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Atul Malikram बोले- कैदियों के पुनर्वास और कल्याण को नजरअंदाज करना समाज के लिए नुकसानदेह

Gulabi Jagat
20 Jun 2024 12:17 PM GMT
Atul Malikram बोले- कैदियों के पुनर्वास और कल्याण को नजरअंदाज करना समाज के लिए नुकसानदेह
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NCRBके आंकड़ों के अनुसार भारतीय जेलों में 50 वर्ष से अधिक उम्र के 73 हजार से ज्यादा कैदी हैं। ऐसे कैदियों की स्थिति और उनकी रिहाई के बाद का जीवन एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिस पर जेल प्रशासन और केंद्र सरकार Central government को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। आज के समय में, जब भारत सामाजिक न्याय india social justice और समावेशी विकास की दिशा में आगे बढ़ रहा है, तो यह जरुरी हो जाता है कि हम अपने कैदी पुनर्वास प्रणाली की भी पुनः समीक्षा करें। जेल से बाहर निकलने के बाद इनका जीवन कैसा होता है, इस पर
शायद
कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। न तो जेल प्रशासन इनकी जानकारी रखता है और न ही केंद्र सरकार इनके पुनर्वास के लिए कोई ठोस नीतियां बनाती है। ऐसा मैं राजस्थान के जेल प्रशासन से मिले उत्तर के आधार पर कह सकता हूं कि शायद उन्हें इस बात की कोई परवाह भी नहीं है कि कैदी जेल से निकलने के बाद कैसी स्थिति में है। सोचने वाले बात है कि जिन कैदियों ने अपने जीवन के 20 -25 या यूं कहें जवानी का पूरा दौर जेल में बिता दिया है, उनसे इतना भी सरोकार नहीं रखा जा सकता कि उनके आगे के भविष्य के बारे में सोचा जाए।
यह स्थिति न केवल इन कैदियों के लिए बल्कि समाज के लिए भी हानिकारक है। यदि इनकी मदद नहीं की जाती है, तो वे फिर से अपराध की ओर लौट सकते हैं। इस समस्या का समाधान करने के लिए, जेल प्रशासन और केंद्र सरकार को मिलकर काम करना होगा। जिसके अंतर्गत 50 वर्ष से अधिक उम्र के सभी कैदियों का डेटाबेस तैयार करना, उनके जेल से बाहर निकलने के बाद के जीवन पर नज़र रखना, उन्हें पुनर्वास और सामाजिक पुनर्गठन के लिए सहायता प्रदान करना जैसी पहलें शामिल की जा सकती हैं। केंद्र सरकार को चाहिए कि ऐसे कैदियों के पुनर्वास के लिए राष्ट्रीय नीति बनाएं, उन्हें रोजगार और स्वरोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए योजनाएं निर्मित करे और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।केंद्र सरकार को चाहिए कि ऐसे कैदियों के पुनर्वास के लिए राष्ट्रीय नीति बनाये जाए, उन्हें रोजगार और स्वरोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए योजनाएं हो और सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाए। हालाँकि यह केवल सरकार और जेल प्रशासन की ही जिम्मेदारी नहीं है। समाज को भी इन कैदियों को स्वीकार करने और उनका समर्थन करने में आगे आने की जरुरत है।
स्वयंसेवी संगठनों के साथ काम किया जा सकता है, जो पूर्व कैदियों के पुनर्वास में मदद करते हैं। पूर्व कैदियों को रोजगार देने के लिए नियोक्ताओं को प्रोत्साहित किया जा सकता है। पूर्व कैदियों और उनके परिवारों के प्रति सामाजिक कलंक को कम करने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जा सकते हैं। 50 वर्ष से अधिक उम्र के कैदियों को दूसरा मौका देने से न केवल उन्हें बल्कि समाज को भी लाभ होगा। यह एक अधिक न्यायपूर्ण और करुणामय समाज बनाने में मदद करेगा।
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