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![दूसरों से नहीं खुद से करें प्रतिस्पर्धा दूसरों से नहीं खुद से करें प्रतिस्पर्धा](https://jantaserishta.com/h-upload/2025/02/13/4383910-11111111111111111111.webp)
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Vijay Garg : जीवन में सफलता केवल परीक्षा के अंकों से नहीं, बल्कि समग्र विकास और आत्मविश्वास से मिलती है। जीवन किसी भी परीक्षा से बहुत बड़ा है। इसलिए आज के बच्चों को उस आसमान की आवश्यकता है, जहां वे अपनी क्षमताओं का खुले दिल से प्रदर्शन कर सकें।
नरेन्द्र मोदी ने ‘परीक्षा पे चर्चा’ के आठवें संस्करण में सामूहिक संवाद के बजाय ग्रुप डिस्कशन के माध्यम से बच्चों के मन में उथल-पुथल मचा रहे सवालों के बड़ी सहजता से जवाब दिए। कहा गया कि इसमें देश के 3.30 करोड़ छात्र, 20 लाख शिक्षक और साढ़े पांच लाख से अधिक अभिभावक जुड़े। यह अब तक का सार्वकालिक रिकॉर्ड है। इसका महत्व इसलिए है क्योंकि आने वाले दिनों में ही सीबीएसई, आईसीएसई और राज्यों के बोर्ड्स की परीक्षाएं होने जा रही हैं। पीएम ने स्ट्रैस मैनेजमेंट और डिप्रेशन पर भी अपनी बात बेहद प्रभावी रूप से रखी।
दरअसल, एनसीआरबी के आंकड़ों के आधार पर ‘छात्र आत्महत्या : भारत में महामारी’ रिपोर्ट आईसी 3 संस्थान के वार्षिक सम्मेलन और एक्सपो 2024 में लॉन्च की गई थी। इसमें यह चिंताजनक खुलासा हुआ कि देश में जनसंख्या वृद्धि से अधिक छात्र आत्महत्या की दर है। देश में जिस दर से जनसंख्या बढ़ रही है, उससे अधिक तेजी से छात्र आत्महत्या कर रहे हैं। 2021 और 2022 के बीच छात्रों की आत्महत्या में कुछ कमी आई, जबकि छात्राओं की आत्महत्या में वृद्धि हुई। रिपोर्ट में कहा गया है, पिछले दो दशकों में छात्रों की आत्महत्या की दर 4 प्रतिशत की खतरनाक वार्षिक दर से बढ़ी है, जो राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है। रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश वो राज्य हैं, जहां छात्र सबसे ज्यादा आत्महत्या करते हैं। यहां जितने छात्र आत्महत्या करते हैं वह देश में होने वाली कुल छात्र आत्महत्याओं का एक तिहाई हिस्सा है। सबसे प्रमुख बात छात्रों की आत्महत्याओं के पीछे सबसे अहम कारण अवसाद, निराशा और अभिभावकों की अतिमहत्वाकांक्षा है।
यही वजह है कि ‘परीक्षा पे चर्चा’ के दौरान सबसे ज्यादा फोकस स्ट्रैस मैनेजमेंट, डिप्रेशन, शिक्षकों और अभिभावकों की अतिमहत्वाकांक्षा और विद्यार्थियों को मनचाहा खुला आसमान देने पर हुई। कहा गया कि सभी को स्ट्रैस और टाइम मैनेजमेंट पर फोकस करना चाहिए। लिखने की आदत डालनी चाहिए। छात्रों को खुलकर अपनी बात कहने के अधिक से अधिक अवसर देने चाहिए। मन को शांत रखना चाहिए। केवल किताबी कीड़ा नहीं बनना चाहिए। रोबोट नहीं बल्कि इंसान बनना चाहिए और पूरी नींद लेनी चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण संदेश यह रहा कि बच्चों को दूसरों से नहीं, बल्कि स्वयं से प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए। जब हम स्वयं से प्रतिस्पर्धा करते हैं, तो आत्मविश्वास बढ़ता है। दूसरों से तुलना करने पर नकारात्मकता आती है। नकारात्मकता निराशा और डिप्रेशन बढ़ाती है। इसलिए अपनी कमजोरियों को पहचानकर उन्हें सुधारने से सफलता सुनिश्चित की जा सकती है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि आज के समय में बच्चों के कोमल मन को प्रतिस्पर्धा के भारी बोझ तले दबाने में घर, परिवार, पैरेंट्स, समाज, शिक्षा केंद्र और सोशल मीडिया की नकारात्मक भूमिका है। पहले के समय में 10वीं-12वीं में 60 फीसदी अंक लाने वाला विद्यार्थी भी ‘हीरो’ होता था। लेकिन आज हालात यह हैं कि 90 प्रतिशत अंक भी कम लगने लगे हैं। अब प्रतिस्पर्धा 90 प्रतिशत से अधिक अंक लाने वाले बच्चों और विशेष रूप से उनके अभिभावकों के बीच बढ़ने लगी है। कुछ माता-पिता ने तो इसे अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़ दिया है। जिसके कारण वे बच्चों पर अत्यधिक दबाव डालते हैं।
प्रधानमंत्री ने सही कहा है कि बच्चों को प्रेशर कुकर की तरह दबाव में रखना अब अभिभावकों और शिक्षकों की सामान्य प्रवृत्ति बन गई है। कई बार अभिभावक मार्गदर्शन देने के बजाय अपनी इच्छाएं और अधूरी आकांक्षाएं बच्चों पर थोपने लगते हैं। कुछ बच्चों का कोमल मन इस दबाव को सहन नहीं कर पाता, जिससे वे अवसाद में चले जाते हैं या आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठा लेते हैं। बच्चों की आपसी तुलना से बचना चाहिए, क्योंकि इससे उनमें हीनभावना उत्पन्न हो सकती है। माता-पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चों को सिखाएं कि 24 घंटे का सही प्रबंधन कैसे किया जाए।
नि:संदेह, जीवन में सफलता केवल परीक्षा के अंकों से नहीं, बल्कि समग्र विकास और आत्मविश्वास से मिलती है। जीवन किसी भी परीक्षा से बहुत बड़ा है। इसलिए आज के बच्चों को उस आसमान की आवश्यकता है, जहां वे अपनी क्षमताओं का खुले दिल से प्रदर्शन कर सकें। उनका कहना था कि कई बार स्कूलों में केवल मेधावी छात्रों पर ध्यान दिया जाता है, जबकि कमजोर बच्चों को अनदेखा कर दिया जाता है। पीटीएम में अभिभावकों को नीचा दिखाकर हतोत्साहित कर दिया जाता है, जिससे समस्या का समाधान नहीं निकलता।
दुर्भाग्य से कभी किसी भी स्कूल या शिक्षक ने कभी बच्चों की असफलता की जिम्मेदारी नहीं ली है। नि:संदेह, कोई बच्चा पढ़ाई में अच्छा न हो, लेकिन उसमें अवश्य ही एक ऐसा टैलेंट होगा जो उसे आगे बढ़ा सकता है। ऐसे में अभिभावक बच्चे की काबिलियत को पहचानें और उसको उस मनचाहे क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्राचार्य शैक्षिक स्तंभकार गली कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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Gulabi Jagat
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