सम्पादकीय

GNCTD Amendment Bill 2021 : विश्व के तमाम संघीय देशों की राजधानियों में अलग प्रशासनिक सिस्टम , भारत में विरोध क्यों

Gulabi
26 March 2021 10:06 AM GMT
GNCTD Amendment Bill 2021 : विश्व के तमाम संघीय देशों की राजधानियों में अलग प्रशासनिक सिस्टम , भारत में विरोध क्यों
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संघीय व्यवस्था के लिए खतरा बताने वाले वोटिंग के दौरान रहे गायब

राज्यसभा में विपक्ष के वॉकआउट के बीच राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार संशोधन विधेयक 2021 पेश हुआ और पास हो गया है. लोकसभा में यह बिल 2 दिन पहले ही पास हो गया था. उम्मीद थी कि राज्यसभा में विपक्ष अपनी एकता दिखाएगा और बिल का जोरदार विरोध होगा. भारतीय संघीय ढांचे से छेड़छाड़ के नाम पर विरोध करने वाला विपक्ष इस विधेयक का विरोध करने के लिए राज्यसभा में अपनी एकता भी नहीं दिखा सका. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है और जाहिर है वो भी इसका विरोध कर रही है. विपक्ष का कहना है कि अगर यह विधेयक पारित होता है तो इससे न केवल दिल्ली सरकार और केंद्र की सरकार में चुनौतियां बढ़ेंगी बल्कि यह भारत के संघीय ढांचे को भी कमजोर करेगा. कांग्रेस का कहना है कि केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी खुद दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वकालत करती रही है और अब दिल्ली को उसके अधिकारों से क्यों वंचित कर रही है. पर सवाल यह है कि दुनिया में और भी संघीय गणराज्य हैं और वहां की राजधानियों में भी अलग प्रशासनिक व्यवस्था है पर कहीं भी इस तरह का विवाद नहीं है.


संघीय व्यवस्था के लिए खतरा बताने वाले वोटिंग के दौरान रहे गायब

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार संशोधन विधेयक 2021 राज्यसभा में 83 वोटों के साथ बुधवार को पास हो गया इसके विरोध में 45 वोट पड़े इस विधेयक के पास होने में सबसे खास बात यह रही कि जिस विपक्ष ने इस विधेयक को संघीय व्यवस्था के लिए खतरा बताया था, राज्यसभा में वोटिंग के दौरान अपनी एकता भी नहीं दिखा सका. बीजेडी, वाईएसआरसीपी और समाजवादी पार्टी के सांसदों ने सदन से वॉकआउट कर दिया. जिसका फायदा सीधे-सीधे सरकार को हुआ और उसने यह विधेयक राज्यसभा में पास करा लिया. लोकसभा में यह विधेयक दो दिन पहले ही पास हो गया था, जिसके बाद अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन जाएगा.

विश्व के तमाम शहरों में उप राष्ट्रीय सरकारें

दरअसल विश्व में इस समय तमाम बड़े शहरों को एक मजबूत स्वायत्त ढांचे के सांचे में ढाला जा रहा है. राजधानी वाले शहरों में एक अलग तरह की व्यवस्था दुनिया के कई देशों में है. हम वैश्विक स्तर पर देखें तो ऐसे कई बड़े मेगापोलिस शहर हैं जहां मजबूत उप राष्ट्रीय सरकारें हैं जिनके मेयर बिना राष्ट्रीय हित से समझौता किए सरकार के प्रमुख बने हुए हैं . इनमें जकार्ता, सियोल, लंदन और पेरिस जैसे बड़े शहर हैं. यहां तक कि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने भी उप राष्ट्रीय सरकारों को चुना है लेकिन उनके बीच में भी कभी इतनी ज्यादा चुनौतियां उत्पन्न नहीं हुई.
इसी कड़ी में भारतीय शहरों को एक मजबूत व्यवस्था देने की कवायद जारी है. चूंकी दिल्ली देश की राजधानी है और एक स्टेट होने के साथ-साथ यूनियन टैरिटरी भी है इसलिए यहां की व्यवस्था पहले से ही जटिल थी. इसलिए यहां सुधार की दरकार ज्यादा थी. विपक्ष सरकार पर दबाव बनाने के पहले यह भूल रहा है कि बीजेपी खुद दिल्ली में विधानसभा का चुनाव लड़ती है और लोकसभा में भी दिल्ली का प्रतिनिधित्व है इसलिए वो कोई ऐसे फैसले क्यों लेगी जिससे दिल्ली के नागरिकों को नुकसान हो. दरअसल दिल्ली के नागरिक खुद चाहते हैं राजधानी दिल्ली का यूनियन टैरिटरी वाली स्थित बरकरार रहे. देश में राज्य सरकारों की मूलभूत सुविधाओं को लेकर असफलता की लंबी कहानी रही है. इसलिए लोग चाहते हैं कि केंद्र का हस्तक्षेप बना रहे साथ ही जनप्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी आवाज भी बुलंद रहे इसलिए स्टेटहुड भी बरकरार रहे. इस मुद्दे पर बालकृष्णन समिति ने भी तर्क दिया कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को कभी भी पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता. इसलिए एक विधानसभा के साथ दिल्ली का एक केंद्र शासित प्रदेश होना उसकी अनूठी स्थिति का एकतरफा परिणाम था.

लोकसभा में इस विधेयक पर चर्चा के दौरान भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी का यही कहना था कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में फैली अव्यवस्थाओं को सही करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार यह कदम उठा रही है. मीनाक्षी लेखी ने कहा कि संविधान के तहत दिल्ली में प्रशासनिक मुखिया के रूप में उपराज्यपाल ही सरकार चलाने का अधिकार रखते हैं. केंद्र सरकार इसी बात को संशोधन के माध्यम से और स्पष्ट कर रही है. कांग्रेस ने विरोध करते हुए कहा इस 'असंवैधानिक विधेयक' के माध्यम से केंद्र दिल्ली में पिछले दरवाजे से शासन चलाने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि बीजेपी कभी खुद दिल्‍ली को पूर्ण राज्‍य का दर्जा देने की वकालत करती थी, लेकिन अब यह सरकार दिल्ली में लोकतांत्रिक व्यवस्था खत्म करना चाहती है.

2018 में भी हुई थी खींचतान

यह खींचतान साल 2018 में भी हुई थी जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था और वहां पांच जजों की एक बेंच ने यह फैसला दिया था कि पुलिस भूमि और शांति व्यवस्था को छोड़कर सरकार के दैनिक कामकाज में राज्यपाल दखल नहीं दे सकते हैं. लेकिन केंद्र सरकार के इस नए विधेयक पर फिर से बवाल तेज हो गया है.
इस विधेयक में मुख्य रूप से तीन संशोधन हुए हैं जिसमें पहला यह कहता है कि दिल्ली सरकार को कोई भी फैसला लेने से पहले उपराज्यपाल से उसकी अनुमति लेनी होगी. दूसरा यह विधानसभा द्वारा दिल्ली के उपराज्यपाल के लिए बनाए गए कानून के संदर्भ में सरकार शब्द को परिभाषित करती है, जबकि निर्वाचित सरकार को नहीं. तीसरा संशोधन यह है कि उपराज्यपाल तय करेंगे कि दिल्ली सरकार किन मुद्दों पर उनसे चर्चा करेगी और किन मुद्दों पर नहीं. इन संशोधनों को लेकर कहा जा रहा है कि उपराज्यपाल को दी गई शक्तियां कहीं ना कहीं दिल्ली की विधानसभा की शक्तियों को कमजोर करता है.

क्यों हुआ संघीय व्यवस्था का विकास

दरअसल संघीय व्यवस्था का जन्म कई राष्ट्रीयताओं को मिलाकर एक मजबूत राष्ट्र बनाने के लिए हुई थी. इसी आधार पर भारतीय संविधान निर्माताओं ने इंग्लैंड की प्रणाली के साथ अमेरिका संविधान से संघीय प्रावधान को चुना था. इसका आशय था भारत गणराज्य में शामिल होने वाले सभी राज्यों की भाषा, संस्कृति और सभ्यता की पहचान बरकरार रखी जाएगी. भारत में उन राज्यों के लिए जिनकी भाषा-रीति रिवाज और पहचान कई मायने में दूसरों से अलग है और जिन्हें अपनी पहचान बरकरार रखनी है उनके मामले में इस तरह का कानून अगर केंद्र बनाता है तो यह समझ में आता है कि कुछ अधिकारों का हनन हो रहा है. पर दिल्ली तो देश की राजधानी है और यह पूरे देश के लोगों के दिल के उतने ही नजदीक है जितनी दिल्लीवासियों की. इसलिए ही शायद विपक्ष भी इस मुद्दे पर उतना मुखर नहीं हुआ जितना होना चाहिए था.


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