सम्पादकीय

सौ साल की मेहनत

Subhi
8 Oct 2021 2:39 AM GMT
सौ साल की मेहनत
x
बीमारियों के खिलाफ चलने वाले मनुष्यता के सतत संघर्ष में एक अहम पड़ाव बुधवार को तब आया, जब डब्ल्यूएचओ ने मलेरिया के टीके आरटीएसएस को अपनी मान्यता दे दी।

बीमारियों के खिलाफ चलने वाले मनुष्यता के सतत संघर्ष में एक अहम पड़ाव बुधवार को तब आया, जब डब्ल्यूएचओ ने मलेरिया के टीके आरटीएसएस को अपनी मान्यता दे दी। वैसे तो भांति-भांति के विषाणुओं और जीवाणुओं पर काम करने वाले कई टीके पहले से मौजूद हैं, लेकिन यह पहला मौका है जब डब्ल्यूएचओ ने ह्यूमन पैरासाइट के खिलाफ किसी टीके के व्यापक उपयोग की सिफारिश की है। इसकी वैज्ञानिक अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि रिसर्चर्स पिछले सौ साल से इस बीमारी का प्रभावी टीका बनाने की कोशिश में लगे थे।

मलेरिया से हमारा वास्ता लंबे समय से पड़ता रहा है और तमाम उपायों की बदौलत आज भले यह अपने खौफनाक रूप में नजर न आता हो, लेकिन एक समय था, खासकर 50 का दशक जब भारत में भी सालाना मलेरिया के सात करोड़ से ज्यादा मामले सामने आते थे और आठ लाख तक मौतें दर्ज की जाती थीं। अब भारत में उतना बुरा हाल नहीं है लेकिन दुनिया भर में अब भी इससे हर साल करीब चार लाख मौतें होती हैं। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव अफ्रीकी देशों में है। वहां पांच साल से कम उम्र के बच्चे इसका सबसे ज्यादा शिकार बनते हैं।
हालांकि इससे बचाव के उपाय भी कम नहीं किए जाते। 2019 में ही मलेरिया नियंत्रण व उन्मूलन पर तीन अरब डॉलर खर्च किए गए। मगर इसके बावजूद इन देशों में मलेरिया का आतंक कायम है। निश्चित रूप से उन इलाकों के लोगों के लिए यह टीका वरदान बनकर आया है। फिर भी सारी उम्मीदें इसी पर टिका देना समझदारी नहीं होगी। वैसे पायलट प्रोग्राम के दौरान इसके नतीजे उत्साहवर्धक रहे हैं, लेकिन फिर भी इसकी अपनी सीमाएं हैं। पहली बात तो यह समझने की है कि मलेरिया पैरासाइट के सौ से अधिक प्रकार हैं। आरटीएसएस टीका इनमें से एक प्लाज्मोडियम फाल्सिपैरम पर ही कारगर है, हालांकि यही सबसे खतरनाक माना जाता है और अफ्रीकी देशों में सबसे ज्यादा प्रकोप भी इसी का होता है। दूसरी बात यह कि इस वैक्सीन के प्रभावी होने के लिए हर बच्चे को इसका चार डोज देना जरूरी होगा।
इनमें से पहले तीन डोज क्रमश: पांच, छह और सात महीने की उम्र में तो चौथा डोज 18वें महीने में देने की जरूरत होगी। दूरदराज के इलाकों में बच्चों को समय से चारों डोज लगाना व्यवहार में आसान नहीं होगा। वैसे, अच्छी योजना बनाकर इस मुश्किल का हल निकाला जा सकता है। मलेरिया की नई दवाओं को लेकर भी हाल कोई अच्छा नहीं रहा। इस तरह के आरोप लगे कि दवा कंपनियों को खासतौर पर गरीब मुल्कों की इस बीमारी में बड़ा मुनाफा नहीं दिखा, इसलिए उन्होंने मलेरिया की नई दवाएं नहीं बनाईं। जिस तरह से बच्चों की खातिर यह टीका आया है, कुछ वैसी ही पहल इस बीमारी की नई दवा बनाने को लेकर भी होना चाहिए।

Next Story