सम्पादकीय

जीडीपी का संकट

Subhi
1 April 2021 12:58 AM GMT
जीडीपी का संकट
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अर्थव्यवस्था की दशा को लेकर विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे वैश्विक संस्थानों और रेटिंग एजेंसियों ने पिछले कुछ महीनों में जो अनुमान व्यक्त किए हैं,

अर्थव्यवस्था की दशा को लेकर विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे वैश्विक संस्थानों और रेटिंग एजेंसियों ने पिछले कुछ महीनों में जो अनुमान व्यक्त किए हैं, उनसे इस बात का स्पष्ट संकेत मिलता है कि देश की आर्थिकी को संकट से उबरने में अभी वक्त लगेगा। पिछली तीन तिमाहियों के आंकड़े भी इस बात को पुष्ट करते हैं। अब संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2021 में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2019 से भी कम रहने का अनुमान है।

2019 में भारत का जीडीपी 4.2 फीसद रहा था। इसमें कोई संदेह नहीं कि आज भारत सहित दुनिया के ज्यादातर देश भयानक आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं। पिछले एक साल में भारत की अर्थव्यवस्था ने अब तक का सबसे बुरा दौर देखा है। ऐसे में जीडीपी कितनी रहेगी, यह देखने के बजाय जोर इस बात पर ज्यादा होना चाहिए कि कैसे हम उन उपायों को तेजी से लागू करें जो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मददगार साबित हों।
संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग की इस रिपोर्ट में पिछले एक साल और कोरोना महामारी की दस्तक से पहले के आर्थिक परिदृश्य की चर्चा की गई है। भारत की अर्थव्यवस्था साल 2018 से ही ढलान पर आ रही थी। कोरोना संकट से बदहाली तो मार्च 2020 के बाद शुरू हुई थी। इस सच्चाई से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत की अर्थव्यवस्था में संकट की शुरुआत नोटबंदी से हुई और अर्थव्यवस्था पर इसके दूरगामी दुष्परिणाम देखने को मिले। देश की जीडीपी में बड़ी हिस्सेदारी निभाने वाले छोटे उद्योगों के एक तरह से दुर्दिन शुरू हो गए थे।
हालांकि 2019 में सरकार ने कारपोरेट करों में भारी कटौती जैसे उपायों से अर्थव्यवस्था को संभालने की कोशिश की, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। इन सबका असर जीडीपी में लगातार गिरावट के रूप में सामने आया। जहां तक बात पिछले एक साल की है तो पूर्णबंदी के दौरान देश के सभी छोटे-बड़े उद्योगों के बंद रहने से औद्योगिक गतिविधियां जिस तरह से ठप हुर्इं, उसमें तो जीडीपी को रसातल में जाने से बचा पाना संभव ही नहीं था। हां अगर, पूर्णबंदी का फैसला अचानक नहीं करके सुनियोजित तरीके से किया जाता तो काफी हद तक हालात बिगड़ने से बचाए जा सकते थे।
वित्त वर्ष 2020-21 दूसरी और तिमाही के आंकड़ों से इस बात की तसल्ली तो मिली थी कि आर्थिक गतिविधियां शुरू हो चुकी हैं। त्योहारी मांग भी निकली, लेकिन थोड़ी। इसके बाद फिर उत्पादन में कमी के संकेत मिलने लगे। मांग और उत्पादन का जो चक्र बनना चाहिए था, वह अभी तक नहीं बन पाया है। अर्थव्यवस्था में ठहराव को तोड़ पाना आसान नहीं है। फिर भारत की अर्थव्यवस्था है भी काफी बड़ी। देश महंगाई की मार से भी जूझ रहा है। आबादी का बड़ा हिस्सा रोजगार विहीन है और उसके पास खर्च करने के लिए पैसे नहीं हैं। बैंकों का संकट किसी से छिपा नहीं है।
कर्ज लेने वाले भी कतरा रहे हैं और बैंक भी खुल कर कर्ज देने से बच रहे हैं। ऐसे में अर्थव्यवस्था में तेजी आए तो कैसे? अर्थव्यवस्था को लेकर लगाए गए अनुमान कई बार सुनहरी तस्वीर तो पेश कर देते हैं, लेकिन वे हकीकत से मुंह मोड़ जाते हैं। अभी तात्कालिक जरूरत तो यह है कि अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के उपायों पर काम हो। हालांकि सरकार ने अपने नए बजट में सबसे ज्यादा जोर भी इसी पर दिया है। इसलिए देखना होगा कि कितनी जल्दी हमारा जीडीपी संतोषजनक स्तर हासिल कर पाता है।

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