सम्पादकीय

आजादी का अमृत महोत्सव: भविष्य के भारत पर नजर

Gulabi
17 Aug 2021 8:17 AM GMT
आजादी का अमृत महोत्सव: भविष्य के भारत पर नजर
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देश की आजादी के अमृत महोत्सव (75वां स्वतंत्रता दिवस) के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

मनीषा प्रियम।


देश की आजादी के अमृत महोत्सव (75वां स्वतंत्रता दिवस) के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले के प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित किया, जो बतौर प्रधानमंत्री उनका लगातार आठवां संबोधन था। अपने प्रभावशाली भाषण में प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की सामाजिक और आर्थिक नीतियों के अलावा अपनी विदेश नीति का भी खुलासा किया। एक घंटे से ज्यादा समय के उनके भाषण के केंद्र में गरीब, छोटे किसान, महिला, बच्चे, युवा थे, तो आतंकवाद, विस्तारवाद और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां भी थीं। उनके भाषण का मूल स्वर भविष्य के नए भारत का निर्माण रहा और उसी से संबंधित अपनी नीतियों व योजनाओं का उन्होंने भाषण में खुलासा किया।



उन्होंने अपने संबोधन में अपनी सरकार की खूबियों, नीतियों तथा आने वाले वर्षों के लिए नीतिगत सोच के बारे में बताया। 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' के साथ 'सबका प्रयास' को जोड़ते हुए उन्होंने कई बार आखिरी व्यक्ति, गरीब महिला और बच्चे, युवा, दलित-पिछड़े और सामान्य वर्ग के गरीब की चर्चा की। उन्होंने रेहड़ी-पटरी वाले और शहरी गरीब के लिए प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना का जिक्र किया, तो हर घर तक नल से जल पहुंचाने की प्रतिबद्धता भी जताई। महिलाओं और बच्चों के लिए प्रधानमंत्री ने राशन की दुकान पर पोषण युक्त चावल मुहैया कराने की बात की और स्वास्थ्य के क्षेत्र में हर अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट लगाने की बात भी उन्होंने की।


हालांकि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को मजबूती देने और ग्रामीण अस्पतालों में डॉक्टरों की सेवा सुनिश्चित करने के लिए क्या-क्या किया जाएगा, इस बारे में उन्होंने अपने भाषण में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में देश के पूर्वी क्षेत्र की तरफ देखने की बात दोहराई। सत्ता में आते ही उन्होंने पहली विदेश यात्रा जापान की की थी और 'लुक ईस्ट' पॉलिसी को उन्होंने 'ऐक्ट ईस्ट' पॉलिसी का दर्जा दिया। पाकिस्तान और चीन का नाम लिए बगैर उन्होंने कहा कि भारत बड़ी हिम्मत के साथ आतंकवाद और विस्तारवाद की चुनौतियों से जूझ रहा है। उनका कहना था कि अब नया और आधुनिक भारत उभर रहा है, जो कड़े फैसले लेने में पूरी तरह सक्षम है। जलवायु परिवर्तन पर भी उनका विशेष ध्यान रहा। मिशन सर्कुलर इकनॉमी के तहत नवीकरणीय ऊर्जा तथा जलवायु परिवर्तन के अंतरराष्ट्रीय लक्ष्यों को हासिल करने का लक्ष्य बनाने की प्रतिबद्धता दोहराते हुए उन्होंने कहा कि भारत स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में बढ़त बनाएगा।

अर्थनीति के क्षेत्र में प्रधानमंत्री ने सहकारवाद का नारा दिया और इसे उन्होंने पूंजीवाद व समाजवाद के बीच की धारा बतलाई। उन्होंने बताया कि यह एक ऐसी मुहिम है, जिसमें लोग एक-दूसरे की मदद करेंगे और महिलाओं के स्वयंसेवी समूहों को सहकारवाद के जरिये बढ़ावा दिया जाएगा। ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क का सहारा लेकर ग्रामीण महिलाओं द्वारा बनाए गए उत्पादों को बाजार से जोड़ने की बात भी उनके भाषण में थी। प्रधानमंत्री ने छोटे किसानों की बात की, जिसका मतलब यह था कि उनका विरोध करने वाले धनी किसान हैं। उन्होंने कहा भी कि उनकी सरकार छोटे किसानों के लिए सिंचाई, भंडारण, विपणन की व्यवस्था कर रही है और किसान सम्मान निधि उनके खातों में पहुंचाई जा रही है।

मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में प्रधानमंत्री ने 'वोकल फॉर लोकल' के नारे को दोहराते हुए कहा कि भारत में निर्मित उत्पाद एक तरह से भारत के ब्रांड एंबेसेडर हैं। हमें 'मेक इन इंडिया' का नारा अपनाना होगा और दुनिया में छा जाने का हमारा सपना होना चाहिए। उन्होंने कहा कि टायर-2 एवं टायर-3 शहरों में नए स्टार्ट अप शुरू होने चाहिए। हो सकता है कि आने वाले दिनों में सरकार इन पर नई नीतियां बनाए और राशि आवंटित कर अपने इन मंसूबों को अमली जामा पहनाए। प्रधानमंत्री मोदी ने देश में एक नए तरह के गवर्नेंस मॉडल लाने की बात कही, जिसमें सरकार कम से कम दखलंदाजी करेगी। उन्होंने पुराने कानूनों के अब भी प्रयोग में लाए जाने का मजाक उड़ाया। उनका कहना था कि सरकार में कुछ ऐसा नवीनीकरण होना चाहिए कि वह स्मार्ट टेक्नोलॉजी का उपयोग कर सके, ताकि सरकार के अनदेखे अंगों में जो बिचौलिए हैं, उनकी मध्यस्थता खत्म की जा सके। गौरतलब है कि सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री ने 'मिनिमम गवर्नमेंट-मैक्सिमम गवर्नेंस' का नारा भी दिया था।

जहां तक नई शिक्षा नीति की बात है, उन्होंने त्रिभाषा पद्धति विशेष रूप से मातृभाषा तथा भारत की क्षेत्रीय भाषाओं को सीखने पर जोर दिया, जिसके जरिये स्कूली बच्चे हिंदी, अंग्रेजी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं के साथ मातृभाषा सीख पाएंगे। इसके अलावा उन्होंने शिक्षा में कौशल को जोड़े जाने की भी बात की। इससे लगता है कि लोगों के हुनर को भी औपचारिक शिक्षा के साथ जोड़ा जाएगा। कौशल आधारित शिक्षा नौकरियां दिलवा पाने में भी कामयाब होगी, यानी जो लोग अनेक वर्षों तक औपचारिक उच्च शिक्षा में समय नहीं व्यतीत कर सकते या मेडिकल, इंजीनियरिंग की डिग्रियां हासिल नहीं कर सकते, उनके लिए अब कौशल आधारित शिक्षा स्कूलों एवं विश्वविद्यालयों में उपलब्ध होगी। पढ़ाई के अलावा खेल पर भी ध्यान दिया जाएगा।

उन्होंने सैनिक स्कूलों के दरवाजे लड़कियों के लिए खोलने की बात कही। समय की महत्ता पर बल देते हुए उन्होंने एक कविता पढ़ी, जिसकी शुरुआती पंक्तियां थीं-यही समय है, सही समय है/ भारत का अनमोल समय है। कुल मिलाकर गरिमामय शैली में प्रधानमंत्री का भाषण सारगर्भित और भविष्य की रूपरेखा बताने वाला था। मगर आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि उनकी सरकार इन नीतियों पर कैसे अमल करती है, खासकर तब, जब देश में तेल व अन्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ी हैं, सरकार की आमदनी घटी है और लोगों के हाथ में भी पैसे नहीं हैं। जो कभी शहरी मजदूर थे, वे गांवों में अदृश्य गरीब बनकर सरकार की सहायता के आसरे बैठे हैं और मध्यवर्ग की भी नौकरियां गई हैं। ऐसे में सहकारवाद और सर्कुलर इकनॉमी गरीब की लाठी कैसे बनें, यह अहम प्रश्न है। आने वाले दिनों में अनेक राज्यों में चुनाव हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री के कैबिनेट के नए चेहरे इन नीतियों का क्रियान्वयन कैसे करेंगे, यह आने वाले दिनों में दिखेगा।


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