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- सेहत, संयम और अनुशासन
प्रभात कुमार: बेहतर स्वास्थ्य के लिए संयम और अनुशासन बनाए रखने की सीख हमेशा दी जाती रही है। मगर स्थिति यह है कि विशेषज्ञ और विशिष्ट विशेषज्ञ चिकित्सक बढ़ते जाते हैं और अति खतरनाक बीमारियां प्रकट होना कम नहीं होतीं। ऐसा लगता है कि बीमारियों, दवाइयों और इलाज के बीच प्रतियोगिता जारी रहती है। संक्रामक कोरोना के नए-नए संस्करण अभी जारी हैं और टीकों को बार-बार चुनौतियां मिल रही हैं, उन्हें नया जन्म देने, उन्हें नए रूप में विकसित करने पर जोर बढ़ रहा है।
पिछले दो सालों में लगभग हर घर में वैद्य या डाक्टर उग आए हैं। इस महासंचार युग में तो वाट्सऐप और फेसबुक पर ही स्वास्थ्य में अनुशासन बनाए रखने के अनगिनत सुझाव दिन-प्रतिदिन झरते जाते हैं। लेकिन काफी कुछ पता होने के बावजूद जिंदगी का स्वास्थ्य अनुशासन किसी न किसी कारण पटरी से उतरता रहता है। थोड़ी-सी लापरवाही, सही ढर्रे पर चल रहे जीवन में कई दिनों के लिए उथल-पुथल मचा देती है।
अक्सर यह उदाहरण दिया जाता है कि उन्हें देखो, पचहत्तर साल की उम्र हो चुकी है, सब कुछ खाते हैं, सक्रिय और स्वस्थ हैं। हमारे आसपास ऐसे कई लोग मिल जाते हैं, जो अपनी सेहत के चलते हमारे लिए मिसाल बन जाते हैं। उनकी मिसाल तो आसानी से दे दी जाती है, क्योंकि जबान से कहना ही तो है। मगर कभी यह गौर नहीं फरमाया जाता कि उनकी दिनचर्या क्या है, वे कितने बजे उठते हैं, सैर, ध्यान और कौन-कौन से व्यायाम करते हैं।
नाश्ता कितने बजे और दोपहर का खाना कितने बजे खाते हैं। चाय कितनी बार पीते हैं, रात का खाना कब खाते हैं और कितने बजे सो जाते हैं। जिसे सब कुछ खाना कहा जा रहा है, उसमें क्या-क्या शामिल है। अगर हम सब यह जान लेंगे तो लगेगा कि वह किसी अनुभवी भोजन विशेषज्ञ का बनाया चार्ट है। कोई क्या, खुद हम अपने ऊपर लागू करना चाहें तो नहीं करेंगे, क्योंकि उसमें अनुशासन की जरूरत होगी।
हालांकि अगर कुछ बदलाव लाना शुरू कर दें, तो हमारा स्वास्थ्य भी बेहतर होना शुरू हो सकता है। हर शरीर की संरचना, प्रवृत्ति अलग है, उसी आधार पर सेहत भी रहेगी और उससे संबंधित अनुशासन भी बनाए रखना होगा। हालांकि अनुशासन के बावजूद किसी भी तरह की अस्वस्थता न हो, इसकी गारंटी नहीं। बीमारी की नमी जब फैलती है तो समय और धन के साथ शरीर में भी जंग लगा देती है।
अक्सर यह बहुत सहज भाव से कह दिया जाता है कि सब कुछ खाना चाहिए। ज्यादा परवाह करने वाले बीमार हो जाते हैं। आमतौर पर स्वस्थ रहने वाले कहते हैं, हमें तो, नजर न लगे, आसानी से कुछ नहीं होता। जो अपना थोड़ा-बहुत ध्यान रखते हैं, समय पर खाने को उचित मानते हैं, तला-भुना कम खाते हैं, रात को जल्दी सोते और सुबह जल्दी उठते हैं, अगर बीमार हो जाएं तो सुना दिया जाता है कि आप तो इतना कुछ करते रहते हैं, फिर भी बीमार हो जाते हैं। यह कहा जाता है कि जो लोग व्यायाम के लिए समय नहीं निकालते, उन्हें बीमारी के लिए समय निकालना पड़ता है।
यह बात हर युग का सत्य है, लेकिन मनोरंजन और खाने-पीने में व्यस्त हम स्वास्थ्य के प्रति लगभग उदास रहते हैं। बहुत सारी भारतीय महिलाओं को लगता है कि घर का सामान्य काम काज ही व्यायाम है, लेकिन ऐसा नहीं है। अब तो अधिकांश घरों में सुविधाएं बढ़ती जा रही हैं और व्यायाम मानी जा सकने वाली घरेलू क्रियाएं कम होती जा रही हैं। हर काम के लिए कोई न कोई मशीन उपलब्ध है।
ग्रामीण क्षेत्रों में जहां आर्थिक व्यवस्था, अनपढ़ता के कारण अभी तक जीवन शैली नहीं बदली है, समय पर खाना, सोना और चलना-फिरना सब जारी रहता है, मगर वहां भी स्वास्थ्य की हालत खासी पतली है। शायद इसलिए कि स्वस्थ रहने के लिए जिन बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है, वे नहीं रखी जा पातीं। यह सेहत के प्रति उदासीनता का ही तो उदाहरण है कि अब भी कई जगह टीके की दूसरी और कहीं-कहीं तो पहली खुराक के लिए व्यवस्था को पापड़ बेलने पड़ रहे हैं।
स्वस्थ रहने में जीवन शैली की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, जिसका कोई विकल्प नहीं है। शरीर से जुड़ी ज्यादातर समस्याओं का समाधान, सुबह नियमित व्यायाम है, जिसमें सैर जरूरी है। सुबह की धूप शरीर को बहुत फायदा देती है। रात को जल्दी सोना, सुबह जल्दी उठना सुनहरा नियम है। कोरोना ने हमारे जीवन की सेहत के खेत में कई अच्छे पौधे लगवा दिए हैं, जिनकी संजीदा देखभाल करना हमारी स्वास्थ्य आदतों में शुमार रहना चाहिए, ताकि किसी भी किस्म की बीमारी दूर ही रहे और अच्छा स्वास्थ्य हमेशा हमारी दौलत बना रहे।