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चर्चा में है 'No Contact' पॉलिसी, दोस्तों को गले लगाने पर लगाई स्कूल ने पाबंदी

Gulabi Jagat
22 Jun 2022 5:06 PM GMT
चर्चा में है No Contact पॉलिसी, दोस्तों को गले लगाने पर लगाई स्कूल ने पाबंदी
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चर्चा में है 'No Contact' पॉलिसी
No Contact Policy in School : स्कूल का ज़माना याद करते ही आपको अपने वो तमाम दोस्त याद आते होंगे, जिनसे आप मिलते ही या तो हाथ मिलाते थे या फिर बेझिझक उनके गले लग जाते थे. इतना ही नहीं कई बार सीरियस तो कई बार मज़ाक में लड़ाई झगड़े भी हुए होंगे, आखिर इन सबके बिना स्कूल पूरा कहां होता है? ब्रिटेन में एक स्कूल (Mossley Hollins High School ) बच्चों से ये सारी मस्ती-मज़ाक छीन रहा है और उन्हें एक ऐसी पॉलिसी का पालन करने को मजबूर कर रहा है, जिसमें वे अपने दोस्तों को छू नहीं सकते.
यूनाइटेड किंगडम के Mossley Hollins High School में एक ऐसी पॉलिसी छात्रों के लिए लागू की गई है, जिसके तहत वे एक-दूसरे को बिना परमिशन के छू भी नहीं सकते. इस पॉलिसी को अगर आप कोविड से जोड़कर देख रहे हैं तो ये गलत है, क्योंकि ये स्कूल का स्थायी नियम बनाया गया है, जिसके तहत कोई छात्र दूसरे को बिना इज़ाजत लिए छू नहीं सकता.
क्या है जीरो कॉन्टैक्ट पॉलिसी ?
मैनचेस्टर के पास मौजूद Mossley Hollins High School ने इस नियम के तहत किसी भी छात्र को दूसरे से किसी भी तरह का शारीरिक संपर्क रखने से रोका है. नो कॉन्टैक्ट रूल के तहत कोई भी छात्र दूसरे को नहीं छुएगा. इस नियम के तहत एक-दूसरे से लगाव दिखाने वाले जेस्चर, जैसे हाथ पकड़ना, गले लगना या हाथ मिलाने पर भी पाबंदी होगी. न तो छात्र एक-दूसरे को उठा सकेंगे, न ही उनके साथ छूने का कोई खेल खेलेंगे न ही किसी तरह की लड़ाई में हाथापाई करेंगे. मेट्रो की रिपोर्ट के मुताबिक ये नियम ब्रेकटाइम और लंच के दौरान भी लागू रहेगा. बाकायदा नोटिस देकर इस नियम के बारे में जानकारी दी गई है.
माता-पिता भी नियम पर हैरान
आमतौर पर किसी मुश्किल वक्त में सांत्वना देने के लिए या सहारा देने के लिए बच्चे एक-दूसरे के कंधे पर हाथ रखते हैं फिर गले लगाते हैं. ये नियम ऐसी भावनाओं को भी कंट्रोल करता है. ऐसे में बच्चों से लेकर उनके माता-पिता को भी हैरानी हो रही है कि आखिर ऐसी पॉलिसी क्यों बनाई गई? कुछ माता-पिता का कहना है कि बच्चों को इस नियम के ज़रिये रोबोट बनाया जा रहा है, जबकि सोशल मीडिया पर भी इसकी ज़बरदस्त आलोचना हो रही है. स्कूल का कहना है कि ये 25 सालों से चली आ रही प्रैक्टिस है, जिसे अब साफ-साफ कहा गया है, इसके ज़रिये बच्चों को पर्सनल स्पेस दिया जा रहा है.
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