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- विवाद का आंकड़ा
आॅक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों पर संसद में स्वास्थ्य राज्यमंत्री के बयान को लेकर स्वाभाविक ही विवाद छिड़ गया है। एक सवाल के जवाब में मंत्री ने कहा कि देश में आॅक्सीजन की कमी से एक भी कोरोना मरीज की मौत नहीं हुई। उन्होंने स्पष्ट किया कि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है और उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के आधार पर ही यह तथ्य सामने आया है। अब सरकार और पार्टी के प्रवक्ता मंत्री के बचाव में उतर आए हैं। कागजों पर मौतों की वजह बेशक आॅक्सीजन की कमी न दर्ज की गई हो, पर इसका मतलब यह नहीं कि कोरोना की दूसरी लहर में यह समस्या पेश ही नहीं आई। उस दौरान देश के अनेक अस्पतालों ने लिखित घोषणाएं की थी कि उन्हें जरूरत भर का आॅक्सीजन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। फिर आॅक्सीजन न मिल पाने के कारण होने वाली मौतों के ब्योरे भी तमाम अखबारों और विभिन्न संचार माध्यमों में प्रकाशित-प्रसारित हुए थे। आॅक्सीजन के लिए जगह-जगह हलकान होते परिजनों की तस्वीरें और व्यथा-कथाएं टीवी चैनलों पर दिखाई गई थीं। उस वक्त बहुत सारे स्वयंसेवी संगठनों और धर्मादा संस्थाओं ने आॅक्सीजन सिलिंडर मुहैया कराने का प्रयास किया था। यहां तक कि कई देशों ने आॅक्सीजन भेज कर मदद की थी। खुद केंद्र सरकार ने दूसरे देशों से आॅक्सीजन मंगाया था।
स्वास्थ्य राज्यमंत्री ने बेशक नया-नया काम संभाला है, पर यह नहीं माना जा सकता कि वे इन तथ्यों से वाकिफ नहीं होंगी। आंकड़े हर मामले में सही हों या उन्हें पत्थर की लकीर मान लिया जाए, जरूरी नहीं। आंकड़ों के लिहाज से सरकार का पक्ष सही हो सकता है, पर वास्तविकता किसी से छिपी नहीं है। इसलिए मंत्री का इस संबंध में बयान बहुत बेरहम लगता है। आंकड़े जुटाने या फिर सरकारी कार्रवाई के लिए बने कागजात में कुछ तय खाने होते हैं। सरकारी अमला उन्हीं खानों में हां, ना या कोई संख्या वगैरह लिख कर अपनी जिम्मेदारी पूरी करता है। इसीलिए जुमला भी चलता है- खानापूरी करना। अस्पतालों को इस बीमारी से संबंधित जानकारियां उपलब्ध कराने के लिए जो कागज बनाए गए, चूंकि उनमें मौत के कारण में आॅक्सीजन की कमी का कोई खाना ही नहीं था, इसलिए उन्होंने यह कारण लिखना जरूरी नहीं समझा। मौत के कारण में केवल कोरोना या फिर कुछ और लक्षण लिख कर खानापूरी कर दी। इस तरह आॅक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं हो सका। मगर इसका यह अर्थ नहीं कि सरकार भी उसी को सच मान ले।
अब जब दूसरी लहर का प्रकोप काफी कम हो गया है, उस दौरान हुई मौतों के बारे में अनेक संस्थाएं अध्ययन कर रही हैं। उन्हीं अध्ययनों से यह भी जाहिर हो चुका है कि बहुत सारे अस्पतालों ने मौत का कारण वाले खाने में कुछ नहीं लिखा, उसे खाली छोड़ दिया। इससे मौत के वास्तविक आंकड़े भी दर्ज नहीं हो सके। आंकड़े छिपाने को लेकर राजनीतिक बयानबाजियां भी खूब हुर्इं। केंद्र सरकार बेशक कहे कि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है, पर वह भला इस हकीकत से कैसे मुंह फेर सकती है कि राज्यों को आॅक्सीजन उपलब्ध कराना उसकी जिम्मेदारी थी। यों यह पूरी तरह राज्यों का विषय भी नहीं, समवर्ती सूची का मामला है, जिसमें केंद्र की जिम्मेदारी भी शामिल है। इसलिए कोरोना के इलाज में हुई अनियमितताओं और मौतों के आंकड़े आदि को लेकर वह सिर्फ राज्यों के सिर पर ठीकरा नहीं फोड़ सकती। मंत्री को इस विषय में सुचिंतित बयान देना चाहिए था और आंकड़ों को दुरुस्त कराने का आश्वासन भी।