सम्पादकीय

विपक्ष के लिए, इमरान खान को अपदस्थ करना हार से भी बदतर जीत होगी

Gulabi Jagat
20 March 2022 10:02 AM GMT
विपक्ष के लिए, इमरान खान को अपदस्थ करना हार से भी बदतर जीत होगी
x
इमरान खान को अपदस्थ करना हार से भी बदतर जीत होगी
के वी रमेश।
पाक यानी पवित्र भूमि पाकिस्तान (Pakistan) में घटनाएं तेजी से घटित हो रही हैं जिनका असर पूरे क्षेत्र पर हो सकता है. जब तीन मुख्य विपक्षी दलों, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी यानी पीपीपी (PPP), पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) यानि (PML N) और जमायत उलेमा ए इस्लाम (फज़ल-उर-रहमान) यानी जेयूआई (एफ) द्वारा पेश किया गया अविश्वास प्रस्ताव 28 मार्च को मतदान के लिए आएगा तो प्रधानमंत्री इमरान खान (Imaran Khan) की हार तय है. विपक्ष ने अपने सदस्यों को एक जगह पर जमा किया हुआ है और इस्लामाबाद के सिंध हाउस में उनकी और सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ यानी पीटीआई के 24 सदस्यों की रखवाली कर रहा है जहां सिंध से आने वाले लोग ठहरे हुए हैं. आम तौर पर नेशनल असेंबली के सभी सदस्यों को पार्लियामेंट लॉज में रखा जाता है लेकिन पीटीआई के जबरन उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिश के डर से पीपीपी और पीएमएल (एन) ने अपने सदस्यों को राजधानी इस्लामाबाद के रेड ज़ोन में सिंध हाउस में रखा है जो उच्च सुरक्षा वाला क्षेत्र है.
अमेरिका में ट्रंप की हार के बाद जिस तरह से कैपिटल हिल पर लोगों ने धावा बोला उस तरह के धावे इस्लामाबाद में भी कोई नई बात नहीं है. हताश पीटीआई ने शुक्रवार को अपने सदस्यों को सिंध हाउस पर धावा बोलने के लिए भेजा ताकि पाला बदलने वाले उसके 24 सांसदों को वापस पार्टी को समर्थन देने को मजबूर किया जा सके. मगर इमारत की रखवाली करने वाली सिंध पुलिस ने इसे विफल कर दिया.
सांसदों को जबरन पाले में रखने की कोशिश
रेड जोन की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार गृह मंत्री शेख रशीद टीवी पर दिखाई दिए और घटना को "दुर्भाग्यपूर्ण" बताया. बार-बार गलती करने वाले सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने खतरनाक गुंडागर्दी को "बच्चे हैं बहक जाते हैं" बताया. इमरान की पार्टी की हताशा ऐसी है कि अब वह संविधान में दल-बदल विरोधी प्रावधान का इस्तेमाल कर अपने सांसदों को जबरन अपने पाले में रखने की कोशिश कर रही है.
विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने एक मीडिया सम्मेलन में कहा कि सरकार का इरादा संविधान के अनुच्छेद 63-ए की उच्चतम न्यायालय से व्याख्या कराने की है. यह पता लगाया जाएगा कि क्या दल-बदल के बाद ही सदस्यों पर अनुच्छेद 63-ए लागू होता है या कोई राजनीतिक दल सदस्यों के टूटने से पहले भी इसका इस्तेमाल कर सकता है. अनुच्छेद 63-ए में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री के चुनाव या विश्वास मत या अविश्वास या धन विधेयक जैसे मामलों में संसदीय दल के निर्देशों का पालन नहीं करके दलबदल करने वाले सांसदों को अयोग्य ठहराने का प्रावधान है.
पाकिस्तान के एटॉर्नी जनरल ने घोषणा की कि वह दस्तावेज तैयार कर रहे हैं और सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध करेंगे कि वह शनिवार के बाद से हर दिन बैठ कर जल्द अपना फैसला सुनाए. ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला तब लिया गया जब चुनाव आयोग ने दल-बदल करने वाले सांसदों पर कार्रवाई करने में असमर्थता जताई. चुनाव आयोग ने कहा कि उसके पास हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है.
सेना की भूमिका
प्रधानमंत्री इमरान खान के गुस्से को वहां की सेना और गहरा कर रही है जिसका पाकिस्तान की गंदी राजनीति में मुख्य मध्यस्थ का रोल होता है. सेना ने दो टूक कह दिया है कि वो इस झगड़े में शामिल होने की जगह साइड में खड़े होकर बस लड़ाई के मजे लेगी. सेना ने 2018 में इमरान को प्रधानमंत्री पद दिलाने में मदद की थी. इमरान खान के पास बहुमत नहीं होने पर सेना ने छोटे दलों को उनको समर्थन देने के लिए राजी कर लिया लिया था. लेकिन इमरान का अहंकार, अर्थव्यवस्था का कुप्रबंधन, पुरानी थकी हुई विदेश नीति और अक्सर सेना के आला अधिकारियों के साथ अभद्र व्यवहार के बाद सेना ने उनसे तौबा कर ली.
यूक्रेन के लिए समर्थन मांगने वाले यूरोपियन यूनियन के राजदूतों के संयुक्त बयान पर इमरान खान ने कह दिया, "क्या हम आपके गुलाम हैं." अमेरिका और यूरोप के साथ संबंध सुधारने में लगे पाकिस्तान सेना के जनरल इस बात से अपमानित महसूस कर रहे हैं.
इससे विपक्ष को क्या फायदा होगा?
अब जबकि संसद में इमरान की हार लगभग तय है, पीपीपी, पीएमएल (एन) और जेयूआई (फजलुर रहमान) के विपक्षी गठबंधन के सामने तुरंत बड़ी चुनौतियां सामने होंगी. सबसे पहले सरकार का गठन और मंत्रिपद के लिए मारा-मारी बड़ी समस्या होगी. पहला सवाल तो यही होगा: क्या प्रधानमंत्री पीपीपी से होगा या पीएमएल (एन) से? एक बार जब यह सुलझ जाएगा तो अगली चुनौती विपक्षी गठबंधन में आने वाले सांसदों को पद देकर उन्हें शांत करने की होगी.
सौभाग्य से विपक्षी गठबंधन के तीसरे ध्रुव जेयूआई (एफ) के पास संसद में एक भी सदस्य नहीं है. फिर भी वह अपने हिस्से की मांग करेगा. फिर सेना के करीब रहने वाले गुजरात के चौधरी शुजात हुसैन और चौधरी परवेज इलाही के पीएमएल (क्यू) को भी जगह देनी होगी. पीटीआई से सांसदों को तोड़ने में उसकी भूमिका प्रमुख रही है. पीएमएल (क्यू) ने पीटीआई को बेसहारा छोड़ दिया है क्योंकि पीटीआई ने पंजाब के मुख्यमंत्री पद और कुछ कैबिनेट बर्थ की उसकी मांग को स्वीकार नहीं किया. चतुर चौधरी जम कर सौदेबाजी करेंगे.
विपक्ष की चुनौतियां
ये सब तो फिर भी आसान है. सरकार को इसके बाद भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. मुद्रास्फीति, महंगाई को कम करना, ईंधन और खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि को रोकना बड़ी चुनौती होगी. खजाना लगभग खाली है क्योंकि पाकिस्तान अपने लाभार्थियों से ऋण और मुफ्त के माल पर मौज करता रहा है. मगर हाल के दिनों में वो भी बहुत मददगार नहीं रहे हैं. सउदी ने उच्च ब्याज पर 3 अरब डॉलर का उधार दिया है और इस्लामाबाद को बहुत सख्ती से कहा है कि ऋण की अदायगी में किसी भी तरह की विफलता पर तत्काल पूरा कर्ज वापस करना होगा. चीन पाकिस्तान की पीड़ा को और बढ़ाएगा क्योंकि वो ऐसा कर्ज नहीं देता जो कोई चुका नहीं सके.
बीजिंग भीख देने में भी विश्वास नहीं रखता. पीटीआई सरकार ने आईएमएफ कार्यक्रम को समाप्त कर दिया है जो मामले को और बदतर बना देता है. जून-जुलाई में अरबों डॉलर के कर्ज का भुगतान करीब होने पर पाकिस्तान को आईएमएफ के साथ नए सिरे से बातचीत करने की आवश्यकता पड़ेगी. उसे दूसरे ऋणदाताओं को भी लगातार ऋणों देते रहने के लिए राजी करना होगा. इसके बाद विदेश नीति से संबंधित दूसरी चुनौतियां आती हैं. संयुक्त राष्ट्र महासभा में यूक्रेन के सवाल पर वोट नहीं करने वाले पाकिस्तान पर पश्चिमी देश खुले तौर पर रूस की निंदा करने का भारी दबाव बनाएंगे. यह आसान नहीं होगा क्योंकि चीन की ओर से भी रूस के लिए दबाव होगा. पाकिस्तान एक स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करने की स्थिति में नहीं है.
इनके अलावा निश्चित रूप से भारत के साथ उसके संबंध सामान्य करने का प्रश्न बना हुआ है. भारत के साथ व्यापार की तत्काल बहाली ही एकमात्र तरीका है जिससे पाकिस्तान गेहूं, चीनी और सब्जियों की कीमतें कम कर सकता है और आम लोगों को कुछ राहत दे सकता है. लेकिन इस तरह के किसी भी फैसले से इमरान और पीटीआई को उन पर हमला करने का अच्छा मौका मिल जाएगा.
नई सरकार के सामने अफगानिस्तान के तालिबान शासन के साथ डूरंड रेखा पर खराब संबंधों को भी सुधारने की चुनौती होगी. संक्षेप में, इमरान की हार पाकिस्तान में मौजूदा विपक्ष के लिए समस्याओं की एक शुरुआत होगी.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
Next Story