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कोरोना काल में पूरी दुनिया को वायरस पर काबू पाने के लिए एक वैक्सीन का इंतजार है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोरोना काल में पूरी दुनिया को वायरस पर काबू पाने के लिए एक वैक्सीन का इंतजार है। सुरक्षित और कारगर वैक्सीन पूरी दुनिया के लिए किसी संजीवनी की तरह होगी। यह संजीवनी न केवल मानव की जान बचाएगी बल्कि जहां को फिर से गुलजार कर देगी। यह संजीवनी ध्वस्त हो रही अर्थव्यवस्थाओं में नया प्राण फूंकेगी।
हताश हो रहे लोगों के चेहरे पर सुकून लाएगी। दुनिया भर में वैक्सीन के अंतिम ट्रायल चल रहे हैं। भारत में भी वैक्सीन के तीसरे और अंतिम ट्रायल चल रहे हैं। भारत में वैक्सीन के मोर्चे पर अच्छी खबरें मिल रही हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वैक्सीन के मोर्चे को खुद सम्भाल लिया है।
उन्होंने एक ही दिन में अहमदाबाद में जाइडस कैडिला, हैदराबाद में भारत बायोटेक और पुणे में सीरम इंस्टीच्यूट का दौरा कर वैक्सीन की तैयारियों का जायजा लिया। उनका उद्देश्य देश में टीकाकरण में आने वाली चुनौतियों, तैयारियों और रोडमैप जैसे पहलुओं की जानकारी प्राप्त करना था।
प्रधानमंत्री के दौरेे के काफी सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कम्पनी पुणे स्थित सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ आदर पूनावाला का कहना है कि कोरोना वैक्सीन में देरी की कोई सम्भावना नहीं है।
कम्पनी कोविशील्ड वैक्सीन के इमरजैंसी में इस्तेमाल की इजाजत लेने के लिए दो सप्ताह में अप्लाई करेगी। सबसे पहले वैक्सीन का वितरण भारत में किया जाएगा और अन्य देशों में सप्लाई के बारे में बाद में सोचा जाएगा। इसका अर्थ यही है कि भारत वैक्सीन बनाने के करीब पहुंच चुका है।
भारत बायोटेक इंटरनेशनल कोवैक्सीन नाम से स्वदेशी वैक्सीन विकसित कर रही है जिसके तीसरे चरण में परीक्षण में उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं। भारत में क्लीनिकल ट्रायल बहुत मुश्किल काम है क्योंकि लोग तैयार ही नहीं होते। यह पहला अवसर है कि फरीदाबाद और देश के कुछ अन्य शहरों में लोग ट्रायल में बतौर वालंटियर शामिल होने के लिए स्वेच्छा से आगे आ रहे हैं।
जाइडस बायोटैक भी वैक्सीन बनाने की दिशा में युद्ध स्तर की तरह काम कर रहा है। सभी कम्पनियां वैश्विक मानदंडों का पालन कर रही हैं। यद्यपि अमेरिका, रूस अपनी वैक्सीन की 90 फीसदी सफलता का दावा कर चुके हैं, लेकिन अभी अंतिम निष्कर्ष आने बाकी हैं।
कोई भी वैक्सीन बनाने की प्रकिया जटिल होती है। पहले आैर दूसरे चरण के ट्रायल में हर एक व्यक्ति की पहले क्लीनिकल जांच होती है और देखा जाता है कि उस व्यक्ति को पहले से कोई बीमारी तो नहीं लेकिन जब तीसरे फेज का ट्रायल होता है तो उसमें वालंटियर सामान्य जनता से चुने जाते हैं, उसमें पहले लोगों की जांच नहीं होती।
हर वैक्सीन के लिए प्रभावकारी परीक्षण का मतलब है जिन लोगों के समूह को वैक्सीन दी गई है उनमें बीमारी में आई कमी का प्रतिशत। आनुवांशिक और जातीय पृष्ठभूमि के आधार पर यह रेंज अलग-अलग हो इसलिए बड़ी फार्मा कम्पनियां अलग-अलग देशों में एक साथ परीक्षण करती हैं। इसीलिए डाक्टर रैड्डी की लैब रूसी वैक्सीन स्पूतनिक-वी के लिए भारत में परीक्षण कर रही है।
भारत की गिनती जैनरिक दवाओं और वैक्सीन की दुनिया में सबसे बड़े निर्माताओं में होती है। भारतीय वैक्सीन कम्पनियां दूसरों से काफी आगे हैं। अकेले सीरम इंस्टीच्यूट 40 से 50 करोड़ डोज बना सकती है। अब वायरस के अंधकार में किरणें दिखाई देने लगी हैं और लोगों को उम्मीद है कि भारत एक सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन बना लेगा। रूस ने भी स्पूतनिक-वी भारत में बनाने के लिए अनुबंध कर लिया है।
भारत के सामने दूसरी बड़ी चुनौती सीमित परिवहन और कोल्ड स्टोरेज की है। कोरोना वैक्सीन की सहज सुलभता बहुत जरूरी है। इसके लिए भी मोदी सरकार राज्यों के साथ मिलकर रोडमैप तैयार कर रही है। वैक्सीन के वितरण के लिए व्यवस्था तैयार की जा रही है।
लक्जमबर्ग ने गुजरात में वैक्सीन ट्रांसपोर्टेशन प्लांट लगाने की पेशकश की थी, जिसे केन्द्र सरकार ने स्वीकार कर लिया है। लक्जमबर्ग गुजरात में सोलर वैक्सीन रैफ्रीजिरेटर और ट्रांसपोर्ट बॉक्स सहित एक वैक्सीन कोल्ड चेन स्थापित करेगी। रेफ्रीजिरेटेड ट्रांसपोर्ट बॉक्स में वैक्सीन को 20 डिग्री से कम तापमान में रखा जा सकता है।
अगस्त-सितम्बर तक भारत 30 करोड़ लोगों को वैक्सीन देने की स्थिति में होगा। नीति आयोग ने हर गांव और पंचायत स्तर पर वैक्सीन पहुंचाने के लिए पूरी योजना तैयार कर ली है। भारत की वैक्सीन यदि सुरक्षित और कारगर हुई तो फिर भारत पूरी दुनिया को संजीवनी देगा। भारत ने िवश्व को दिया है अध्यात्म, योग और आयुर्वेद। कोरोना वैक्सीन के मामले में भी भारत आत्मनिर्भर बनेगा।
Gulabi
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