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पिछले साल कोरोना वायरस की महामारी के बावजूद चीन की घुसपैठ और भारत की जमीन कब्जा करने की उसकी कोशिशों पर चर्चा हो रही थी।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पिछले साल कोरोना वायरस की महामारी के बावजूद चीन की घुसपैठ और भारत की जमीन कब्जा करने की उसकी कोशिशों पर चर्चा हो रही थी। सरकार भी सैन्य या कूटनीतिक चैनल से गतिरोध दूर करने के प्रयास करती दिख रही थी। लेकिन अब चीन के मोर्चे पर क्या हो रहा है, यह किसी को पता नहीं है। काफी समय से दोनों देशों के बीच सैन्य कमांडर स्तर की वार्ता नहीं हुई है, जिसका मतलब है कि यथास्थिति बनी हुई है।
लद्दाख में पैंगांग झील और देपसांग के इलाके में यथास्थिति बने रहने का नया मतलब यह है कि चीन हमारी सीमा में घुस कर, हमारी जमीन कब्जा करके बैठा है और तमाम प्रयासों के बावजूद पीछे नहीं हट रहा है। वह पीछे नहीं हट रहा है इसका नतीजा यह हुआ है कि भारत के 80 हजार से लेकर एक लाख जवान हिमालय की ऊंची बर्फीली चोटियों पर बैठे हैं। माइनस 40 डिग्री की ठंड में भारत के जवान इन चोटियों पर डटे हुए हैं। आमतौर पर नवंबर में ठंड और बर्फबारी शुरू होने के बाद सैनिक पीछे हट जाते हैं। लेकिन इस बार चीन ने ऐसी चुनौती पैदा की है कि मजबूरी में भारतीय सैनिकों को ऊंची बर्फीली चोटियों पर रूके रहना पड़ा है। भारतीय सैनिक चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को आगे बढ़ने से रोकने के लिए वहां बैठे हैं। लेकिन असली प्रयास तो चीन को पीछे हटाने का होना चाहिए! अगर चीन पीछे नहीं हटता है तो अप्रैल 2020 से पहले की यथास्थिति कैसे बहाल होगी?
इस बीच चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने अपनी सेना से कहा है कि वह युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार रहे। चीन के केंद्रीय सैन्य आयोग के प्रमुख के नाते नए साल के अपने पहले संदेश में राष्ट्रपति शी ने सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा और साथ ही यह भी कहा कि तैयारी वास्तविक युद्ध की स्थितियों के लिए होनी चाहिए। उन्होंने अभ्यास ज्यादा करने, मारक क्षमता बढ़ाने और हाई एलर्ट पर रहने का संदेश दिया। हो सकता है कि यह नए साल का रूटिन संदेश हो। लेकिन सोचें, चीन को किसके खिलाफ युद्ध के लिए तैयार रहना है? चीन के आसपास के देश जैसे रूस, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान आदि उसके दोस्त हैं और बाकी देश इतने छोटे हैं कि चीन उनकी दुश्मनी की परवाह नहीं करता है।
सो, चीन की किसी भी तैयारी का एकमात्र निशाना भारत है।
इस बात को दुनिया के देश समझ रहे हैं। तभी अमेरिकी संसद में इसे लेकर एक कानून बनाया गया है। पिछले हफ्ते पास हुए इस कानून में चीन से कहा गया है कि वह भारत के प्रति आक्रामक रवैया खत्म करे और लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जो कर रहा है वह बंद करें। सोचें, सात समुंदर पार अमेरिका ने चीन की मंशा समझ ली, उसे पता है कि लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन गुंडागर्दी कर रहा है, लेकिन भारत सरकार क्या कर रही है? क्या भारत सरकार को भी संसद में इस मसले पर खुली चर्चा करा कर और देश को वास्तविकता बता कर चीन के खिलाफ कोई कानून नहीं बनाना चाहिए, कोई प्रस्ताव नहीं पास करना चाहिए? लेकिन भारत के हुक्मरान इस बात को मानने को ही राजी नहीं हैं कि चीन ने भारत की जमीन हड़प ली है। प्रधानमंत्री से लेकर रक्षा मंत्री तक सब बार-बार एक ही बात दोहराते हैं कि 'न कोई भारत की सीमा में घुसा है और न कोई घुस आया है' या 'एक इंच जमीन किसी को नहीं लेने देंगे'।
सवाल है कि जो जमीन चीन ने ले ली उसका क्या? क्या सरकार उससे अपनी जमीन छुड़ाने के लिए कुछ नहीं करेगी? सरकार क्या यह समझ रही है कि चाइनीज ऐप्स पर पाबंदी लगा देने से चीन पर इतना दबाव हो जाएगा कि वह भारत के सामने झुक जाएगा और जमीन लौटा कर वापस चला जाएगा? अभी खबर है कि दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल प्रोजेक्ट में भारत सरकार ने एक चीनी कंपनी को 11 सौ करोड़ रुपए का ठेका दिया है। इसका मतलब है कि भारत की जमीन हथियाने वाली चीन की कार्रवाई के जवाब में भारत सरकार उसके खिलाफ सैन्य कार्रवाई तो नहीं ही कर रही है, उस पर कोई आर्थिक भार भी नहीं डाल रही है।
कूटनीति या राजनय में भी कहीं ऐसा नहीं दिख रहा है कि चीन को बैकफुट पर लाने के लिए भारत कोई कदम उठा रहा है। अमेरिका ने भारत के खिलाफ आक्रामकता बंद करने के लिए चीन विरोधी कानून बनाने से पहले तिब्बत को लेकर भी एक कानून बनाया, जिसमें उसने कहा कि नया दलाई लामा चुनना और उसे कामकाज सौंपना पूरी तरह से मौजूदा दलाई लामा का अधिकार है, इसमें चीन किसी तरह से दखल नहीं दे सकता है। लेकिन भारत की हिम्मत नहीं हो रही है कि वह अपने देश में पिछले 63 साल से रह रहे दलाई लामा के साथ इस तरह के खड़ा हो, बल्कि भारत में तो इसका उलटा हो रहा है। चीन की चिंता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दलाई लामा को उनके जन्मदिन की बधाई देनी भी बंद कर दी है तो भारत उनके हित की लड़ाई कैसे लड़ सकता है? अमेरिका ने कानून बनाया तो उसे कुछ भी कहने की हिम्मत चीन की नहीं हुई, लेकिन भारतीय मीडिया में यह बात छपी तो चीन ने प्रेस कांफ्रेंस करके भारतीय मीडिया को धमकी दी और उसके बाद से सरकार की तरह ही मीडिया में भी चौतरफा चुप्पी छा गई।
भारत की चुप्पी या झूठ के प्रचार का नतीजा यह हुआ है कि चीन की हिम्मत बढ़ती जा रही है। वह सिर्फ पूर्वी लद्दाख में भारत की जमीन कब्जा करके शांत बैठने वाला नहीं है। वह धीरे धीरे पूरे इलाके पर कब्जा करने की अपनी दक्षिण चीन सागर वाली नीति हिमालय तक ले आया है। उसने लद्दाख से लेकर सिक्कम और अरुणाचल प्रदेश तक अपने पैर फैला दिए हैं। उसने पूर्वी भूटान के ऐसे इलाकों पर दावा किया है, जहां तक पहुंचने के लिए अरुणाचल प्रदेश के बीच से होकर जाना होगा। इसका सीधा मतलब है कि वह भूटान के एक हिस्से के साथ साथ अरुणाचल पर अपना अधिकार जता रहा है। उसने डोकलाम में भारत की जमीन कब्जा की है और भारत की सीमा में कई मील तक अंदर घुसा है यह बात कई बार भाजपा के अपने सांसद तापिर गावो ने कही है। भारत की सीमा पर चीन गांव बना रहा है और अपने लोगों को लाकर वहां बसा रहा है। कर्ज देकर देशों को गुलाम बनाने वाली अपनी 'डेट ट्रैप डिप्लोमेसी' के तहत उसने जिस तरह से पाकिस्तान को अपना उपनिवेश बनाया है वैसे ही नेपाल को भी बना रहा है। म्यांमार से लेकर श्रीलंका और बांग्लादेश तक को उसने कर्ज देकर उन पर अपना अहसान बनाया है।
लब्बोलुआब यह है कि चीन सैन्य तैयारी कर रहा है, विस्तारवादी नीतियों पर चलते हुए भारत की सीमा पर चौतरफा जमीनें कब्जा कर रहा है और भारत के पड़ोसी देशों को अपना उपनिवेश बना रहा है। इसके जवाब में भारत कोई भी सैन्य या कूटनीतिक पहल नहीं कर रहा है।
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