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अपने दुखड़ों का हिसाब करते समय सारा ठीकरा दूसरों के सिर पर फोड़ना कई लोगों का स्वभाव बन जाता है
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
अपने दुखड़ों का हिसाब करते समय सारा ठीकरा दूसरों के सिर पर फोड़ना कई लोगों का स्वभाव बन जाता है। कार्यस्थल पर तो अक्सर देखा ही जाता है कि लोग अपनी कमजोरी, अपनी कामचोरी दूसरों पर थोप देते हैं। बॉस को लगता है नीचे काम करने वाले लोग ठीक से काम नहीं कर रहे, अधीनस्थों को लगता है बॉस के एटीट्यूड का हमारी कार्यक्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। कुल मिलाकर एक-दूसरे को दोषी बताया जाता है।
ऐसी स्थिति में काम करना कठिन होता है। चाहे आपके पास नेतृत्व हो या आप अधीनस्थ हों, यदि लंबे समय प्रतिकूल परिस्थिति में रहे तो भीतर एक चिड़चिड़ापन उतर आएगा। इसलिए सामने वाला जिसके साथ काम करना है, यदि कमजोर है, आपकी कसौटी पर खरा नहीं है तो सावधानी रखिएगा कहीं आपके भीतर स्वभावगत दोष न उतर आए। आप बात-बात पर झल्लाने न लग जाएं। इससे एक प्रकार की थकान उतर आती है।
थकान तीन जगह टिकाई जाती है- शरीर पर, मन पर और आत्मा पर। शरीर पर टिकेगी तो थोड़े विश्राम के बाद फिर काम करने लग जाएंगे, पर इसका असर स्वास्थ्य पर पड़ेगा। थकान यदि मन पर टिकी तो आप उदास हो जाएंगे। हो सकता है डिप्रेशन में आ जाएं। ये दोनों स्थितियां ठीक नहीं हैं। इसलिए योग द्वारा थकान को आत्मा पर ले जाइए। आप स्फूर्त हो जाएंगे, नए उत्साह के साथ फिर जुट जाएंगे।
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