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Delhi: 8 बार की प्रेगनेंसी में भी नहीं बचा बच्चा, जब जापान से आया रेयर ब्लड तब मिली सफलता

Sanjna Verma
13 Jun 2024 10:01 AM GMT
Delhi: 8 बार की प्रेगनेंसी में भी नहीं बचा बच्चा, जब जापान से आया रेयर ब्लड तब मिली सफलता
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New Delhiनई दिल्ली: एक महिला 8 बार गर्भवती हुई, लेकिन हर बार भ्रूण की पेट में ही एनीमिया की वजह से मौत हो रही थी। मां और बच्चे का ब्लड ग्रुप मैच नहीं हो रहा था, जिसकी वजह से भ्रूण एनीमिया का शिकार होकर मर जाता था। बच्चे का ब्लड ग्रुप ओडी फेनोटाइप (OD-Phenotype) था, जो बहुत रेयर है। 9वीं बार एम्स में इलाज हुआ और यहां के डॉक्टरों ने दुनिया भर के सभी प्रमुख देशों में इस रेयर ब्लड ग्रुप की तलाश की। आखिरकार जापान वाले तैयार हुए। डोनर फ्री में ब्लड देने को तैयार थे, लेकिन ब्लड को देश में लाने के लिए जो खर्च था, वह मरीज का परिवार उठा पाने में सक्षम नहीं था। एनजीओ की मदद से एम्स ने इस समस्या का हल निकाला। इस पर लगभग छह से साढ़े लाख रुपये खर्च हुए और दो यूनिट ब्लड लाने में सफल हुए और बच्चे की जान बच पाई।बहुत रेयर है ये ब्लड ग्रुप
एम्स की गायनी विभाग की प्रो डॉक्टर नीना मल्होत्रा ने बताया कि यह ब्लड ग्रुप बहुत रेयर है। यह 1.10 लाख में किसी एक में पाया जाता है और कई बार उन्हें पता भी नहीं होता है। इस महिला का इलाज लेडी हार्डिंग में चल रहा था। पिछली तीन बार जब वह गर्भवती हुईं और उनके भ्रूण की जांच में पाया गया कि वह एनीमिया की वजह से मर रहा है। जांच में पाया गया कि मां और भ्रूण का ब्लड ग्रुप मैच नहीं हो रहा है। वहां के डॉक्टर ने कहा कि आगे भी ऐसा ही होगा। इसलिए बचें। लेकिन वह नौंवी बार भी गर्भवती हुई और फिर वही स्थिति बनी, जिसके बाद उन्हें यहां रेफर किया गया।दो यूनिट ब्लड का खर्च 6 लाख
डॉक्टर नीना ने बताया कि अब हमें पता था कि रेयर ब्लड ग्रुप की वजह से ऐसा हो रहा है, लेकिन ब्लड कहां से आएगा। हमारे हिमेटोलॉजी विभाग के डॉक्टर हेम पांडेय ने सभी देशों के रेड क्रॉस सोसायटी को ईमेल किया। जापान से सबसे पहले जवाब आया और बताया कि दो लोग ब्लड donation के लिए तैयार हैं। हमारे सामने अब समस्या यह थी कि फ्लाइट में इतना ब्लड लाने में जो खर्च आ रहा था, उसे उठाना परिवार के लिए बहुत मुश्किल था। हमने सोशल वर्कर और एनजीओ की मदद ली। दो यूनिट ब्लड लाने में छह से साढ़े छह लाख खर्च आया।
उन्होंने बताया कि इसके बाद यहां पर फिर से ब्लड की जांच की गई, जिसमें तय हुआ कि जो रेयर ब्लड ग्रुप चाहिए था, वही है। उसके बाद एक प्रोसीजर के जरिए गर्भ में पल रहे भ्रूण में ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया गया। यह स्पेशल तकनीक होती है, जिसकी एक्सपर्ट हमारे पास है। अब बच्चे का जन्म हो चुका है और वह पूरी तरह से स्वस्थ्य है। ब्लड रजिस्ट्री की जरूरत पर डॉक्टर ने बताया कि जापान में पांच-पांच जनरेशन की रजिस्ट्री है और हमारे यहां एक जेनरेशन की भी नहीं है। ऊपर से जो एक इंसान देश में इस Rare blood group से मैच किए, वे भी डोनेशन के लिए तैयार नहीं हुए। देश में भी इस तरह की रजिस्ट्री की जरूरत है।
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