सम्पादकीय

भारत-पाकिस्तान संबंध: दो पड़ोसियों की कूटनीति की दुनिया

Gulabi
13 Aug 2021 5:55 AM GMT
भारत-पाकिस्तान संबंध: दो पड़ोसियों की कूटनीति की दुनिया
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दो विदेशी पत्रकारों की एक नई किताब स्पाई स्टोरीज इनसाइड द सीक्रेट वर्ल्ड ऑफ रॉ ऐंड आईएसआई इस सप्ताह बाजार में आ जाएगी

मरिआना बाबर।

दो विदेशी पत्रकारों की एक नई किताब स्पाई स्टोरीज इनसाइड द सीक्रेट वर्ल्ड ऑफ रॉ ऐंड आईएसआई इस सप्ताह बाजार में आ जाएगी। आईएसआई सहित पाकिस्तान में हर कोई इसकी प्रतीक्षा कर रहा है, क्योंकि उनका दावा है कि यह भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल का एक जनसंपर्क स्टंट है, जिनका यह बयान इस किताब में उद्धृत है कि 'पाकिस्तान हमेशा के लिए दुश्मन है।' लेकिन एक और किताब जो पाकिस्तान में धूम मचा रही है, वह भी भारत और पाकिस्तान के बारे में है। इसमें दो पड़ोसियों के बीच की कूटनीति की दुनिया है।

पूर्व राजदूत अब्दुल बासित की पहली किताब हॉस्टेलिटी-ए डिप्लोमैट्स डायरी ऑन पाकिस्तान-इंडिया रिलेशंस ऐंड मोर अभी बाजार में आई है। मेरे लिए विदेशी संबंध एक लत है और इसी कारण मैं अब तक पत्रकारिता में हूं। बेशक अस्सी के दशक की बात अलग थी, जब रेडियो पाकिस्तान व पीटीवी सहित इस विषय को कवर करने वाले हम मात्र सात पत्रकार थे। इस्लामाबाद में सबसे अच्छी कॉफी, जिस पर विदेशी राजनयिक भी सहमत थे, सलमान बशीर के ऑफिस में मिलती थी और ब्रीफिंग के दौरान मिलने वाला समोसा लाजवाब होता था।
विदेश मंत्रालय की सबसे दिलचस्प कहानियां तब सामने आई थीं, जब भारतीय विदेश सचिव निरुपमा राव अपने समकक्ष सलमान बशीर के साथ, जो बाद में नई दिल्ली में उच्चायुक्त बने, इस्लामाबाद में थीं। उनके बीच सुकून भरा रिश्ता था और आतंकवाद जैसे मुद्दे पर भी कूटनीतिक तरीके से चर्चा की जाती थी। अब्दुल बासित जब पाकिस्तान के उच्चायुक्त के तौर पर नई दिल्ली में तैनात थे, वह दोनों मुल्कों के लिए सबसे दिलचस्प समय था। उनकी किताब पढ़ना उस अतीत में लौट जाने जैसा है। वह हमें विदेश मंत्रालय के कामकाज की आंतरिक और पारदर्शी झलक देते हैं, जो अन्यत्र दुर्लभ है।
जैसे, वहां कैसी गुटबंदी थी, काबिल राजनायिकों को कैसे किनारे किया गया और बेहतरीन प्रवक्ता के तौर पर सुर्खियां पाने के बाद बासित कैसे निशाने पर आ गए और बेहद कठोर सवालों का सामना करते हुए भी अडिग रहे। बासित लिखते हैं कि, 'यह किताब केवल भारत-पाक दुश्मनी के बारे में नहीं है, बल्कि इस बारे में भी है कि विदेश मंत्रालय में गैर पेशेवर रवैया और व्यक्तिगत दुश्मनी भी राजनय की कला को प्रभावित करती है, जिससे देश के हित को नुकसान पहुंचता है।'
बासित ने तथ्यों, आंकड़ों और दस्तावेजों के साथ साबित किया है कि कैसे पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अचानक भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर नर्म हो गए थे। विदेश सचिव के तौर पर बासित के लिए चौंकाने वाला क्षण तब था, जब विदेश मंत्रालय ने उन्हें दिल्ली में मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए नवाज शरीफ की स्वीकृति के बारे में अंधेरे में रखा। उच्चायुक्त के अपने कार्यकाल में बासित ने भारतीय मीडिया में पैठ बनाई और विभिन्न वर्गों के भारतीयों से मुलाकात की। उनकी हर मुलाकात को भारतीय मीडिया में सुर्खियां मिलीं। पर यह तत्कालीन विदेश सचिव एजाज चौधरी को रास नहीं आई, जिन्होंने नवाज शरीफ के निर्देश के मुताबिक बासित को अपनी मीडिया गतिविधियां कम करने के लिए फोन किया था। दिल्ली में शपथ ग्रहण समारोह के बाद हुई बैठक के बारे में बासित ने लिखा है, 'मोदी के साथ अपनी बैठक में हमारे प्रधानमंत्री ने बहुत नर्मी और अनावश्यक रूप से दोस्ताना रवैया दिखाया और कश्मीर का मुद्दा नहीं उठाया।'
बासित ने इस्लामाबाद लौटने पर जब सेना प्रमुख और आईएसआई प्रमुख से मुलाकात कर प्रधानमंत्री शरीफ के भारत दौरे के बारे में जानकारी दी, तब उन्होंने पूछा था कि प्रधानमंत्री ने भारतीय मीडिया के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में कश्मीर का उल्लेख क्यों नहीं किया। बासित लिखते हैं, 'मैंने यह कहकर सवाल टाल दिया कि शायद प्रधानमंत्री माहौल खराब नहीं करना चाहते थे, क्योंकि वह द्विपक्षीय बैठक में नहीं, बल्कि मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में गए थे।'
यहां तक कि नवाज शरीफ की ओर से मोदी को लिखे गए पत्र भी उच्चायुक्त बासित के जरिये नहीं, बल्कि विदेश सचिव द्वारा इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायुक्त को दिए गए। बासित लिखते हैं, 'विदेश मंत्रालय के लिए नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायुक्त का कोई अस्तित्व नहीं है। विदेश मंत्रालय ने मेरे जरिये नहीं, बल्कि भारतीय उच्चायुक्त के जरिये काम करने का फैसला किया।'
एक बार विदेशी मामलों पर प्रधानमंत्री के सलाहकार सरताज अजीज ने भी एनडीटीवी से बात करते हुए दिल्ली में अपने ही उच्चायुक्त बासित को शर्मिंदा किया था कि उन्हें विदेश सचिव स्तर की वार्ता से पहले हुर्रियत नेताओं से नहीं मिलना चाहिए था। तब भारत ने बासित की मुलाकात पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए विदेश सचिवों की बैठक रद्द कर दी थी। सुषमा स्वराज की प्रधानमंत्री शरीफ से मुलाकात के दौरान भी कश्मीर मुद्दा नहीं उठा था, क्योंकि तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्री स्वराज ऐसा ही चाहती थीं। शरीफ भारत के प्रति नरम थे, जबकि उच्चायुक्त बासित समझ सकते थे कि पाकिस्तान के हितों के लिहाज से उनके प्रधानमंत्री का नजरिया ठीक नहीं था।
बासित लिखते हैं कि पठानकोट हमले के बाद जब नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइन (पीआईए) कार्यालय में तोड़फोड़ की गई, तब उन्हें संदेश मिला कि प्रधानमंत्री शरीफ नहीं चाहते कि इस मुद्दे पर भारत सरकार के खिलाफ कोई बयान दिया जाए। उस हमले के बाद मास्को में लेफ्टिनेंट जनरल नसीर जंजुआ के साथ बैठक में अजीत डोवाल ने आक्रामक रुख का परिचय दिया। जवाब में जंजुआ ने कहा कि पाकिस्तान भारत को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और ग्वादर तक पहुंच प्रदान कर सकता है, बशर्ते द्विपक्षीय माहौल में सुधार हो और वार्ता फिर शुरू हो। बासित अपने खिलाफ हो रहे व्यवहार पर दुखी होने के साथ प्रधानमंत्री नवाज के रवैये से भी चिंतित थे, क्योंकि उससे पाकिस्तान के हित प्रभावित हो रहे थे। फिर चूंकि बासित अपने से जूनियर विदेश सचिव तहमीना जंजुआ के अधीन काम नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
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