दूसरों के अवगुण को देखकर हमारा ब्लड प्रेशर, हार्टबीट बढ़ता है इसलिए खुद के ऊपर खुद कृपा दृष्टि करो : राजयोगिनी
भिलाई। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा संस्था की अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय माउंट आबू से पधारी संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी संतोष दीदी, उज्जैन से राजयोगिनी उषा दीदी, इंदौर जोन एवं छत्तीसगढ़ की क्षेत्रीय निदेशिका ब्रह्माकुमारी हेमलता दीदी जी, इंदौर से ब्रह्माकुमारी शकुंतला दीदी, मुंबई से ब्रह्माकुमारी भावना दीदी इन ज्ञान गंगाओं के अलौकिक आगमन से सेक्टर 7 स्थित पीस ऑडिटोरियम प्रकाशित हुआ। संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी संतोष दीदी ने ब्रह्मा वत्सो को संबोधित करते हुए कहा कि निराकार परमात्मा ब्रह्मा के तन का आधार लेकर अपनी शक्तियों का अनुभव कराता है| बंधु सखा बनाकर अपना वादा निभाता है|
आज मानव भाषा के, जाति के, संस्कारों के पिंजरे में फंसा हैं, परमात्मा स्वयं अपना परिचय देकर हमें इन पिंजरों से निकालते हैं| हम चाहते हैं कि हमारा मन एकाग्र हो लेकिन भटकता है, हम चाहते हैं की मधुर बोल बोले लेकिन मुख से कठोर वचन निकल जाते हैं| यह सब देह के अधीनता के कारण होते है | दही अर्थात देह के बंधन से न्यारा होकर ही हम अपने कर्मेन्द्रियों को वश में कर सकते हैं|
स्मृति से समृद्धि आती है, हमारे जीवन में दैवीय गुणों की विस्मृति हो गई है| जीवन में मैं और मेरापन रूपी दो दरवाजे नहीं होना चाहिए|
हम आंखों से देखते हैं, कानों से सुनते हैं, मुख से बोलते हैं लेकिन कानों का कोई दरवाजा नहीं है, दो कान अर्थात दुकान बंद, इन्हे अंतर्मुखी बन अंदर से डबल लॉक करो क्योंकि जो सुनते हैं, मन में वह संकल्प चलता है, मुख वह बोलता है| परचिंतन छोड पवित्र श्रेष्ठ ऊंची बातें सुनो, हमारा इंटरेस्ट है तभी लोग फालतू बातें सुनाते हैं पर चिंतन पतन की जड़ है| जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि, हर्षित खुश प्रसन्न रहने के लिए गुणग्राही हंस बनो|
जो ठीक मधुर व्यवहार करते हैं तो आत्मिक कल्याणकारी दृष्टि रहती है लेकिन जो विपरीत व्यवहार करते हैं उन पर भी उपकार करना है, निंदा करने वालों का घर तो हमारे पड़ोस में होना चाहिए जो हमारी कमियां बताता है और हमें संपूर्णता की राह पर ले चलता है| दूसरों के अवगुण, व्यवहार को देखकर दुखी होकर हमारा ब्लड प्रेशर हार्टबीट बढ़ता है इसलिए खुद के ऊपर खुद कृपा दृष्टि करो|
दुनिया की सोचते हैं कि यह दुनिया को समाज को अच्छा नहीं लगेगा लेकिन यह तो कभी सोचा नहीं जिसके पास (परमात्मा के पास) जाना है उसे क्या पसंद है| आत्मा शरीर दोनों अलग-अलग है लेकिन अलग होकर भी एक है। निराकार परमात्मा शिव भी ब्रह्मा के तन का आधार लेते है, दोनों है अलग-अलग लेकिन एक होकर इस संस्था को चला रहे।