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मंकीपॉक्स देश के लिए नई बीमारी जरूर है, लेकिन इसके मामले मिलने भर से विशेष चिंता की जरूरत नहीं है।
पिछले 14 जुलाई को केरल में मंकीपॉक्स का मरीज मिला। यह देश में मंकीपॉक्स का पहला मामला था। कुछ दिनों बाद वहीं दूसरा मरीज भी मिला। इससे पहले आज तक कभी भारत में मंकीपॉक्स का विषाणु या मरीज नहीं मिला था। लेकिन मंकीपॉक्स के मरीज मिलने को देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ आश्चर्य या बड़ी चिंता के रूप में नहीं देख रहे। दरअसल, नई बीमारियों और विशेष रूप से जूनोटिक रोगों (जो जानवरों से इंसानों में फैलती हैं) का उभरना अब आम होता जा रहा है।
पिछले आठ दशकों में पूरी दुनिया में लगभग 350 नए रोग सामने आए हैं, और उनमें से दो-तिहाई बीमारियां जानवरों से इंसानों में फैलने वाली रही हैं। सार्स (2002-04), स्वाइन फ्लू एच1एन1 (2009-10), जीका और अब कोविड इसके कुछ उदाहरण हैं। इन बीमारियों के उभरने के पीछे तेजी से पर्यावरण का नुकसान, वनों की कटाई और जंगलों में मानव हस्तक्षेप, बढ़ता वैश्विक तापमान (जो रोगाणुओं को नई परिस्थितियों में अनुकूलन में मदद करता है), तेज और अनियोजित शहरीकरण एवं घनी बस्तियां, रोगाणु रोधी दवाओं का अंधाधुंध उपयोग-विशेष रूप से पोल्ट्री फार्म और कृषि उद्योग में, और वन्यजीव व्यापार में वृद्धि जैसे कई कारण हैं।
मंकीपॉक्स प्रकोप के बीच हाल ही में घाना में मारबर्ग वायरस के फैलने की सूचना मिली है। इस साल की शुरुआत से ऑस्ट्रेलिया में रेस्पिरेटरी सिंसेसिअल विषाणु तेजी से फैला है। भारत में भी पिछले कुछ वर्षों में जीका, निपाह और क्रीमियन कांगो हेमोरेजिक बुखार के वायरस पाए गए हैं। जून के महीने में आए एक वैज्ञानिक अध्ययन में बताया गया है कि जीका वायरस, जिसका कुछ साल पहले तक हमने नाम भी नहीं सुना था, अब आठ भारतीय राज्यों में फैल गया है।
पिछले 11 सप्ताह में मंकीपॉक्स तेजी से फैला है। इसके करीब 13,000 मरीज लगभग 65 देशों में मिले हैं। कोविड महामारी के अनुभव की वजह से लोग चिंतित हैं कि कहीं मंकीपॉक्स एक महामारी और बड़ी समस्या तो नहीं बन जाएगा? लेकिन वैज्ञानिक कारणों पर ध्यान दें, तो ऐसा होने की आशंका बहुत कम है। आश्वस्ति के मुख्य कारण ये हैं कि जहां कोविड सांस से जुड़ा वायरस है और छींकने या खांसने से निकले कणों और बूंदों, दोनों के माध्यम से फैलता है, वहीं मंकीपॉक्स वायरस के प्रसार के लिए प्रभावित व्यक्ति के साथ, सीधे त्वचा से त्वचा का संपर्क होना जरूरी है।
फिर कोविड में जहां बिना लक्षण वाला व्यक्ति भी दूसरे को संक्रमित कर सकता है; वहीं मंकीपॉक्स में लक्षणों वाले व्यक्ति से ही दूसरे व्यक्ति में संक्रमण फैल सकता है। इसलिए मंकीपॉक्स संचरण को आसानी से पहचाना जा सकता है और उसके रोकथाम के उपाय किए जा सकते हैं। इसके अलावा, मंकीपॉक्स तुलनात्मक रूप से एक स्थिर वायरस है, जिसमें बहुत धीमी गति से उत्परिवर्तन होता है। कोविड महामारी में कई चुनौतियां रहीं, लेकिन इसके चलते लगभग सभी देशों में रोग निगरानी प्रणाली और प्रयोगशाला क्षमता बढ़ी है।
यही वजह है कि कई देश मंकीपॉक्स के संक्रमण का पता लगा सके। भारत में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने भी मई, 2022 तक मंकीपॉक्स रोग का पता लगाने और उसके प्रबंधन पर दिशानिर्देश जारी कर दिया था। अगर व्यक्तिगत स्तर पर बात करें, तो मंकीपॉक्स काफी हद तक एक आत्म-सीमित बीमारी है और लोग बिना किसी इलाज के ठीक हो जाते हैं। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गैर-स्थानिक देशों (अफ्रीका के बाहर) में लगभग 12,500 मामले सामने आए हैं, लेकिन इन देशों में अब तक किसी की मौत नहीं हुई है।
कोविड के खिलाफ शुरुआत में कोई इलाज या टीका उपलब्ध नहीं था, जबकि मंकीपॉक्स के लिए कुछ दवाएं और टीके भी उपलब्ध हैं। हालांकि, ये दवाएं और टीके सभी देशों में उपलब्ध नहीं हैं। आम जनता को मंकीपॉक्स टीकाकरण की जरूरत भी नहीं है। इस पृष्ठभूमि में देश में मंकीपॉक्स के मामलों का पता लगना चिंता या घबराहट का कारण नहीं है। हालांकि, यह सभी स्तरों पर सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र को सक्रिय करने का समय है।
बहरहाल, भारत में जरूरत इस बात की है कि टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह इस पर भी विचार-विमर्श करे कि अगर जरूरत पड़े, तो कब, किसको और कैसे टीके लगाए जाएंगे। फिर जूनोटिक रोग एक वास्तविकता बन रहे हैं, उभरती और फिर से उभरने वाली बीमारियों की तैयारी और प्रतिक्रिया के लिए मंझोले से दीर्घकालीन रणनीति की आवश्यकता होती है। प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने, बेहतर ढंग से काम करने वाली रोग निगरानी प्रणाली स्थापित करने, सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यबल को प्रशिक्षित करने और 'वन हेल्थ' दृष्टिकोण (जिसमें मानव, जानवरों और पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए समन्वय किया जाता है) पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
संक्रामक रोगों से लड़ने और निगरानी प्रणालियों के लिए मानव संसाधन और धन की कमी जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य और प्रबंधन संवर्ग को त्वरित तरीके से लागू किया जाना चाहिए। भारत एक वैश्विक वैक्सीन उत्पादक केंद्र है, इसलिए सरकार को उभरती बीमारियों के खिलाफ प्रभावी दवाओं और टीकों के अनुसंधान पर निवेश बढ़ाना चाहिए और अनुसंधान व विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय और घरेलू सहयोग पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
दिलचस्प बात यह है कि हाल ही में पाए गए कई अन्य वायरसों की तरह भारत में मंकीपॉक्स का पहला मामला भी केरल में ही सामने आया है। दरअसल यह केरल में रोग निगरानी प्रणाली के मजबूत होने को इंगित करता है, जो दुर्लभ संचरण का भी पता लगाने के लिए पर्याप्त संवेदनशील है। भारत में मंकीपॉक्स का पहला मामला इसलिए भी सामने आ सका, क्योंकि मरीज ने स्वेच्छा से अपने पॉजिटिव मंकीपॉक्स परीक्षण के बारे में जानकारी साझा की। यह दर्शाता है कि कैसे रोग निगरानी की सफलता नागरिकों की भागीदारी पर निर्भर है। मंकीपॉक्स देश के लिए नई बीमारी जरूर है, लेकिन इसके मामले मिलने भर से विशेष चिंता की जरूरत नहीं है।
सोर्स: अमर उजाला
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