सम्पादकीय

हनुमान जी को महाराष्ट्र में लोक देवता समझ, नवनीत राणा धोखा खा गईं?

Gulabi Jagat
27 April 2022 5:15 AM GMT
हनुमान जी को महाराष्ट्र में लोक देवता समझ, नवनीत राणा धोखा खा गईं?
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हनुमान जी को महाराष्ट्र में लोक देवता समझ
शंभूनाथ शुक्ल |
हनुमान (Hanuman Ji) जितने उत्तर भारत में लोकप्रिय देवता हैं, उतने महाराष्ट्र (Maharashtra) या उसके आगे के दक्षिण भारत में नहीं. वहां के लोक देवता गणपति अर्थात् गणेश जी हैं. हिंदू धर्म में इसीलिए तो 33 करोड़ देवता माने गए हैं. जिसको जो मन करे उसी को ध्यावे! लेकिन हिंदुस्तान में एक और ख़ासियत है, यहां हर क्षेत्र के अपने देवता हैं. अकेले न राम सब जगह पूज्य हैं न श्याम न शिव और न ही मातृशक्तियां. हिंदू धर्म की यह विविधता ही उसे अनूठा बनाती है. इसलिए किसी एक देवता, किसी एक किताब और किसी एक दर्शन के सहारे हिंदू धर्म को नहीं समझा जा सकता. इसके लिए समन्वय को समझना होगा. जिसमें सब समा जाएं, वही हिंदू सनातन धर्म है.
यही कारण है कि न तो पश्चिम बंगाल में जय श्रीराम को सफलता मिली न महाराष्ट्र में हनुमान चालीसा से पब्लिक उद्वेलित होगी. भारत के हर राज्य और क्षेत्र में हिंदू धार्मिक है और अस्थावान है. लेकिन हर क्षेत्र में उसकी आस्था के प्रतीक भिन्न-भिन्न हैं. जैसे पश्चिम बंगाल में देवी दुर्गा के प्रति इतनी आस्था है कि शारदीय नवरात्रि पर षष्ठी के दिन देवी के आगमन पर लोग ख़ुशियां मनाते हैं और खूब उत्सव होता है, तथा जिस दिन देवी अपने मायके से विदा होती हैं, लोग रोते हैं. कुछ ऐसा ही हाल महाराष्ट्र और दक्षिण में है. यहां गणेश चतुर्थी का उल्लास देखते ही बनता है. गणपति की विदाई पर सब दुःखी हो जाते हैं. अमरावती की सांसद नवनीत राणा (Navneet Rana)यह बात समझ नहीं पाईं और हनुमान चालीसा के नाम पर व्यर्थ का वितंडा फैला बैठीं. इस वजह से उन्हें जेल जाना पड़ गया और अभी तक उन्हें ज़मानत नहीं मिल सकी है.
अति उत्साह में नवनीत राणा धोखा खा गईं
राजनीति में धर्म का तड़का लगाने वालों को ध्यान रखना चाहिए कि कहां कौन देवता सर्वमान्य हैं. निश्चय ही उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार में हनुमान जी की प्रतिष्ठा बहुत अधिक है. हर गांव-घर में उनकी फ़ोटो या प्रतिमा मिल जाएगी. पर कश्मीरी पंडितों के घर नहीं मिलेगी. इसी तरह बंगाल, ओडीसा और असम में नहीं मिलेगी. उधर विंध्य के पार के भारत में गणपति बिराजे हैं. वहां पर श्रीराम के न तो मंदिर मिलते हैं न उनकी आराधना करने वाले लोग. जो हैं, वे अधिकांश उत्तर भारत से गए लोग हैं. लेकिन अति उत्साह में नवनीत राणा यहीं धोखा खा गईं. वे हनुमान जी को महाराष्ट्र में लोक देवता समझ बैठीं.
चूंकि नवनीत कौर राणा मुंबई में पली-बढ़ीं हैं, पर वे एक पंजाबी परिवार से हैं, इसलिए उन्होंने हिंदू धर्म का मतलब जय श्रीराम और जय हनुमान समझ लिया. लेकिन उनके पति रवि राणा को तो यह बात समझ में आनी थी. वे क़रीब 13 वर्ष से राजनीति में सक्रिय हैं और महाराष्ट्र की ज़मीन से परिचित भी हैं. यूं नवनीत भी तेलुगू फ़िल्मों की अभिनेत्री रह चुकी हैं. इसलिए उन्हें भी समझ लेना था, कि अपने बयान से वे खुद अपने पैरों पर बेड़ियां डाल लेंगी. सच बात तो यह है कि एमएनएस और बीजेपी के बिछाये जाल में वे फंस गईं. वे निर्दलीय सांसद हैं, उन्हें अमरावती के लोगों के सुख-दुःख का ख़्याल रखना चाहिए था, न कि मातोश्री (मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का आवास) जाकर हनुमान चालीसा बांचने का.
दरअसल उद्धव ठाकरे और उनके भाई एमएनएस अध्यक्ष राज ठाकरे आजकल परस्पर भिड़े हुए हैं. राज ठाकरे को लग रहा है, कि उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में उन्हें उखाड़ देंगे, इसलिए उन्होंने बड़ी चतुराई से एक समुदाय के धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर को मुद्दा बनाया. उन्होंने धमकी दी थी, कि यदि मस्जिदों से लाउडस्पीकर न हटाए गए तो तीन मई से हर मस्जिद के सामने उनके कार्यकर्त्ता जोर-जोर से हनुमान चालीसा बांचेंगे. महाराष्ट्र में विपक्ष के नेता देवेंद्र फड़नवीस ने इसे अपने अनुकूल समझा और वे सरकार पर हमलावर हो गए. नवनीत राणा 2024 के मद्देनज़र बीजेपी के सुर में सुर मिलाने लगीं. क्योंकि वैसे भी वे अपनी जाति के प्रमाणपत्र को लेकर क़ानूनी जाल में उलझी हैं. संभव है वे अगली बार इसका लाभ न ले पाएं. यूं भी वे जिस अमरावती सीट से लोकसभा का चुनाव जीती हैं, वह विदर्भ क्षेत्र में आता है. पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी भी विदर्भ से हैं.
उद्धव ठाकरे अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि बनाने को आतुर हैं
महाराष्ट्र देश के उन राज्यों या क्षेत्रों में है, जहां धार्मिक सुधार आंदोलन मध्य काल में शुरू हो गए थे. चूंकि महाराष्ट्र दक्षिण और उत्तर के बीच का सेतु है, इसलिए दक्षिण में जो भक्ति आंदोलन चले वे पहले महाराष्ट्र ही आए. पहला भक्ति आंदोलन पंढरपुर का था. वहां एकेश्वरवाद का आंदोलन चला. फिर संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव, संत एकनाथ, संत तुकाराम से लेकर संत रामदास तक कई आंदोलन चले. इसलिए धर्म को लेकर भक्ति और एकेश्वरवाद का यहां खूब असर रहा. 19वीं सदी के उत्तरार्ध में बाल गंगाधर तिलक ने सारे भक्ति आंदोलनों को गणेशोत्सव के रूप में पिरो दिया. तब से यहां गणेश या गणपति पूजा को खूब बढ़ावा मिला. पूरे महाराष्ट्र की पहचान गणपति बप्पा हो गए. बाला साहब ठाकरे ने उग्र हिंदुत्त्व का एजेंडा चलाया और उसके बाद से यहां के लोक मानस में राजा रामचंद्र की प्रतिष्ठा हुई. मगर इसके बाद भी गणपति की प्रतिष्ठा बनी रही.
अब बाला साहब के पुत्र सत्ता पा गए हैं, इसलिए अब उन्हें अपनी रणनीति बदलनी ज़रूरी थी. उन्होंने बीजेपी से दूरी बनाई और मराठा स्वाभिमान से जुड़ी शरद पवार की एनसीपी से नज़दीकी बनाई. अब उन्हें बीजेपी से एक दूरी रखनी थी, इसलिए वे अब अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि बनाने को लेकर आतुर हैं. इसी का नतीजा है, नवनीत और उनके पति रवि राणा की गिरफ़्तारी. नवनीत राणा अपने हर बयान से उलझ जाती हैं. जैसे गिरफ़्तारी के बाद उन्होंने कहा, उनके साथ मुंबई पुलिस ने जति सूचक टिप्पणियां कीं और पुलिस ने उन्हें पानी तक नहीं दिया. अगले रोज़ मुंबई पुलिस ने एक वीडियो जारी किया, जिसमें वे थाने में बैठी चाय पी रही हैं. उनके आरोप का यह खंडन है.
फ़िलहाल तो नवनीत राणा को देशद्रोह के आरोप में जेल भेजा गया है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की यह कार्रवाई कुछ अधिक हो गई. क्योंकि नवनीत ने मातोश्री में जाकर हनुमान चालीसा बांचने की बात की थी किसी मस्जिद में नहीं. इसे विरोध का एक अराजक तरीक़ा तो कह सकते हैं, लेकिन देशद्रोह के दायरे में नहीं आएगा. ऊपर से मंगलवार को मुख्यमंत्री ने अपने बचाव में कहा कि यह लड़ाई घंटाधारी भक्तों बनाम गदाधारी भक्तों के बीच है. अर्थात् एक तरह से उन्होंने खुद को गदाधारी बता दिया. गदाधारी का एक अर्थ सत्ताधारी भी है. क्योंकि गदा उसी के पास होगी जिसके पास सत्ता होगी. एक तरह से दोनों पक्ष स्वयं को अधिक हिंदू बताने की कोशिश में हैं. उधर नवनीत राणा अब हर तरह से अपने बचाव में हैं. उन्हें लग रहा है, कि हनुमान चालीसा बांचने का उनका आह्वान उन्हीं के ऊपर भारी पड़ गया है.
इसमें कोई शक नहीं कि महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार अपने कार्यकर्त्ताओं के हौसले खूब बढ़ा देता है. नतीजा यह है कि बीजेपी नेता किरीट सोमैया पर हमला होता है और नवनीत राणा के घर पर शिव सैनिकों का उग्र प्रदर्शन. उद्धव ठाकरे को इस अराजकता पर भी क़ाबू पाना होगा. अन्यथा चुनाव निकट आते-आते कुछ भी अनहोनी होने की आशंका बनी हुई है. सत्ताधारी दल को विनम्र होना चाहिए. बीजेपी के नेता येन-केन-प्रकारेण मुख्यमंत्री को घेरने के प्रयास में हैं. अगले वर्ष विधानसभा चुनाव है और बीजेपी अपनी वापसी चाहती है. उधर एनसीपी और कांग्रेस से घिरे उद्धव ठाकरे भी चाहते हैं कि चाहे जिस तरह से वे अब पूर्ण बहुमत से आएं. इसलिए दोनों के बीच दांव-पेंच तो चलेंगे ही.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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