सम्पादकीय

चीन को चुनौती देता जी-7, साझा संकल्प किया जारी

Gulabi
16 Jun 2021 4:14 PM GMT
चीन को चुनौती देता जी-7, साझा संकल्प किया जारी
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ब्रिटेन की मेजबानी में दुनिया के सात विकसित देशों के संगठन जी-7 की शिखर बैठक में लिए गए फैसले चीन के सपने तोड़ सकते हैं

ब्रिटेन की मेजबानी में दुनिया के सात विकसित देशों के संगठन जी-7 की शिखर बैठक में लिए गए फैसले चीन के सपने तोड़ सकते हैं। इस शिखर बैठक में भारत भी मेहमान देश के तौर पर आमंत्रित था। 12 व 13 जून को ब्रिटेन में सातों देशों ने चीन के आर्थिक और सामरिक विस्तारवाद की चुनौतियों से मुकाबला करने के लिए जो साझा संकल्प जारी किए हैं, वे वास्तव में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जानसन की पहल पर ही हुए हैं। डोनाल्ड ट्रंप के चार साल के कार्यकाल के दौरान अमेरिका ने विश्व के अहम मंचों और घटनाक्रम से अपने को दूर कर दिया था। उससे चीन को अमेरिका द्वारा छोड़े गए उन स्थानों को भरने का स्वर्णिम मौका मिला था। लेकिन अब जो बाइडन ने लंदन से एलान किया है- अमेरिका इज बैक। शिखर बैठक के बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने कहा- आजाद दुनिया के जनतांत्रिक नेता के तौर पर अमेरिका लौट आया है, जिससे महसूस हो रहा है कि लंबे अर्से बाद हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं।

अमेरिका को पता है कि ताकतवर और आक्रामक हो चुके चीन से वह अकेले नहीं निबट सकता, इसलिए उसने जी-7 का साथ लिया है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में सत्ता संभालने के बाद चीनी लोगों को चाइना ड्रीम यानी चीनी सपना दिखाया था कि 2047 तक यानी नवचीन की स्थापना के सौंवे साल तक चीन को दुनिया का सबसे विकसित देश बनाएंगे। इसके लिए चीनी राष्ट्रपति ने कई महत्वाकांक्षी परियोजनाएं शुरू करने का एलान किया था, जिसमें बेल्ट ऐंड रोड इनीशियेटिव (बीआरआई) शामिल था। चीन को दुनिया के दूरदराज के देशों से ढांचागत यातायात परियोजनाओं से जोड़ने वाले इस प्रोजेक्ट को अब तक दुनिया के ताकतवर देशों से कोई सीधी चुनौती नहीं मिल रही थी और चीन बिना किसी अड़चन के पड़ोसी देशों से लेकर अफ्रीका और यूरोप तक सड़क, रेल व जहाजरानी यातायात के जरिये संपर्कों के जाल बिछाता जा रहा था। माना जाता है कि चीन ने इसके लिए दस खरब डॉलर का बजट बनाया है, जिससे वह पाकिस्तान, श्रीलंका जैसे देशों को अपने चंगुल में फांस कर भारत को घेरने की रणनीति पर आगे बढ़ता रहे।
भारत ने चीन की यह चाल शुरू में ही समझ ली थी, इसलिए उसने बीआरआई में शामिल होने के चीन के निमंत्रण को 2013 में ही ठुकरा दिया था। शुरुआती समर्थन देने के बाद बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों ने भी बीआरआई से किनारा करना शुरू किया। भारत के लिए यह अच्छी बात है कि दक्षिण चीन सागर से लेकर भारत की सीमाओं पर घुसपैठ करने वाले चीन की महत्वाकांक्षाओं पर ग्रहण लगाने के लिए अब दुनिया के ताकतवर देश अमेरिका की अगुवाई में लामबंद हो रहे हैं। अमेरिका के एक आला अधिकारी के मुताबिक, जी-7 द्वारा प्रस्तावित बिल्ड, बैक, बेटर वर्ल्ड (बी-3 डब्ल्यू) चीन के बीआरआई का केवल विकल्प ही नहीं होगा, बल्कि वह बेहतर प्रस्ताव पेश कर बीआरआई की गति को धीमी भी कर सकता है। इस पहल के जरिये छोटे देशों के सामने यह मौका होगा कि वे ढांचागत विकास के लिए चीनी कर्ज के जाल में नहीं फंसें और न ही अपनी संप्रभुता को चीन के सामने गिरवी रख दें। इसलिए चीन के बीआरआई के विकल्प के तौर पर जी-7 देशों ने बी-3 डब्ल्यू योजना पेश की है, जो भारत के लिए एक अच्छी खबर है। भारत ने इसका स्वागत किया है और वह इसमें शामिल हो सकता है।
भारत के खिलाफ पिछले कुछ सालों से चीन के लगातार चल रहे आक्रामक व शत्रुतापूर्ण रवैये के मद्देनजर यह भारत की सामरिक जरूरतों के अनुरूप है कि चीन को उसकी औकात बताने के लिए अमेरिका की अगुवाई में दुनिया की बड़ी ताकतें एकजुट हो रही हैं। ऐसे देशों की शिखर बैठक में मेहमान देश के नेता के तौर पर भाग लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अप्रत्यक्ष तौर पर चीन पर निशाना साधा कि सभी देशों को नियम आधारित और पारदर्शी व्यवस्था का पालन करना चाहिए।
क्रेडिट बाय अमर उजाला
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