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- जम्मू-कश्मीर पर...
भूपेंद्र सिंह | जम्मू-कश्मीर के नेताओं को सर्वदलीय बैठक के लिए आमंत्रित करने के केंद्र सरकार के फैसले से इन चर्चाओं को बल मिला है कि मोदी सरकार इस केंद्र शासित प्रदेश को लेकर कोई बड़ी पहल करने जा रही है। फिलहाल इस पहल के बारे में अनुमान लगाना कठिन है, लेकिन माना जा रहा है कि वहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बल देने के लिए कोई कदम उठाए जा सकते हैं। जो भी हो, अच्छी बात यह है कि जम्मू-कश्मीर के नेता इस सर्वदलीय बैठक को लेकर उत्साहित दिख रहे हैं। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि वे अपनी अपेक्षाएं रेखांकित करते हुए ऐसी कोई मांग नहीं कर रहे हैं कि अनुच्छेद 370 को बहाल किया जाए। यह इस बात का सूचक है कि उन्होंने यह समझ लिया है कि अब इस अनुच्छेद की वापसी के कहीं कोई आसार नहीं। वास्तव में इसकी उम्मीद भी नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि यह एक भेदभावपरक और अलगाव एवं अन्याय को बढ़ावा देने वाला अनुच्छेद था। यह अनुच्छेद ही कश्मीरी जनता के एक वर्ग और वहां के कुछ नेताओं को यह मिथ्या आभास कराता था कि कश्मीर देश से अलग और विशिष्ट हैसियत रखने वाला क्षेत्र है। अगर यह अनुच्छेद नहीं होता तो शायद वहां अलगाव और आतंक की जमीन भी तैयार नहीं होती। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इसी अनुच्छेद के कारण पाकिस्तान कश्मीर को हड़पने का सपना देखने के साथ उस पर अपना दावा जताता था।