सम्पादकीय

Central Vista Redevelopment Project : सेंट्रल विस्टा जैसी दर्जनों परियोजनाएं एक साथ चलाने से ही बचेगा देश

Gulabi
8 May 2021 6:17 AM GMT
Central Vista Redevelopment Project : सेंट्रल विस्टा जैसी दर्जनों परियोजनाएं एक साथ चलाने से ही बचेगा देश
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Central Vista Redevelopment Project

संयम श्रीवास्तव। कोरोना महामारी से मुकाबला करता देश, ऑक्सीजन के लिए संघर्ष करते लोग, मरीजों को अस्पताल में दाखिल कराने के लिए भागते-दौड़ते तीमारदार , वैक्सीन के लिए लाइन में लगे बूढ़े और जवान और श्मशान में डेडबॉडी जलाने के इंतजार में बैठी भीड़ जानती है कि देश में कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए शासन और प्रशासन ने क्या किया है? जाहिर है कि चाहे शासन स्तर पर या प्रशासन स्तर पर जो भी किया गया है वह ऊंट के मुंह में जीरा के समान ही है. ऐसे समय में जब 20 हजार करोड़ रुपये खर्च करके सेंट्रल विस्टा परियोजना को पूरा करने की बात होती है तो आम आदमी तिलमिलाएगा ही. और ऐसे ही मौके की ताक में होते हैं कुछ नेता ताकि जनता की भावनाओं से खेला जा सके. आज देश में इस कारण ही सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के विरोध में कुछ लोग दिन रात एक किए हुए हैं. पर क्या यह सत्य नहीं है कि घर में किसी की मौत या सामूहिक मौत होती है तो दुनिया रुक नहीं जाती है.


उसी तरह देश के बारें में जब सोचेंगे तो पता चलेगा कि लॉकडाउन 2 महीना या 4 महीने के लिए लगाया जा सकता है, फिर उसके बाद क्या? देश में रोजी-रोजगार का क्या होगा? देश में अभी 80 करोड़ ऐसे लोग हैं जो रोज कमाते हैं तो रोज उन्हें खाने को मिलता है. इसलिए सेंट्रल विस्टा जैसी कम से कम 27 परियोजनाओं पर काम होना चाहिए. और लगातार काम होना चाहिए. क्योंकि अगर हम बीमारी से बच भी गए तो फिर बेरोजगारी और अवसाद के चलते होने वाली भुखमरी के शिकार न बन जाएं. देश और दुनिया का इतिहास गवाह है कि जब-जब अकाल पड़ा है राजाओं ने बड़े महलों का निर्माण कार्य केवल इसी लिए शुरू किया कि वास्तविक गरीब लोगों को दो जून की रोटी मिल सके और राज्य की आर्थिक गतिविधियों को गति मिल सके और व्यापार आदि का कार्य भी चलता रहे. जोधपुर का उम्मेद भवन पैलेस और लखनऊ का रूमी दरवाजा ऐसे ही समय बने थे जब देश में भीषण अकाल पड़ा था. उस समय इन शहरों के राजाओं और नवाबों ने जनता की रोजी-रोटी को ध्यान रखकर बहुत धीमी गति से इनका निर्माण कराया था. धीमी गति इसलिए रखी गई थी कार्य धीरे-धीरे चलता रहे ताकि लोगों की रोजी-रोटी अधिक दिनों तक चलती रहे.


क्या है सेंट्रल विस्टा परियोजना
पहले समझिए सेंट्रल विस्टा क्या है? सेंट्रल विस्टा नई दिल्ली स्थित राजपथ के दोनों तरफ के इलाके को कहते हैं. राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट के करीब प्रिंसेस पार्क का इलाका इसके अंतर्गत आता है. सेंट्रल विस्टा के तहत राष्ट्रपति भवन, संसद, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, उपराष्ट्रपति का घर आता है. इसके अलावा नेशनल म्यूजियम, नेशनल आर्काइव्ज, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स, उद्योग भवन, बीकानेर हाउस, हैदराबाद हाउस, निर्माण भवन और जवाहर भवन भी सेंट्रल विस्टा का ही हिस्सा हैं.

अब समझिए सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को, इस पूरे इलाके जिसे रायसीना हिल भी कहते हैं वहां की पुरानी इमारतों, सचिवालयों को सुधारने और संसद भवन के नवीनीकरण के प्रोजेक्ट को सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का नाम दिया गया है. इस प्रोजेक्ट के तहत अब सांसदों के लिए उनकी आवश्यकता अनुसार नई जगह का निर्माण भी किया जाएगा. इस पूरे प्रोजेक्ट में लगभग 2 0 हज़ार करोड़ खर्च होने का अनुमान है. ऐसा माना जा रहा है कि सेंट्रल विस्टा का काम नवंबर 2021 तक और नए संसद भवन का काम मार्च 2022 तक पूरा कर लिया जाएगा.
जिन लोगों ने इंडिया गेट के आसपास के इलाकों को कभी देखा होगा वो जानते होंगे कि देशभर से आने वाले सैलानियों के लिए ही नहीं बल्कि दिल्ली वालों के लिए भी यह जगह आउटिंग का एक प्रमुख स्थान है. पर यहां चीजें ऐसी बिखरी पड़ी हैं कि लगेगा ही की नहीं देश के सबसे सेंसेटिव व खास एरिया में आप हैं. टूटती रेलिंग , बंद पड़े फव्वारे , खत्म हो चुकी घास और हरियाली, टूटे पड़े नहरों के ऊपर की पुलिया के साथ अवैध रूप से होने वाली पार्किंग, सड़क किनारे लगने वाली दुकानें देखकर ऐसा फील नहीं होता देश की राजधानी के सबसे खास जगह पर हैं. जिन लोगों ने पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद और बांग्लादेश की राजधानी ढाका या नेपाल की राजधानी काठमांडो को देखा होगा वो अपने देश की इस सबसे खास जगह की दुर्दशा को देखकर जरूर शर्मिंदा होते होंगे.

सेंट्रल विस्टा क्यों है जरूरी
हमारा वर्तमान संसद भवन 93 साल पुराना है. इस वजह से ये अंदर से अब उतना सुरक्षित नहीं रह गया है. जाहिर सी बात है कोई भी इमारत अगर इतनी पुरानी हो जाए तो उसके नवीनीकरण की जरूरत तो पड़ेगी ही. इसके साथ ही सबसे बड़ी बात यह है की इस वक्त जो भवन है वह फायर डिपार्टमेंट गाइडलाइंस के हिसाब से नहीं बनाया गया है. मतलब की अगर वहां आग लग जाए तो सुरक्षा की दृष्टि से यह बेहद खतरनाक साबित हो सकता है. लगभग सौ साल पुराने इस इमारत की कई बार मरम्मत कराई जा चुकी है, जिसकी वजह से इमारत की हालत और खराब हो गई है. इसके साथ वहां कई तरह की कंस्ट्रक्शन होने के चलते वेंटिलेशन की भी कमी हो गई है. एक और सबसे बड़ी वजह ये है कि इस संसद भवन में मौजूदा सांसदों के बैठने तक के लिए पर्याप्त जगह नहीं है. भविष्य में सांसदों की संख्या भी बढ़ने वाली है.अब इस सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के पूरा हो जाने के बाद इन सभी समस्याओं का हल निकल जाएगा. हरियाणा बीजेपी के आईटी सेल के हेड अरुण यादव कहते हैं कि दिल्ली में बहुत से मंत्रालय इधर-उधर बिखरे पड़े हैं अगर सभी ऑफिस एक जगह कर दिए जाते हैं तो जनता को सुविधा ही होगी. हम अगर समय-समय पर अपने घर का भी रिनोवेशन करते ही हैं. भविष्य में सांसदों की संख्या बढ़ने ही वाली है वो कहां जाएंगे. अभी ही संसद भवन के अंदर एक कुर्सी लगाने की जगह नहीं बची हैं. सेंट्रल विस्टा का विरोध विपक्ष केवल विरोध के लिए कर रहा है ये ठीक नहीं है.

ऐसी परियोजनाओं से बहुत से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार और बिजनेस जीवित रह सकेंगे
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी होता है कि फैक्ट्रियां चलतीं रहें, कंस्ट्रक्शन होता रहे, व्यापार चलता रहे. लॉकडाउन की स्थिति में भी इस तरह के जितने भी काम चलते रहेंगे उससे इकॉनमी को सांस मिलती रहेगी. अगर इकॉनमी एक बार बैठ गई तो फिर उसे उठाने में बहुत समय लग जाएगा. इकॉनमी की गति बरकरार रहे इसलिए जरूरी है कि देश में सेंट्रल विस्टा जैसी दर्जनों परियोजनाएं अविलंब शुरू की जाएं. नदियों को जोड़ने का काम , रेलवे कॉरिडोर प्रोजेक्ट, बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट, देश के सभी शहरों में मेट्रो का कार्य भी शुरू किया जाना चाहिए. कुछ लोगों का तर्क है कि सेंट्रल विस्टा पर खर्च हो रहे पैसे से हॉस्पिटल्स का निर्माण होने चाहिए. ये सही है कि हॉस्पिटल का निर्माण इस समय सबसे जरूरी है पर अस्पताल बनाने के लिए डॉक्टर्स और पैरामेडिकल स्टाफ की भी जरूरत होती है. दिल्ली में कई अस्पतालों की करोड़ों की लागत से बनी बिल्डिंगों को दशकों से खाली देख चुके लोगों को पता होगा कि वे अस्पताल क्यों कभी जनता के लिए नहीं खुल सके. दरअसल अस्पताल के लिए डॉक्टर और हेल्थकेयर वाली मशीनों के लिए टेक्निशियन की जरूरत होती है. नोएडा और दिल्ली के कई सरकारी अस्पतालों में करोडों की मशीनें केवल इसलिए धूल खा रहीं हैं क्योंकि इन मशीनों को चलाने वालों की हायरिंग ही नहीं हो सकी. हां ये कहा जा सकता है कि अस्पताल के बजाय नहर , सड़कें, आदि बनाई जाएं. दरअसल सड़कें ढेर सारी देश में बन रही हैं और नहरों और नदियों को जोड़ने वाला काम इस देश में पर्यावरणवादियों को संतुष्ट किए बिना शुरू करना मुश्किल होता है. इसलिए इस तरह का कुछ कंस्ट्रक्शन वर्क अगर हो रहा है तो इसका विरोध करना एक तरह देशद्रोह के समान ही होगा. सोचिए कि अगर देश में कई सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट एक साथ चलते हैं तो कितनी सीमेंट की कंपनियां, इस्पात संयत्र बंद होने से बच जाएंगे. लाखों मजदूरों की जिंदगी में उजाला बरकरार रहेगा.


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