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हरियाणा में हर घर को मिलेगा नल से जल
हरियाणा ने जल जीवन मिशन (Jal Jeevan Mission) का लक्ष्य पूरा कर लिया है. जल जीवन मिशन यानि हर गांव के हर घर को नल के ज़रिए जल. 15 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने इस योजना की घोषणा की थी. तथा 3.60 लाख़ करोड़ रुपयों का बजट देने की बात कही थी. गोवा, तेलंगाना, पुद्दुचेरी, अंडमान नीकोबार, दादर एवं नागर हवेली तथा दमन-दीव के बाद हरियाणा ही प्रदेश के प्रत्येक गांव के हर घर को पाइप लाइन के ज़रिए जल दे सका.
हर घर में नल लगा है और उस घर से महीने भर के जल उपयोग की एवज़ में मात्र 40 रुपए लिए जाते हैं. यह बहुत बड़ी उपलब्धि है. ख़ासकर उस राज्य के लिए जिसके अधिकांश हिस्से में भू-जल का स्तर 100 से 500 फुट नीचे चला गया हो. एक ट्यूब-वेल लगाने के लिए वहां हज़ार फुट नीचे पाइप लाइन डालनी पड़ती है.
हरियाणा में नदी जल का स्कोप नहीं
इसकी वजह है कि हरियाणा में नदियां नहीं हैं. यमुना नदी इसकी एक सीमा से 320 किमी तक बहती है. और इस तरह वह इसे उत्तर प्रदेश से अलग करती है. इसके अलावा घग्गर नदी है, जो अंबाला, कैथल आदि ज़िलों से होकर बहती है. लेकिन यह बहुत छोटी नदी है. मरकंडा, टांगड़ी आदि नदियां सरस्वती की सहायक नदियां हैं पर ये सब लुप्तप्राय हैं. एक पश्चिमी जमना कैनाल (WJC) के ज़रिए ही यहां सिंचाई होती है. दक्षिण हरियाणा, जिसमें मेवात, रेवाड़ी, नारनौल व भिवानी आदि जिले हैं, वह तो यूं भी सूखा इलाका है. ऐसे हरियाणा में पानी न बचाया गया तो आने वाले वर्षों में हरियाणा में पानी एक बड़ी समस्या बन जाती. लेकिन अब उम्मीद है कि पेय जल के संकट से बचने के उपाय हरियाणा ने तलाश लिया है.
कीटनाशक ने भूजल का और दोहन किया
हरियाणा और पंजाब देश के वे राज्य हैं, जो हरित क्रांति के अगुआ रहे. और कैश क्रॉप्स के चक्कर में इन दोनों राज्यों के किसान वे फसलें उपजाने लगें, जो इनके परंपरागत भोजन के हिस्से नहीं हैं जैसे धान और गन्ना. इन दोनों को पानी खूब चाहिए तथा उपज बढ़ाने के लिए यहां के किसानों ने कीटनाशक (PESTICIDES) का खूब इस्तेमाल किया. जिससे पानी कि खपत और बढ़ी. ज़ाहिर है यह पानी भूजल ही था. भूजल के अति दोहन से हुआ यह कि भूजल का स्तर गिरने लगा. इन दोनों राज्यों के अधिकांश इलाक़े डॉर्क ज़ोन में चले गए.
जेजेएम ने बदली तस्वीर
इसीलिए जल जीवन मिशन हरियाणा के लिए वरदान ले कर आया. इसके लिए सरकार ने पुराने तालाबों, जोहड़ों के पानी के व्यापक इस्तेमाल की योजना बनायी. सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) लगा कर कृषि कार्यों के लिए इस पानी को इस्तेमाल किया तथा नहर के पानी को छोटे-छोटे रजबहों के ज़रिए गांव-गांव में कृत्रिम तालाब में इकट्ठा किया. इस पानी को ट्रीट किया और पीने लायक़ बना दिया. हरियाणा के जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग (PHED) ने इसके लिए अद्भुत काम किया है. विभाग इसके लिए समय-समय पर कार्यशालाएं भी करता है. इन कार्यशालाओं में भाग लेने वालों से अपील की जाती है कि पानी को बचाओ. उसके महत्त्व को समझो. इस वजह से लोग पानी के महत्त्व को समझने लगे हैं. कैथल ज़िला पानी को बचाने में अव्वल है.
यूपी सबसे नीचे
यह दुर्भाग्य है कि हर प्रदेश पानी को लेकर बेहद लापरवाह है. उत्तर प्रदेश जैसे राज्य जहां गंगा-यमुना जैसी विशाल नदियों के अलावा क़रीब सौ छोटी-बड़ी नदियां हैं, वहां के भी अधिकांश ज़िले डॉर्क ज़ोन में हैं. कानपुर जैसे शहरों में जहां गंगा नदी है, वहां भूजल 200 फुट के नीचे है. नगर निगम जल कर लेता ज़रूर है लेकिन शहरों में शुद्ध पेय जल की आपूर्ति नहीं हो पाती. लोगों ने पाइप लाइन उखड़वा दिए हैं, किंतु जल निगम का निर्धारित कर उन्हें देना पड़ता है. उत्तर प्रदेश का एक भी नगर निगम शुद्ध पेय जल की आपूर्ति नहीं कर पाता. लोगों को अपने घरों में आरओ (RO) लगवाना ही पड़ता है. आरओ से यदि एक गिलास पानी हम निकालते हैं तो इतना ही पानी ज़ाया भी हो जाता है. अगर इस ज़ाया पानी को स्टोर किया जाए तो उसका अन्य कार्यों में इस्तेमाल हो सकता है. किंतु इसके बाद भी उत्तर प्रदेश में जल जीवन मिशन को लेकर कोई जागरूकता नहीं है. उत्तर प्रदेश जल जीवन मिशन पर अमल को लेकर देश के अंदर सबसे निचले पांवदान पर है. यहां कुल 12.79 प्रतिशत काम हुआ है.
नदियों का नाश
यह सच है कि अब जीडीपी का आधार गांव नहीं बल्कि शहर हैं. इसलिए भी नदियां प्रदूषित हो रही है. क्योंकि नदियों में औद्योगिक कचरा ही नहीं डाला जा रहा है. बल्कि नदियों का डूब क्षेत्रा भी सिकोड़ा जा रहा है और इसकी वजह है शहरों के विस्तार के लिए निकाली जा रही जमीन. चूंकि दुनिया की परंपरा रही है कि शहर नदियों के किनारे ही बसे इसलिए उनके विस्तार की एक सीमा भी निर्धारित ही थी. मगर जब से शहरी आबादी का घनत्व बढऩे लगा, पहला दबाव नदियों पर ही पड़ा. दरअसल बसावट के लिए जमीन नदी से ली जाती है और इसका खामियाजा ऐसे भुगतना पड़ता है कि कभी भी वह नदी उबल पड़ती है और सब कुछ तहस-नहस कर डालती है. यह नदियों के डूब क्षेत्र में ही बसावट का खामियाजा था कि कभी केदारनाथ हादसा होता है तो कभी झेलम पूरे श्रीनगर को डुबो देती है और चेन्नई नष्ट हो जाता है. नदियों में कचरा डालने की आदत ने प्रकृति को कुपित कर दिया है. प्रकृति फिर दया नहीं करती और वह जितना देती है उससे कहीं अधिक ले लेती है.
सहायक नदियों की उपयोगिता
यह सही है कि पूर्व काल में भी नदियों में प्रदूषण आता था और नदी में सिल्ट जमने लगती थी मगर तब किसी भी बड़ी नदी की सहायक नदी उसकी इस सिल्ट को खत्म करती थी. तब भी शहर नदी किनारे थे और वे रोज उसमें प्रदूषण फैलाते ही थे. मगर आप देखें कि हर नदी जैसे ही शहर पार करती उसमें कोई न कोई सहायक नदी आ कर मिल जाती और इस वेग तथा इतनी तेज जल धारा के साथ कि उसकी सारी सिल्ट स्वत ही खत्म हो जाती. यमुना के दिल्ली से निकलते ही हिण्डन (हरिनंदी) नदी उसमें आकर मिल जाती थी और एक जमाने में यमुना की इस सहायक नदी में पानी इतना ज्यादा और वेग इतना तीव्र होता कि दिल्ली से निकली यमुना की सारी सिल्ट खुद ब खुद समाप्त हो जाती. मगर आज वह हिण्डन नदी की जलधारा समाप्त हो चुकी है.
गाजियाबाद विकास प्राधिकरण तथा नोएडा व ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों की कृपा से वहां अब ऊंची-ऊंची इमारतें खड़ी हैं. अब हिण्डन नदी के नाम पर एक पतली-सी जलधारा है जो स्वयं इतनी प्रदूषित है कि उसके नाला होने का भ्रम होता है. यही हाल अन्य नदियों का भी है. इस यमुना की सारी सिल्ट दिल्ली से बाहर निकलते ही हिण्डन के पानी से धुल जाया करती और नदी फिर वेग से बहने लगती. एक जमाने में जो नजफगढ़ नाला यमुना में गिरा करता था वह इसमें गंदगी नहीं शहर का पानी बहाकर लाता था. मगर आबादी बढ़ने और शहरीकरण की बढ़ती रफ्तार ने इसे नाला और सिल्ट लाने का जरिया बना दिया. अब जब दिल्ली से यमुना में जो सिल्ट आता है उसके बहने का कोई उपाय नहीं नतीजा यह है कि यही यमुना वृन्दावन और मथुरा तक एक पतली धारा वाली मरियल सी नदी बनकर बहती है.
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