सम्पादकीय

आय सीमा का सवाल

Subhi
4 Jan 2022 3:51 AM GMT
आय सीमा का सवाल
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एक्सपर्ट कमिटी द्वारा आर्थिक दृष्टि से कमजोर तबके के आरक्षण के लिए 8 लाख रुपये की आय

एक्सपर्ट कमिटी द्वारा आर्थिक दृष्टि से कमजोर तबके (ईडब्ल्यूएस) के आरक्षण के लिए 8 लाख रुपये की आय सीमा को तर्कसंगत करार दिए जाने और केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में कमिटी की इस रिपोर्ट को मान्य बताए जाने के बाद अब यह जटिल समस्या हल की ओर बढ़ती दिख रही है। दरअसल, आर्थिक दृष्टि से कमजोर तबके के लिए आरक्षण के मामले में 8 लाख रुपये की आय सीमा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और इस मामले में कोर्ट ने सरकार से कई वाजिब सवाल पूछे थे। कोर्ट ने कहा था कि नीति निर्धारित करना सरकार का काम है और वह उस क्षेत्र में दखल नहीं देना चाहता, लेकिन सरकार द्वारा निर्धारित नीतियों का ठोस, तार्किक और संवैधानिक आधार होना चाहिए। इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण में क्रीमी लेयर के लिए 8 लाख की आय सीमा के समान ही आर्थिक रूप से कमजोर तबके के आरक्षण में भी 8 लाख की आय सीमा रखे जाने पर सवाल उठाते हुए कहा था कि दोनों तबकों में मूलभूत अंतर है।

ईडब्ल्यूएस आर्थिक पैमाने पर भले ही कमजोर हों, सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े तबकों के रूप में चिह्नित नहीं किए जा सकते। ऐसे में इन दोनों के लिए एक ही आय सीमा रखना कैसे वाजिब माना जा सकता है! इसके बाद सरकार ने प्रस्तावित आय सीमा पर पुनर्विचार की तैयारी दिखाते हुए एक एक्सपर्ट कमिटी गठित कर दी। कमिटी ने सभी पहलुओं से विचार-विमर्श करने के बाद हालांकि इसी आय सीमा को जारी रखने का सुझाव दिया, लेकिन अपनी रिपोर्ट में इसके ठोस आधार भी बताए। अव्वल तो यह कि आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए सिर्फ एक साल की आय का ब्योरा मांगा जाता है, जबकि ओबीसी मामले में पिछले तीन वर्षों की सालाना आय का ब्योरा देखा जाता है। दूसरी बात यह है कि ईडब्ल्यूएस के विपरीत ओबीसी मामले में खेती से होने वाली आय और परिजनों की सैलरी से होने वाली आय शामिल नहीं की जाती। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आर्थिक आरक्षण के मामले में आय सीमा 8 लाख होने के बावजूद ओबीसी आरक्षण के मुकाबले यह ज्यादा कड़ी हो जाती है। इसलिए दोनों को समान नहीं कहा जा सकता।
इसके साथ ही कमिटी ने यह भी कहा कि उसकी सिफारिशें अगले सत्र से लागू की जाएं ताकि इस सत्र की शुरुआत में होने वाले विलंब से बचा जा सके। इन सबसे इतना तो माना जा सकता है कि सरकार और कमिटी ने अपनी तरफ से स्थितियों को साफ करने की कोशिश की है। लेकिन आज के दौर में आरक्षण अपने आप में इतना जटिल मसला हो गया है और इससे इतने परस्परविरोधी हित जुड़ गए हैं कि कब, कहां, किस वजह से पेच उलझ जाएगा, कहा नहीं जा सकता। बहरहाल, इस स्पष्टीकरण और पहल से अगर नीट-पीजी एडमिशन की अटकी हुई प्रक्रिया आगे बढ़ जाए तो वह भी एक बड़ी राहत होगी।

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