में सियासत करनी है तो भगत सिंह प्राथमिकता होंगे. वहां अब महात्मा गांधी शायद सिर्फ दिल में ही रहेंगे.
मूर्तियां बनेंगी और उनके नाम पर अभियान चलेंगे
गुजरात के बापू के बाद वहीं की धरती के लाल लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को भी बीजेपी ने कांग्रेस से छीन लिया और हीरो बनाया. इतनी उंची और इतनी महंगी प्रतिमा स्टेचू ऑफ़ यूनिटी बना दी कि देश ही नहीं अमेरिका तक में बसे लोग हैरान रह गए. भारत के पहले केंद्रीय गृह मंत्री सरदार पटेल का जन्म दिन 31 अक्टूबर राष्ट्रीय एकता दिवस बन गया, इस दिन पुलिस मेडल दिए जाने लगे. इसी दिन को कांग्रेस की नेता और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की गई थी. 1984 के बाद ये तारीख इसलिए याद रखी जाती थी और कांग्रेस उनकी याद में कार्यक्रम करवाती थी. अब वो याद भी धूमिल होने लगी है.
दूसरी तरफ हमेशा विवादों के साथ याद किए जाते रहे और लंबे अरसे तक भूले रहे कांग्रेस के नेता से क्रांतिकारी बन आज़ाद हिन्द फ़ौज को पुनर्गठित करने वाले सुभाष चन्द्र बोस भी फिर राइटिस्ट विचारधारा के लिए हीरो बन गए. तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा का नारा देने वाले सुभाष चन्द्र बोस को भी कांग्रेस अपना बना कर नहीं रख सकी. रातों रात आईडिया आया, मूर्ति न बन सकी तो नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का ही लगा दिया 23 जनवरी 2021 को इण्डिया गेट के पास चौराहे पर.
ये तो उन चंद स्वतंत्रता सेनानियों और भारतीय नायकों को सियासी दलों के अपनाने और नज़रन्दाज़ करने की बानगी भर है जिनको देश-दुनिया जानती है क्योंकि उनको केन्द्रीय स्तर पर रहे. बहुत से क्षेत्रीय हीरो तो अब भी इतिहास में अपनी जगह नहीं पा सके. शायद जब सियासी दलों को ज़रूरत पड़ेगी तो उनकी भी चर्चा होगी, मूर्तियां बनेंगी और उनके नाम पर अभियान चलेंगे. रानी लक्ष्मी बाई की तरह ही कर्नाटक के कित्तूर की वीरांगना रानी चेन्नमा, अशफाक़उल्ला खान, भीकाजी कामा, करतार सिंह सराबा…. और भी इस तरह के महान चिंतकों, विचारकों, स्वतंत्रता सेनानियों नायकों से भरा पड़ा है भारत का इतिहास.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
Gulabi Jagat
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