सम्पादकीय

राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए आम आदमी पार्टी की नज़र अब हरियाणा पर

Rani Sahu
18 March 2022 10:20 AM GMT
राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए आम आदमी पार्टी की नज़र अब हरियाणा पर
x
पंजाब (Punjab) में भारी जीत और गोवा (Goa) विधानसभा में पहली बार अपना खाता खोलने के बाद आम आदमी पार्टी (AAP) की सियासी भूख और बढ़ गई है

अजय झा

पंजाब (Punjab) में भारी जीत और गोवा (Goa) विधानसभा में पहली बार अपना खाता खोलने के बाद आम आदमी पार्टी (AAP) की सियासी भूख और बढ़ गई है. अब वह अपने राजनीतिक मौजूदगी का विस्तार करने और एक राष्ट्रीय ताकत बनने की कोशिश कर रही है. भगवंत मान के नेतृत्व वाली AAP सरकार ने पंजाब की बागडोर संभाल ली है और इसके साथ ही पार्टी की अब दो राज्यों में अपनी सरकारें होंगी. जाहिर है कि आप अब कांग्रेस के साथ बराबरी कर रही है जिसकी सत्ता भी अब सिर्फ दो राज्यों, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तक ही सीमित है.'
राष्ट्रीय दलों के कुलीन क्लब में शामिल होने के लिए आप को अब दो और राज्यों में एक क्षेत्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त करने की आवश्यकता है. नियम के अनुसार एक पार्टी को राष्ट्रीय दल की पहचान तभी मिलती है जब वो कम से कम चार राज्यों में एक क्षेत्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त कर लेती है. अपने इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आप ने अपने तत्काल विस्तार के लिए चार राज्यों की पहचान की है. इनमें हिमाचल प्रदेश और गुजरात शामिल हैं, जहां इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होंगे. राजस्थान और हरियाणा में क्रमशः 2023 और 2024 में चुनाव होने की उम्मीद है.
हरियाणा अरविंद केजरीवाल के दिल के बहुत करीब है
हरियाणा AAP सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के दिल के बहुत करीब है क्योंकि वह मूल रूप से इसी राज्य से ताल्लुक रखते हैं. इसके अलावा, यह दिल्ली और पंजाब के बीच स्थित है और हरियाणा में जीत से आप का शासन ऐसे तीन राज्यों में होगा जो आपस में जुड़े हुए हैं. अक्टूबर 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में आप के प्रदर्शन की शुरूआत काफी निराशाजनक थी. लेकिन पार्टी अब एक बड़े धमाके के साथ हरियाणा में फिर से प्रवेश करने की महत्वाकांक्षी योजना तैयार कर रही है. सबसे पहले आप ने राज्य के सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में अपने कार्यालय खोले हैं और अब बूथ स्तर पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की दिशा में काम कर रही है. यह अगले हरियाणा विधानसभा चुनाव लड़ने के इरादे से राज्य में बहुप्रतीक्षित नगर पालिका और पंचायत चुनाव लड़ने की तैयारी भी कर रही है. इन स्थानीय चुनावों की घोषणा जल्द ही होने की उम्मीद है.
पहले आम आदमी पार्टी ने कम जाने-पहचाने नेता नवीन जयहिंद को पार्टी का चेहरा बनाकर जुआ खेला था और वह ऐसे डूबी कि पार्टी का राज्य में कोई नामो निशान नहीं बचा. इसके सभी 46 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई, जिसे चुनावों में न्यूनतम आवश्यकता के रूप में देखा जाता है. आप का कुल वोट नोटा (None of the above — उपरोक्त में से कोई नहीं) के पक्ष में डाले गए कुल वोटों से भी बहुत कम था. नोटा मतदाताओं को दी गई एक ऐसी सुविधा है जिसके जरिए वे मैदान में खड़े उम्मीदवारों के प्रति अपनी नाखुशी दर्ज कर सकते हैं.
बहरहाल, आप के लिए हरियाणा में एक विश्वसनीय चेहरे की तलाश जल्द ही समाप्त हो सकती है. पार्टी हरियाणा कैडर के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका के संपर्क में है . तीन दशकों तक नौकरशाह रहे खेमका को भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने ईमानदार और अडिग रुख की वजह से जाना जाता है. अपने करियर के दौरान 54 बार ट्रांसफर किए जाने का उल्लेखनीय रिकॉर्ड भी अशोक खेमका के पास ही है.
खेमका केजरीवाल के राष्ट्रीय सलाहकारों में से एक बन सकते हैं
खेमका और केजरीवाल की दोस्ती 1980 के दशक से चली आ रही है जब दोनों ही प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) खड़गपुर के छात्र थे. केजरीवाल से एक साल सीनियर खेमका कंप्यूटर साइंस के छात्र थे, जबकि केजरीवाल ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी. खेमका 30 अप्रैल, 2025 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं. ऐसे संकेत हैं कि वह हरियाणा में आप की कमान संभालने के लिए समय से पहले सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन कर सकते हैं और केजरीवाल के राष्ट्रीय सलाहकारों में से एक बन सकते हैं . केजरीवाल अपने दोस्त को साल 2013 से ही मनाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे नौकरशाही छोड़ राजनीति में आ जाएं. केजरीवाल अब कामयाब हो सकते हैं क्योंकि पंजाब में AAP की जबरदस्त जीत से खेमका का आत्म-विश्वास बढ़ा होगा और अब वे सक्रिय राजनीति में उतर सकते हैं.
खेमका की छवि एक इमानदार नौकरशाह की है. उन्हें हरियाणा में पिछली कांग्रेस की सरकार ने निलंबित कर दिया था क्योंकि उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और रियल एस्टेट दिग्गज डीएलएफ से जुड़े एक भूमि सौदे के म्यूटेशन को रद्द करने का फैसला लिया था. खेमका का आप के साथ आना ये दिखाएगा कि आप के कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं है. आखिर आप ईमानदार और स्वच्छ शासन देने का दावा ही तो करती है.
भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता की छवि वाले नौकरशाह के साथ आप ने साल 2017 के गोवा विधानसभा चुनावों में भी एक कोशिश की थी लेकिन वह नाकामयाब ही रहा. उस समय आप ने एल्विस गोम्स को राज्य संयोजक और मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया था. पार्टी बुरी तरह विफल रही और उसे एक भी सीट नहीं मिली. बहरहाल, हालिया गोवा विधान सभा चुनावों में इसके दो उम्मीदवारों की जीत और 6.71 प्रतिशत वोट हासिल करने के साथ इसकी खोई हुई प्रतिष्ठा लौट आई है और निस्संदेह ही इस तटीय राज्य में पार्टी के भविष्य की उम्मीदें जागी हैं.
आप चौधरी बीरेंद्र सिंह के संपर्क में भी है
हरियाणा में खेमका ही अकेले ऐसे शख्स नहीं हैं जिसे आप लुभा रही है. ऐसा माना जाता है कि यह हरियाणा में नाराज चल रहे वरिष्ठ नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह के संपर्क में भी है. चौधरी बीरेन्द्र सिंह 2014 में कांग्रेस पार्टी से खुद को अलग कर लिया था और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए थे. इसके बाद सिंह ने कुछ समय के लिए केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया. बहरहाल, अपने सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह, जो कि एक पूर्व आईएएस अधिकारी थे, को केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार में वो मंत्री बनवाने के लिए काफी कोशिश किए लेकिन सफल न हो सके. इसके बाद से वो भाजपा के कटु आलोचक बन गए.
उम्मीद की जा रही है कि बीरेन्द्र सिंह जल्द ही भविष्य की योजनाओं का ऐलान करेंगे. और ये 25 मार्च को हरियाणा के उचाना में आयोजित होने वाले एक रैली में घोषणा होगी जब वे बतौर राजनेता अपने करियर की स्वर्ण जयंती मना रहे होंगे. पंजाब की जीत पर आप की तारीफ करते हुए उन्हें देखा गया. यदि वह आप में शामिल होने का फैसला करते हैं तो इससे पार्टी को जबरदस्त प्रोत्साहन मिलेगा. आखिर बीरेन्द्र सिंह राज्य में जाट समुदाय के एक प्रमुख नेता तो हैं ही साथ में वे मशहूर किसान नेता सर छोटू राम के पोते हैं जिन्हें पूरे हरियाणा में काफी इज्जत के साथ देखा जाता है.
आप का मानना है कि हरियाणा उसके लिए एक उपजाऊ जमीन है और उम्मीद करती है कि खेमका और बीरेंद्र सिंह दोनों जल्द ही पार्टी में शामिल हो जाएंगे. इससे पार्टी की छवि तो मजबूत होगी ही साथ ही राज्य में पार्टी की संभावना और प्रबल हो जाएगी. फिलहाल, आप राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष के खाली जगह को भरने की कोशिश कर रही है. जाहिर है कि कांग्रेस पार्टी के लगातार पतन से राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष का स्थान खाली हो चुका है.
Next Story