सम्पादकीय

मुसलमानों को सबसे ज्यादा वजीफे

Gulabi Jagat
16 March 2022 6:11 AM GMT
मुसलमानों को सबसे ज्यादा वजीफे
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भारत हिंदू बहुल राष्ट्र है लेकिन यह हिंदू राष्ट्र उसी तरह नहीं बना है जैसे कि दुनिया के कई मुस्लिम या ईसाई या यहूदी राष्ट्र बने हुए हैं
By वेद प्रताप वैदिक.
भारत हिंदू बहुल राष्ट्र है लेकिन यह हिंदू राष्ट्र उसी तरह नहीं बना है जैसे कि दुनिया के कई मुस्लिम या ईसाई या यहूदी राष्ट्र बने हुए हैं। इसका संविधान भी इसे धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र ही कहता है। इसके बावजूद भारत में हर प्रकार की सांप्रदायिकता विद्यमान है। यह वही सांप्रदायिकता है, जिसके चलते भारत के टुकड़े हुए लेकिन भारत सरकार, वह चाहे नेहरुजी की हो या अटलजी की और मनमोहनसिंहजी की हो या नरेंद्र मोदी की हो, उसकी कोशिश होती है कि वह मजहब के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं करे।
इसका प्रमाण वे छात्रवृत्तियां हैं, जो धार्मिक अल्पसंख्यकों के बच्चों को दी जाती हैं। 2016 से 2021 के इन पांच वर्षों में लगभग 3 करोड़ छात्रवृत्तियां भारत सरकार ने दी हैं। उनमें से अकेले मुसलमान छात्रों को 2 करोड़ 30 लाख छात्रवृत्तियां मिली हैं। ईसाई छात्रों को 37 लाख, सिखों को 25 लाख, बौद्धों को 7 लाख, जैनों को 4 लाख, पारसियों को लगभग 5 हजार छात्रवृत्तियां मिली हैं। मोदी सरकार पर आरोप लगाया जाता है कि यह मुस्लिम-विरोधी है लेकिन उक्त आंकड़ा इस तर्क को सिरे से रद्द करता है। मोदी की विचारधारा और दृष्टि कुछ भी हो सकती है लेकिन यह छात्रवृत्ति नरेंद्र मोदी नहीं दे रहे हैं, मोदी सरकार (भारत सरकार) दे रही है।
यह छात्रवृत्ति ऐसे छात्रों को मिलती है, जिनके माता-पिता की आमदनी 1 लाख रु. साल से कम हो और उस छात्र को 50 प्रतिशत से ज्यादा नंबर मिले हों। अब ऐसे 5 करोड़ छात्रों को यह आर्थिक सहायता मिला करेगी। मुस्लिम छात्राओं को बेगम हजरतमहल छात्रवृत्ति मिलेगी। इस मद पर अभी सरकार ने लगभग 10 हजार करोड़ रु. खर्च किए हैं। अगले पांच वर्ष में यह राशि दुगुनी होने की उम्मीद है। ज़रा सोचें कि अल्पसंख्यकों में मुसलमान छात्र-छात्राओं को ही इतनी ज्यादा छात्रवृत्तियां क्यों मिली हैं?
एक तो उनकी संख्या अन्य अल्पसंख्यकों के मुकाबले कई गुना है। इससे भी बड़ी बात यह है कि सबसे ज्यादा गरीब तबके मुसलमानों में ही हैं। इनके मुसलमान बनने का सबसे बड़ा कारण भी यही रहा है कि या तो ये लोग बहुत गरीब रहे या अछूत रहे या अशिक्षित रहे। इस्लाम कुबूल करने के बावजूद इनकी गरीबी, इनकी जातीय जकड़ और शिक्षा-स्तर में ज्यादा फर्क नहीं आया।
इनका मूल वंचित चरित्र इस्लाम कुबूल करने के बावजूद आज तक बना हुआ है। इस्लाम इन्हें कोई राहत नहीं दिला सका। ये मूलतः वंचित लोग हैं। इन्हें जाति, मजहब, रंग या भाषा के आधार पर नहीं, बल्कि इनकी प्रंवचना के आधार इनको प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
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