सम्पादकीय

सबको साथ लेकर चलने वाली संस्कृति ही आज देश में एक सकारात्मक माहौल के लिए जरूरी

Gulabi Jagat
5 April 2022 8:37 AM GMT
सबको साथ लेकर चलने वाली संस्कृति ही आज देश में एक सकारात्मक माहौल के लिए जरूरी
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कर्नाटक की राजधानी और स्टार्ट-अप तथा तकनीकी-उद्यमों का इंजिन माने जाने वाले बेंगलुरु को अच्छे मौसम का भी वरदान मिला है
शेखर गुप्ता का कॉलम:
कर्नाटक की राजधानी और स्टार्ट-अप तथा तकनीकी-उद्यमों का इंजिन माने जाने वाले बेंगलुरु को अच्छे मौसम का भी वरदान मिला है। यह भारत की सर्वोत्तम मेट्रो सिटी है। यहां के महान शिक्षण संस्थान इन उद्यमों, नए रोजगारों, हाउसिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए प्रतिभाशाली लोग उपलब्ध कराते हैं। लेकिन इसकी सबसे बड़ी विशेषता है इसकी खुशहाल, बेफिक्र और सबको साथ लेकर चलने वाली सामाजिक संस्कृति।
उद्यमशीलता और ग्लैमर के लिए पहले मुंबई को सपनों का शहर माना जाता था, आज बेंगलुरु माना जाता है। अमेरिका ने अपने शहरों को जैसे नाम दिए हैं, मसलन न्यूयॉर्क को 'बिग एपल', शिकागो को 'विंडी सिटी', 'वर्जीनिया इज़ फॉर लवर्स' आदि, उसी तरह बेंगलुरु को 'फील गुड सिटी' नाम दिया जा सकता है। यही कारण है कि आज कर्नाटक और उसकी राजधानी में जो विभाजनकारी कोशिशें हो रही हैं, वे उसकी हवा को खराब करने वाली हैं।
एक समय, भाषा के नाम पर बांटने की राजनीति और उग्र मजदूर आंदोलनों ने बम्बई के जादू को लगभग नष्ट कर दिया था। बेंगलुरु में भी ऐसा हो, यह देश कतई नहीं चाहेगा। देश की अग्रणी बायोटेक उद्यमी किरण मजूमदार शॉ को यही चिंता सता रही है और इसीलिए उन्होंने ट्वीट करके मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई से अपील की कि वे हस्तक्षेप करें और समझदारी बहाल करें।
सांप्रदायिक विभाजन के कई कदमों के बाद हाल ही में जब मुस्लिम व्यापारियों के लिए हिंदू मंदिरों और हिंदू धार्मिक आयोजनों में दुकान आदि लगाने पर रोक लगाने का कदम उठाया गया, तब जाकर यह अपील की गई। कर्नाटक का आम मुसलमान इसे एक तरह का आर्थिक भेदभाव ही मानेगा। व्यापक अर्थ में इसे शुद्ध राजनीतिक मकसद से सामाजिक समरसता को खतरा पहुंचाने की कोशिश के रूप में देखा जाएगा।
राज्य में करीब एक साल के बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। पिछली बार भाजपा ने यहां कांग्रेस-जद(एस) से सत्ता छीन ली थी। उसने अपने मुख्यमंत्रियों को बदला, लेकिन अभी भी वह आंतरिक असंतोष का सामना कर रही है। वर्तमान मुख्यमंत्री को कमजोर माना जाता है और उनका कामकाज भी लस्तपस्त रहा है। कर्नाटक उन राज्यों में नहीं है, जहां भाजपा विपक्ष और खासकर कांग्रेस को हल्के से ले सके।
इसलिए ध्रुवीकरण के चालू फॉर्मूले की जरूरत पड़ी। सोचा गया कि गुजरात और उत्तर प्रदेश में जो फार्मूला काम कर गया वह कर्नाटक में भी काम करना चाहिए। शायद काम कर भी जाए। राजनीति में तो जो चुनाव जितवा दे, वही सबसे उम्दा फार्मूला है, भले ही समाज और नैतिकता के लिहाज से उसका जो भी नतीजा निकले। करीब एक दशक से भाजपा की रणनीति तीव्र ध्रुवीकरण पर केंद्रित रही है ताकि मुस्लिम वोट 'सेकुलर' पार्टियों के लिए बेमानी हो जाएं।
अधिकतर राज्यों में वह 50 फीसदी हिंदू वोट हासिल करके चुनाव जीत सकती है। वैसे, भाजपा को यह भी पता है कि यह फार्मूला 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पूरी तरह कारगर नहीं साबित हुआ था। तब उसका पलड़ा भारी भी था क्योंकि उसका मुकाबला ऐसे शासक दल से था, जो खेमे बदलने के लिए बदनाम रहा है। प्रधानमंत्री ने वहां 21 रैलियां की थीं। इसके बावजूद भाजपा पूरे आंकड़े जुटाने में चूक गई थी।
बेशक एक साल बाद उसने दलबदल करवा के आंकड़े जुटा लिए। पर अब वह एक कमजोर मुख्यमंत्री की सरकार का बोझ ढो रही है। उधर उसके पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा खामोश असंतुष्ट हैं और लिंगायत वोटों के ज्यादा मजबूत दावेदार हैं, जिनके बिना भाजपा सिफर ही है। येदियुरप्पा की तरह बोम्मई भी लिंगायत हैं लेकिन उनके समर्थकों की संख्या येदियुरप्पा से काफी कम है। कर्नाटक दक्षिण में भाजपा का एकमात्र गढ़ है।
लेकिन ध्रुवीकरण की राजनीति सामाजिक समरसता को भंग कर रही है। यह दिमाग में अरबों डॉलर के सूत्र लेकर बेंगलुरु में जमे प्रतिभाशाली युवाओं को विमुख भी कर सकती है। मैं यहां भाजपा के उभरते सितारे और बेंगलुरु (दक्षिण) से सांसद तेजस्वी सूर्या का वह बयान उद्धृत कर सकता हूं, जिसमें उन्होंने स्टार्ट-अप्स के पिछले नेशनल डे पर कहा था कि उनका शहर देश की 40 फीसदी 'यूनिकॉर्न' और 'सूनीकॉर्न' कंपनियों का घर है।
भारत की 95 में से 37 'यूनिकॉर्न' कंपनियां बेंगलुरु में ही स्थित हैं। मुंबई में इनकी संख्या 17, गुरुग्राम में 13, दिल्ली और नोएडा में 4-4 है। बेंगलुरु में आकर आपको आशावाद की महक और चमक महसूस होगी। इसके व्यापारिक भवनों से लेकर आईटी पार्कों और रेस्तरांओं, बार, पब और हवाई अड्डे के वेटिंग एरिया तक में आपको लैपटॉप के पर्दे पर आंखें गड़ाए युवा कोई प्रोडक्ट डिजाइन करते या कोई करार करते, नए सपने बुनते नजर आएंगे।
कोई युवा 'रील' देखते हुए समय बरबाद करता नहीं नजर आएगा। हाल की घटनाओं पर ध्यान दीजिए। हिजाब को लेकर विवाद उठाया गया; अब मंदिरों के आसपास दुकान लगाने में भेदभावपूर्ण रोक लगाई गई। हालांकि कहीं भी व्यापार करने की स्वतंत्रता मौलिक अधिकार है। मवेशियों को लेकर नए कानून बनाए गए; हलाल मीट का बहिष्कार किया गया।
ये सब एक ही चिंताजनक कदमों के उदाहरण हैं। क्या कोई यह कह सकता है कि उद्यमशीलता के विकास और निवेशों को फलने-फूलने के लिए सामाजिक एकता का माहौल जरूरी नहीं है? यह आज का रचनाशील, युवा उद्यमी ही है, जो अरबों के स्टार्ट-अप बनाता है और आर्थिक वृद्धि को गति देता है। अगर कर्नाटक की राजनीति बेंगलुरु से यह माहौल छीन रही है तो निश्चित ही यह माहौल खराब करने वाली हवा है।
दुनिया को देखकर नसीहत लें
हम विभिन्न देशों के हश्र पर नजर डालकर अपने लिए सबक सीख सकते हैं। आज पाकिस्तान में या म्यांमार में कौन निवेश करने या उपक्रम आदि शुरू करने जा रहा है? श्रीलंका में राजपक्षे के नेतृत्व में सिंहलियों के वर्चस्ववाद के उभार के बाद उसकी कितनी बुरी हालत है? दूसरी तरफ यूएई और खासकर दुबई इस उपमहादेश के उद्यमियों के लिए चुंबक जैसे क्यों बने हुए हैं?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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