सम्पादकीय

भारतीय अर्थव्यवस्था: एफडीआई के लिए आसान होती राह

Gulabi
12 Jun 2021 9:34 AM GMT
भारतीय अर्थव्यवस्था: एफडीआई के लिए आसान होती राह
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भारतीय अर्थव्यवस्था

ब्रिटेन में छह जून को सात विकसित औद्योगिक देशों अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, इटली और जापान के समूह यानी जी-7 के वित्त मंत्रियों की बैठक में वैश्विक कॉरपोरेट कर की दर को न्यूनतम 15 फीसदी रखे जाने संबंधी ऐतिहासिक समझौते पर सहमति बनी है। यह कर समझौता वैश्विक कर परिदृश्य में दशकों का सबसे बड़ा और दूरगामी परिवर्तन साबित हो सकता है। ऐसा समझौता भारत के लिए लाभप्रद होगा। कोरोना काल की चुनौतियों के बीच देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में जो बढ़ोतरी हो रही है, उसमें कॉरपोरेट कर की दर में इस बढ़ोतरी के बाद और वृद्धि देख सकते हैं। पिछले वित्त वर्ष (2020-21) में देश में एफडीआई रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था।

हाल ही में उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020-21 में एफडीआई 19 प्रतिशत बढ़कर 59.64 अरब डॉलर हो गया। इस दौरान इक्विटी, पुनर्निवेश आय और पूंजी सहित कुल एफडीआई 10 प्रतिशत बढ़कर 81.72 अरब डॉलर हो गया। 2019-20 में एफडीआई का कुल प्रवाह 74.39 अरब डॉलर था। उल्लेखनीय है कि भारत में एफडीआई का प्रमुख केंद्र सिंगापुर बना हुआ है। कुल एफडीआई में सिंगापुर की हिस्सेदारी 29 प्रतिशत है। इसके बाद 23 प्रतिशत के साथ अमेरिका दूसरे स्थान पर और नौ प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ मॉरीशस तीसरे स्थान पर है।
यह भी महत्वपूर्ण है कि पिछले वित्त वर्ष में भारत के एफडीआई परिदृश्य पर सऊदी अरब उन शीर्ष निवेशकों में उभरकर सामने आया है, जिसका निवेश प्रतिशत सबसे ज्यादा बढ़ा है। अमेरिका और ब्रिटेन से एफडीआई प्रवाह क्रमश: 227 प्रतिशत और 44 प्रतिशत बढ़ा है। जहां तक राज्यों का सवाल है, एफडीआई हासिल करने में गुजरात शीर्ष पर है, इसके बाद महाराष्ट्र व कर्नाटक का स्थान है। देश में एफडीआई आने के विभिन्न सेक्टरों के मद्देनजर 44 फीसदी एफडीआई कंप्यूटर सॉफ्टवेयर व हार्डवेयर सेक्टर में आया है। इसके बाद कंस्ट्रक्शन इंफ्रॉस्ट्रक्चर सेक्टर में 13 फीसदी व सर्विस सेक्टर में आठ फीसदी एफडीआई आया है।
स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन में ई-कॉमर्स, डिजिटल मार्केटिंग, डिजिटल भुगतान, ऑनलाइन एजुकेशन तथा वर्क फ्रॉम होम की प्रवृत्ति, बढ़ते हुए इंटरनेट के उपयोगकर्ता, देश भर में डिजिटल इंडिया के तहत सरकारी सेवाओं के डिजिटल होने से अमेरिकी टेक कंपनियों सहित दुनिया की कई कंपनियां भारत में स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि तथा रिटेल सेक्टर के ई-कॉमर्स बाजार की संभावनाओं का लाभ उठाने के लिए निवेश के साथ आगे बढ़ी हैं।
यदि हम इस बात पर विचार करें कि जब पिछले वित्त वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट रही है, इसके बावजूद विदेशी निवेशकों द्वारा भारत को एफडीआई के लिए प्राथमिकता क्यों दी गई है, तो हमारे सामने कई चमकीले तथ्य उभरकर सामने आते हैं। देश में एफडीआई बढ़ने का एक बड़ा कारण सरकार द्वारा पिछले कुछ वर्षों में उद्योग-कारोबार को आसान बनाने के लिए किए गए कई ऐतिहासिक सुधार हैं। जीएसटी लागू हुआ है। कॉरपोरेट कर में बड़ी कमी की गई है और बड़े आयकर सुधार लागू किए गए हैं। देश में आधार बायोमेट्रिक परियोजना, रेलवे, बंदरगाहों तथा हवाई अड्डों के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण जैसी विभिन्न महत्वाकांक्षी योजनाओं को लागू किया गया है।
'ईज ऑफ डुइंग बिजनेस' नीति के तहत देश में कारोबार को गति देने के लिए कई सुधार किए गए हैं। पिछले छह-सात वर्षों में 1,500 से ज्यादा पुराने व बेकार कानूनों को खत्म कर नए कानूनों को लागू किए जाने और विभिन्न आर्थिक मोर्चों पर सुधारों के दम पर निवेश के मामले में भारत को लेकर दुनिया का नजरिया बदला है। यदि हम चालू वित्त वर्ष 2021-22 में पिछले वित्त वर्ष के तहत प्राप्त किए गए करीब 82 अरब डॉलर के एफडीआई से अधिक की नई ऊंचाई चाहते हैं, तो जरूरी होगा कि वर्तमान एफडीआई नीति को और अधिक उदार बनाया जाए।
क्रेडिट बाय अमर उजाला
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