सम्पादकीय

स्वीकार कर लें.... बेटी-बेटा एक समान...

Subhi
23 Jan 2022 3:25 AM GMT
स्वीकार कर लें.... बेटी-बेटा एक समान...
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आज समय बदल रहा है। मैं भारतीय परिवारों से जुड़े रिश्तों की बात कर रही हूं। बेटे और बेटियों में आज फर्क खत्म किया जा रहा है। महिला को कल तक अबला समझा जाता था।

आज समय बदल रहा है। मैं भारतीय परिवारों से जुड़े रिश्तों की बात कर रही हूं। बेटे और बेटियों में आज फर्क खत्म किया जा रहा है। महिला को कल तक अबला समझा जाता था। कानून की किताबों में तो अकसर बेटियों को प्राेपर्टी वगैराह के मामलों में नजरंदाज किये जाने की बातें होती रही हैं लेकिन यह भी सच है कि सरकार ने बेटियों के अधिकारों के हक में सामाजिक तौर पर जो नारा दिया उसे राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया गया। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पीएम मोदी की इस पहल को एक पहचान मिली है लेकिन यह भी सच है कि बेटियों को अनेक सरकारी विभागों यहां तक कि ऑटो रिक्शा से लेकर टैंक या मैट्रो चलाने से लेकर अंतरिक्ष में जाने तक एक बड़ा गौरव प्राप्त है। दु:खदायी बात यह है कि आज भी बेटियों को अपने अधिकारों के लिए, अपने पिता की मृत्यु के बाद सरकारी महकमे में नौकरी के लिए गुहार लगानी पड़ती है लेकिन हमारे देश के न्याय के मंदिर की जितनी प्रशंसा की जाये वह कम है क्योंकि अदालती फैसले बेटियों के अधिकारों के मामलों में कई बार न्याय की परिभाषा स्थापित कर जाते हैं। जहां सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू महिला के प्रोपर्टी उत्तराधिकार को लेकर अहम फैसला सुनाया तथा व्यवस्था दी ​कि बिना वसीयत मरने वाले ​हिन्दू पुरुष की बेटी को पिता की सम्पत्ति मिलने का अधिकार है। इसके साथ ही अभी दो दिन पहले राजस्थान हाईकोर्ट ने जैसलमेर की एक बेटी शोभा जो विवाहित थी, पिता गणपत सिंह चौहान जो राजस्थान बिजली डिपार्टमेंट में लाईनमैन थे की मौत हो गयी थी के बारे में शोभा को इंसाफ दिया है।दरअसल महकमे ने यह कहकर शोभा को नौकरी देने से इंकार कर दिया क्योंकि वह अब शादीशुदा है इसलिए वह अपने पति के परिवार का हिस्सा है और पिता के परिवार का हिस्सा वह नहीं है। शोभा ने राजस्थान हाईकोर्ट में अपील की और यहां योग्य जजों ने ऐतिहासिक फैसला लिखा और कहा कि पुराने ख्यालात छोडि़ए और आज बदलते हुए समय में यह बात याद रखिये कि बेटी विवाह के बाद भी माता-पिता के परिवार का हिस्सा रहती है। ना रिश्ते बदलते हैं, ना उसकी जिम्मेवारी बदलती है बल्कि वह बेटों से बढ़कर माता-पिता की देखरेख करती हैं। यह बात अलग है कि एक बेटा माता-पिता की देखरेख के लिए उत्तरदायी है लेकिन बेटी का विवाह हो जाने से यह जिम्मेवारी कम नहीं हो जाती इसलिए अगर पिता की मौत के बाद उसकी बीमार पत्नी सरकारी विभाग में नौकरी नहीं कर सकती तो बेटी को यह नौकरी क्यों नहीं मिल सकती। राजस्थान हाईकोर्ट के इस फैसले से देश में बीस लाख से ज्यादा केसों में उन बेटियों को अब न्याय की आस जगी है जिन्होंने प्राेपर्टी में और कई अन्य मामलों में अपने हकों को लेकर अपील कर रखी है। मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि बेटी और बेटों में कोई फर्क नहीं होता। क्या बेटी विवाह के बाद अपने भाई को राखी नहीं बांधती? क्या बेटी विवाह के बाद अपने मायके में माता-पिता से दु:ख-दर्द के रिश्ते को नहीं निभाती? या अपनी बहनों के साथ आत्मीयता नहीं जगाती? मामा का प्यारा रिश्ता एक मां के भाई के प्यार से ही उत्पन्न होता है। कुल मिलाकर जब आपसी सहमती के बीच बंटवारे नहीं होते तो बेटियों को कोर्ट जाना पड़ता है लेकिन खुशी की बात यह है कि राजस्थान हाईकोर्ट ने 2017 से चल रहे इस केस को पांच साल में निपटा दिया। हम यही चाहेंगे कि इस तरह के केस अगर कोर्टों में पेंडिंग हैं तो वह जल्द ही खत्म किये जाने चाहिए।संपादकीय :द्वारे-द्वारे चुनाव प्रचारइंडिया गेट पर 'नेताजी' की प्रतिमाप्रशासनिक सेवा के अधिकारीसामाजिक न्याय के​ लिए आरक्षण5-जी का पंगायू.पी. में अवधारणा युद्धआज बेटियों को कहीं भी यहां तक कि राष्ट्रीय मानचित्र पर राजनीतिक स्तर पर किसी भी पार्टी से जुड़ने की स्वतंत्रता है। महिलाएं बड़े पद प्राप्त कर चुकी हैं। बेटियां देश की शान बन रही हैं और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल ही कहा कि 2019 के चुनावों में पुरुषों से ज्यादा योगदान महिलाओं ने निभाया है और बेटियां देश की रक्षा में अपना योगदान दे रही हैं। हमारा यह मानना है कि जीवन के हर क्षेत्र में आज के कंप्यूटर के जमाने में पुराने ख्यालात अहमियत नहीं रखते।मैं तो व्यक्तिगत रूप से ब्रह्मकुमारीज संस्थान के आदर्शों की कायल हूं जहां देश को आध्यात्मिक क्षेत्र मेंं आगे लाने का काम देश की बेटियां कड़ी कर्मठता के साथ निभा रही हैं। बदलते समय में बदलाव को स्वीकार करना चाहिए और बेटियां एक लंबी लड़ाई के बाद आज भारत की शान बन रही हैं उन्हें आगे बढ़ने से रोका नहीं जाना चाहिए। यही समय की मांग है और सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था तथा राजस्थान हाईकोर्ट ने विवाहित बेटी को अपने पिता की मौत के बाद नौकरी के हकदार के रूप में जो फैसला उसके पक्ष में दिया है इसे सचमुच एक उदाहरण के तौर पर लिया जाना चाहिए और महिलाओं को अब अबला नहीं सबला मानना चाहिए और बेटियां जीवन के हर क्षेत्र में देश का गौरव बन चुकी हैं तथा इसे तथ्य मानकर हमें आगे बढ़ना चाहिए।

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