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क्या आप ने कभी सोचा बादलों में हवाई जहाज कैसे खोज लेता है रास्ता

Khushboo Dhruw
15 May 2021 7:42 AM GMT
क्या आप ने कभी सोचा बादलों में हवाई जहाज कैसे खोज लेता है रास्ता
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धरती पर जब हम कहीं आते-जाते हैं तो चलना कितना आसान होता है

धरती पर जब हम कहीं आते-जाते हैं तो चलना कितना आसान होता है. ज्यादातर रास्ते हमें याद होते हैं. जो रास्ते याद नहीं होते, हम रुककर किसी न किसी से पूछ लेते हैं और इससे हमारा काम चल जाता है. लेकिन ऐसा हवा में तो नहीं हो सकता. तो फिर हवाई जहाज कैसे चलते होंगे? कैसे पायलट को रास्ता पता चलता होगा, क्योंकि आसमान का तो कोई ओर-छोर ही नहीं है. न कोई सीमा और न कोई देश. फिर भी हवाई जहाज एक जगह से उड़कर दूसरी जगह सुरक्षित पहुंच जाते हैं.

HSI तकनीक पर करते हैं काम
दरअसल, इसका जवाब है HSI यानी होरिजेंटल सिचुएशन इंडिकेटर. पहले नीचे जो तस्वीर दी गई है, उसे देख लीजिए फिर आपको ये आसानी से समझ में आ जाएगा.
इस तस्वीर को देखने के बाद आप अब थोड़ा समझते हैं. दरअसल, पृथ्वी के हर स्थान की स्थिति अक्षांश और देशांतर से नापी जाती है. इसलिए दुनिया के सारे एयरपोर्ट के निर्देशांक, विमान के कंप्यूटर में भरे रहते हैं. हालांकि, पुराने विमानों में कप्तान पहले मैप लेकर चलते थे फिर उन्हें जिस जगह जाना होता है था उसका कोड भर देते थे और HSI की मदद से वहां पहुंच जाते थे.
अब जब विमान किसी एयरपोर्ट पर खड़ा होता है तो उसके कंप्यूटर में उड़ाने भरने और गंतव्य स्टेशन का डेटा भरने से दो त्रिभुज बन जाते हैं..प्रस्थान का नीचे बड़ा और गंतव्य का ऊपर छोटा. उसके बाद कंप्यूटर में गंतव्य स्थल की स्थिति (location)भर दी जाती है. उड़ान भरने के बाद विमान के पहले से ही तय रास्ते होते हैं. यह रास्ते अतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार बनाए जाते हैं. ऐसा जरूरी नहीं है कि विमान एक जगह से उड़कर सीधी रेखा में जाते हुए दूसरी जगह पहुंच जाए. विमान उड़ने के रास्ते पहाड़, हवाएं, मौसम, दूसरे देश की सीमा आदि को ध्यान में रख कर बनाए जाते हैं.
तस्वीर में आप देख रहे होंगे कि नीचे एक त्रिभुज है और ऊपर एक छोटा त्रिभुज. विमान को अपनी जगह से ऊपर वाले त्रिभुज तक पहुंचना है. टेक ऑफ करने के बाद विमान अपना रास्ता पकड़ लेता है. लेकिन किस ऊंचाई और किस रास्ते को पकड़ कर इसे उड़ना है यह बात टेक ऑफ के समय उस एयरपोर्ट का एयर ट्रैफिक कंट्रोलर (ATC) बताता है.
ATC की भूमिका अहम
जब विमान उड़ रहा होता है, तो रास्ते में बीच में कई एयरपोर्ट स्टेशन आते हैं और इन्हीं स्टेशन के सहारे बात करते हुए तथा निर्देश लेते हुए विमान के पायलट को प्लेन उड़ाना पड़ता है. किस दिशा में कितनी ऊंचाई पर उड़ना है यह निर्देश रास्ते के एयरपोर्ट बताते हैं, क्यों कि उनसे उनके क्षेत्र में उड़ने वाले सभी विमानों की स्थिति उन्हें पता होती है. जो दिशा बताई और जो ऊंचाई उन्हें बताई जाती है, पायलट उसका पालन करते हैं और इस काम में HSI तकनीक उनकी मदद करती है.
पहले से तय होते हैं रास्ते
इन हवाई मार्गों की दिशाएं पहले से निश्चित होती है. ताकि उड़ते-उड़ते कोई विमान दूसरे देश या अपने ही देश के अनधिकृत क्षेत्र में प्रवेश न कर जाए. जैसे पकिस्तान के ऊपर या डिफेंस एरिया में या राष्ट्रपति भवन के ऊपर आदि..आप को पाता होगा कि बरमूडा त्रिकोण के ऊपर से कोई विमान नहीं जाता, जबकि इससे रास्ते छोटे हो सकते हैं. लेकिन इसके ऊपर से जाने वाले विमान गायब हो चुके हैं जिनका आजतक पता नहीं चला. रास्ते में आने वाली लोकेशन को 'वेपॉइंट' कहते हैं और हवाई मार्ग को 'एयर कॉरिडोर' वेपॉइंट में रहने वाले ATC को पता होता है कि उसके क्षेत्र में कितने विमान किस ऊंचाई पर उड़कर, किस दिशा में जा रहे हैं. इसलिए कभी भी दो एयरप्लेन को दुर्घटना से बचाने के लिए इनकी मदद ली जाती है.


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