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- आतंक का नासूर
Written by जनसत्ता; जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों पर अंकुश लगाना सरकार के लिए अब भी बड़ी चुनौती है। जब भी कोई राष्ट्रीय पर्व आता है या केंद्र सरकार का कोई बड़ा नेता घाटी के दौरे पर होता है, तब दहशतगर्द कुछ अतिरिक्त रूप से सक्रिय हो जाते हैं। जब केंद्रीय गृहमंत्री घाटी के दौरे पर गए, तब भी आतंकी गतिविधियां तेज हो गर्इं। घात लगा कर हमले किए गए।
उसके बाद सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में चार आतंकी मार गिराए। घाटी में दहशतगर्दी के पीछे पाकिस्तान का हाथ किसी से छिपा नहीं है। इस मुद्दे पर वर्षों उसके साथ बातचीत का दौर चलता रहा, मगर उसने इसे रोकने में कोई सकारात्मक पहल नहीं की। अब गृहमंत्री ने कहा है कि सरकार पाकिस्तान के साथ बातचीत नहीं करेगी, वह घाटी से आतंकवादियों का सफाया करेगी और घाटी को सबसे शांत इलाका बनाएगी।
मगर तमाम सख्ती और सक्रियता के बावजूद जिस तरह घाटी में आतंकी संगठनों की मौजूदगी न सिर्फ बनी हुई है, बल्कि वे लगातार सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देते आ रहे हैं, उसे देखते हुए यह दावा करना मुश्किल है कि घाटी में अमन का दौर कब शुरू हो सकेगा। फिर सवाल वही है कि क्या सिर्फ हथियार के बल पर वहां दहशतगर्दी को खत्म किया जा सकता है।
पिछले कुछ सालों से घाटी में अमन बहाली के लिए सख्त सैन्य अभियान चलाए जा रहे हैं। अलगाववादी संगठनों को एक तरह से प्रभावहीन कर दिया गया है। आतंकी संगठनों को वित्तीय मदद पहुंचाने वालों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया है। सीमा पार से होने वाली घुसपैठ पर कड़ी नजर है। घाटी में सैन्य बलों की तादाद पहले से काफी बढ़ाई जा चुकी है।
तलाशी अभियान निरंतर चल रहे हैं। पाकिस्तान की तरफ से सड़क मार्ग के जरिए होने वाली तिजारत पर रोक लगी हुई है, जिससे दहशतगर्दों तक पैसा, हथियार वगैरह की आमद लगभग बंद मानी जा रही है। जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद लंबे समय तक कर्फ्यू रहा, संचार सेवाएं बंद थीं। तब कहा गया था कि आतंकी संगठनों की कमर टूट चुकी है।
कुछ मौकों पर दोहराया भी गया कि घाटी से दहशतगर्दी अब समाप्त होने को है। मगर हकीकत तब सामने आ जाती है, जब कोई बड़ा हमला हो जाता है। वैसे सुरक्षा बलों को निशाना बना कर दहशतगर्द आए दिन हमले करते रहते हैं। जवाब में सुरक्षा बल भी दहशतगर्दों को मार गिराते हैं। फिर भी वे नए सिरे से पूरी तैयारी के साथ प्रकट हो जाते हैं, यह हैरानी की बात है।
कुछ दिनों पहले खुद सरकार ने आंकड़े जारी करके बताया था कि पिछले दो सालों में आतंकी संगठनों में भर्ती होने वाले युवाओं की संख्या लगातार बढ़ी है। जाहिर है, सरकार के तमाम उपायों के बावजूद घाटी में दहशतगर्दों के मंसूबे कमजोर नहीं हो रहे। ऐसे में अगर सचमुच सरकार आतंकवाद खत्म करने को लेकर गंभीर है, तो उसे नई रणनीति बनाने की जरूरत है।
हथियार के बल पर वह इसे समाप्त करने की कोशिशों में कामयाब होती नजर नहीं आ रही। मगर जिस तरह गृहमंत्री ने इस समस्या से पार पाने का दम भरा, उससे प्रकट है कि सरकार हथियार के अलावा दूसरे किसी रास्ते पर विचार नहीं करना चाहती। अब वहां चुनाव की प्रक्रिया शुरू होनी है और आतंकी उसे चुनौती देने के मंसूबे बांध रहे हैं। इसलिए सरकार को हथियार के साथ-साथ स्थानीय लोगों के रुझान को भी समझने का प्रयास करना चाहिए।