जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पेड़ पौधे इंसान के लिए उतने ही जरूरी हैं जितने हवा और पानी, लेकिन इंसानी बस्तियां इन्हें काटकर ही बसाई जाती हैं। इंसान इसकी भारी कीमत चुका भी रहा है। उसे प्रदूषण के साथ जीना पड़ रहा है। अनगिनत बीमारियां गले पड़ रही हैं, लेकिन अब इंसान को अपनी गलती का अहसास हो गया है। नए पेड़-पौधे लगाकर वो अब कुदरत का कर्ज उतार रहा है। साथ ही शहरों का प्रदूषण कम करने का प्रयास भी किया जा रहा है। दिल्ली हो, लंदन हो या पेरिस, दुनिया के तमाम शहरों में हरियाली बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है।
लेकिन सभी पेड़ या पौधे एक समान स्तर पर प्रदूषण खत्म नहीं करते। इसके लिए पहले ये जानना जरूरी है कि कहां किस स्तर का प्रदूषण है और फिर उसके मुताबिक ही वहां पेड़ लगाए जाएं। साथ ही ये समझना भी जरूरी है कि पेड़ हवा की गुणवत्ता बेहतर करते हैं, न कि हवा को पूरी तरह साफ करते हैं। हवा स्वच्छ बनाने के लिए जरूरी है कि कार्बन उत्सर्जन कम से कम किया जाए।
पौधे वातावरण के लिए फेफड़ों का काम करते हैं। ये ऑक्सीजन छोड़ते हैं और वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड सोख कर हवा को शुद्ध बनाते हैं। पौधों की पत्तियां भी सल्फर डाई ऑक्साइड और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड जैसे खतरनाक तत्व अपने में समा लेती हैं और हवा को साफ बनाती हैं। यही नहीं, कई तरह के प्रदूषित तत्व पौधों की मखमली टहनियों और पत्तियों पर चिपक जाते हैं और पानी पड़ने पर धुल कर बह जाते हैं।
रिहाइशी इलाकों की तुलना में सड़कों पर प्रदूषण ज्यादा होता है। लिहाजा यहां ज्यादा घने और चौड़ी पत्तियों वाले पेड़ लगाने चाहिए। पत्तियां जितनी ज्यादा चौड़ी और घनी होंगी, उतना ही ज्यादा प्रदूषण सोखने में सक्षम होंगी। एक रिसर्च बताती है कि छोटे रेशे वाली पत्तियों के पौधे भी PM नियंत्रित करने में अहम रोल निभाते हैं। जैसे देवदार और साइप्रस जैसे पेड़ अच्छे एयर प्यूरिफायर का काम करते हैं। रिसर्च में पाया गया है कि इन पेड़ों की पत्तियों में PM 2.5 के जहरीले तत्व सोखने की क्षमता सबसे ज्यादा होती है।
बीजिंग जैसे प्रदूषित शहरों में तो ऐसे ही पेड़ लगाने की सलाह दी जाती है। देवदार की एक खासियत ये भी है कि ये सदाबहार पेड़ है। इसलिए ये हर समय हवा साफ करने का काम करता रहता है। वहीं जानकार ये भी कहते हैं कि बर्फ वाली जगहों के लिए देवदार अच्छा विकल्प नहीं है। चूंकि ये पेड़ बहुत ज्यादा घने होते हैं। लिहाजा सूरज की रोशनी जमीन तक सीधे नहीं पहुंचने देते। इससे बर्फ पिघलने में समय लगता है। साथ ही बर्फ पिघलाने के लिए बहुत से इलाकों में नमक का इस्तेमाल होता है जो कि देवदार के लिए उचित नहीं है।
जानकारों के मुताबिक पतझड़ वाले पेड़ों के कई नुकसान भी हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में चिनार और ब्लैक गम ट्री बड़ी संख्या में लगाए जाते हैं। ये पेड़ बड़ी मात्रा में वोलेटाइल ऑर्गेनिक कम्पाउंड (VOCs) छोड़ते हैं। बेहतर यही है कि जिस इलाके में कुदरती तौर पर जो पेड़ पौधे उगते हैं वही रहने दिए जाएं। जबकि बहुत से जानकारों का कहना है कि जरूरत के मुताबिक अन्य इलाकों के पौधे लगाने में भी कोई हर्ज नहीं हैं। लेकिन जो भी पौधे लगाए जाएं वो नियोजित तरीके से लगाए जाएं।
साथ ही रिसर्चर ये भी कहते हैं कि सड़क किनारे ऐसे पेड़-पौधे लगाए जाएं जिनकी उम्र ज्यादा हो और देखभाल की जरूरत कम हो। इसके अलावा एक ही जगह पर एक ही नस्ल के बहुत सारे पौधे ना लगाए जाएं। किस इलाके में कौन सा पेड़ या पौधा बेहतर रहेगा इसका आकलन करना एक चुनौती भरा काम है। वैज्ञानिक ऐसे उपकरण तैयार कर रहे हैं जिनसे इस चुनौती पर जीत हासिल की जा सकती है।
अमेरिका की फॉरेस्ट सर्विस ने आई-ट्री नाम का एक सॉफ्टवेयर तैयार किया है जिससे जगह के मुताबिक पौधों का चुनाव करने में बहुत आसानी रहती है। फिर भी ओक के पेड़, चीड़ की प्रजातियों वाले पेड़, और सदाबहार के पेड़ प्रदूषण नियंत्रण के लिहाज से काफी अहम माने जाते हैं। शहरों की प्लानिंग में वृक्षारोपण एक अहम हिस्सा हैं, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि उस जगह के वातावरण और माहौल को समझकर ही पेड़ लगाए जाएं। बिना सोचे-समझे लगाए गए पेड़ राहत से ज्यादा मुसीबत का सबब बन सकते हैं।