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अश्विनी भटनागर: पढ़ने वाला लिखने वाले से बड़ा होता है, हड़बोंग प्रसाद ने अपनी तोंद खुजाते हुए कहा, आप क्या लिखते हैं उसकी उपयोगिता तभी है जब कोई उसे पढ़े। आप हम पर आश्रित हैं, हम आपके सहारे नहीं हैं। तुम्हारा मतलब है कि लेखकों का अपना कोई महत्त्व नहीं है? जी साहब, उसने तखत पर बेतकल्लुफी से अपने पैर फैला दिए और मुझे हाशिए पर धकेल दिया।
हड़बोंग उसका असली नाम नहीं था। असली नाम कोई जानता भी नहीं था और न ही जानने की जरूरत समझता था। उसके लिए और सबके लिए हड़बोंग काफी था। पूत के पांव पालने में देख कर किसी ने उसे शायद प्यार से हड़बोंग कभी पुकारा था और फिर सबने इस नाम को उसका जन्मजात परिचय मान लिया था। नाम के अनुसार वह काफी शोरशराबा, उधम करने वाला व्यक्ति था।
हर पल उसके दिमाग में कोई न कोई खुराफात चलती रहती थी। उसका चाय-पकौड़े का धंधा भी खुराफात का नतीजा था। नाले के पास एक दिन फिरने गया था, जहां उसे कुछ तेज महक आई। हड़बोंग तुरंत समझ गया कि उसको रसोई गैस का भंडार मिल गया है।
पकौड़ों का शौकीन वह बाल्यावस्था से था, सो उसने पहले तो नाले के उस विशिष्ट स्थल पर कब्जा किया, जहां उसको गैस की महक मिली थी और फिर तुरंत छप्पर डाल कर चूल्हा सुलगा लिया। किसी को कानों-कान खबर नहीं हुई कि हड़बोंग की गैस पाइपलाइन किस स्रोत से जुड़ी है। पर हड़बोंग तो हड़बोंग था। जैसे ही दुकान चल निकली, उसने अपनी खोज और विज्ञान के ज्ञान को बांटना शुरू कर दिया। लोग दांतों तले अंगुली दबा कर उसकी वैज्ञानिक खोज का बयोरा सुनते थे।
यह तो कुछ भी नहीं है, भाई साहेब, आप ये चार लाइटें और तीन पंखे चलते हुए देख रहे हैं? आपको पता है, बिजली कहां से आती है? पावर हाउस से, मैंने कहा। वह हंसने लगा। आपकी आती होगी साहब, क्योंकि हड़बोंग हम हैं, आप नहीं हैं। तो कहां से आती है? हड़बोंग ने अपना बायां हाथ सीधा करके ऊपर उठाया और दाएं से बगल में उगे हुए झुरमुट को खरोंच डाला। पसीने से पुष्पित अंघोरिया जब कुछ शांत हुई, तो उसने अपने पीछे की तरफ इशारा किया। वो पीपल देख रहे हैं साहब?
हां, देख रहे हैं। बस वहीं से आती है। पकौड़ियों की घान उबलते तेल में मचल रही थी। हड़बोंग ने कढ़ाई में कोंचा डाला और उन्हें औंधे मुंह पलट दिया। मेरा चकित चेहरा देख कर वह मुस्कारया। आप नहीं समझे न? समझेंगे भी नहीं, क्योंकि आप ज्ञान तो बांटते रहते हैं, पर विज्ञान पर ध्यान नहीं देते हैं। हम देते हैं और इसीलिए हम धंधा करने में अव्वल हैं।
अच्छा भई, अब बता भी दो कि तुम्हारा विज्ञान क्या है, मैंने हंस कर कहा। आसमान में जो बिजली चमकती है, उसे बिजली क्यों कहते हैं? उसने पूछा, और फिर खुद ही जवाब दिया, क्योंकि वो बिजली है। पावर हाउस वाली बिजली की तरह… पर उससे कहीं ज्यादा वोल्टेज वाली। तो फिर? मैंने कुछ अधीर होकर कहा। तो फिर हमारे दिमाग में एक जुगाड़ आया। हमने पीपल की सबसे ऊंची फुनगी पर एक नंगा तार बांध दिया और उस तार को बैटरी में फिट कर दिया। जब बिजली चमकती है तो तार उसको पकड़ लेता है और बैटरी को इतना चार्ज कर देता है कि वह चार-छह महीने चल जाती है। हमारी लाइट फ्री हो जाती है।
मुझे जोर से हंसी आ गई। आप हंसिए, खूब हंसिए। लिख भी मारिए। आपको पढ़ता कौन है! पर हमारी बात सब सुनते हैं, क्योंकि जुगाड़ का विज्ञान हमारी नस-नस में बसा है। जुगाड़ हर तरह के विज्ञान की तोड़ है। आप नहीं मानेंगे, क्योंकि आपको देसी टैलेंट की कदर नहीं है। सोचिए, अगर हम खूब सारी बिजली आसमानी बिजली से बना रहे होते, तो आज हम नाले के किनारे नहीं, बल्कि चांद और मंगल पर हाउसिंग सोसाइटी के प्लाट काट कर आराम से रह रहे होते।
उसने मुंह बिचकाया, पर क्या करें साहब, हम विदेशी सोच के पीछे दौड़ते हैं, देसी हुनर को दुत्कारते हैं। न जाने कितना टैलेंट है हमारे देश में, पर कोई उसमें तार नहीं लगाता है। रूस-यूक्रेन युद्ध करते हैं गैस के लिए, पर अपने नाले से गैस नहीं लेते हैं। जुगाड़ की परंपरा गोदाम में सड़ रही है, साहब। हमारी कोई सुनता नहीं है।
ऐसा नहीं है दोस्त, मैंने उसको आश्वासन दिया, तुम गुरु हो। वह अकड़ कर बैठ गया। हम छोटे-मोटे देसी गुरु नहीं हैं साहब। हम वैश्विक गुरुघंटाल हैं। हमारा घंटा हर खोंचे पर लटका है। हर खोंचेवाला हर घंटे उसे हमारी शान में बजाता है, क्योंकि सारे विश्व में सिर्फ हम हैं, जो नाले से गैस निकाल कर पकौड़े तलते हैं। वाह! मान गए गुरु, सारी गुरुघंटाल जी, मैंने झुक कर हड़बोंग को प्रणाम किया।
मेरे अभिवादन से वह शान में आ गया। अभी कुछ नहीं हुआ है साहब। अभी तो हमने सिर्फ अंगड़ाई ली है। आपको बता दें कि हमने ऐसा जुगाड़ निकाला है कि गेहूं, दाल, चावल, सब्जी, मसालों की खेती हवा में होगी। जमीन की झंझट खत्म। सारा पोषण हवा वाले अनाज करेंगे। आप जब सांस लेंगे तब गेहूं रोटी बन कर अंदर चला जाएगा। बाकी सब भी वैसे ही पेट में पहुंच जाएंगे। मटर पनीर और रोटी खानी है, तो जोर से एक सांस लीजिए, पूरा स्वाद मिल जाएगा और पेट भी भर जाएगा।
अद्भुत सोच है तुम्हारी, मैंने दाद दी। क्यों नहीं होगी? हम समझ गए हैं, ज्ञान मेहनत से नहीं, जुगाड़ से मिलता है। जो जुगाड़ू है वो घंटाल है। बाकी सब बेकार हैं। हूं, मैंने उसकी हां में हां मिला दी। मन-मन भर की फेंक रहा था। हूं करने के अलावा कोई और चारा नहीं था। देखिए, आप सबसे बेकार हैं, क्योंकि लिखने वाला कोई जुगाड़ नहीं कर सकता है। इसीलिए उनकी कोई वैल्यू नहीं है। जिस अखबार में आप लिखते हैं, उसकी वैल्यू तभी बनती है जब उसके टुकड़े को मोड़ कर उसमें चना मुरमुरा भरा जाता है। चना मुरमुरा भरने के लिए अखबार जरूरी है, उसकी उपयोगिता बाहर से सामान लेकर भरने पर होती है, वरना उसकी खालिस रद्दी को कौन पूछता है? और हमको देखिए, हवा में खेती के जुगाड़ की बात सुन कर सब लोग हमारे आगे-पीछे दौड़ रहे हैं।
अब बस भी करो हड़बोंग, मैंने खीज कर कहा, हवा में खेती! हट! हम दोनों एक पल के लिए चुप हो गए। चुप्पी तोड़ते हुए मैंने चुटकी ली, सांस लेने से अगर पकौड़ों का स्वाद आ जाएगा, तो तुम्हारी दुकान बंद नहीं हो जाएगी? हड़बोंग खिलखिला कर हंसा। साहब कैसे बंद हो जाएगी? हमने अपनी हवा बना रखी है, उसी पर आज तक हमारी दुकान चल रही है और जब तक हवा टाइट नहीं हो जाती, चलती रहेगी।