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किसानों को नहीं मिल रहा टमाटर का वाजिब दाम, अब कर रहे नष्ट

Apurva Srivastav
18 May 2021 10:17 AM GMT
किसानों को नहीं मिल रहा टमाटर का वाजिब दाम,  अब कर रहे नष्ट
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टमाटर नष्ट करने की खबरें सामने आ रही हैं

देश के अलग-अलग हिस्सों से किसानों द्वारा टमाटर नष्ट करने की खबरें सामने आ रही हैं. उन्हें उत्पादन का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है. स्थिति ऐसी हो गई है कि लागत भी नहीं निकल पा रही है. संकट में घिरे किसान औने-पौने दाम पर उत्पादों को बेचने की बजाय नष्ट कर दे रहे हैं. दूसरी तरफ, लॉकडाउन के कारण तमाम फल और सब्जियों के दाम में तेजी देखी गई है लेकिन इसका लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है.

किसानों का कहना है कि हर साल हमारे साथ ऐसा होता है. बीते दो वर्ष से स्थिति ज्यादा बिगड़ गई है. इसके लिए लॉकडाउन को जिम्मेदार माना जा रहा है. हालांकि यह समस्या लॉकडाउन के दौरान उत्पन्न नहीं हुई है और वर्षों से चली आ रही है. आखिर इस समस्या को कैसे दूर कर सकते हैं और किसानों के साथ ऐसा क्यों रहा है, इसे समझना बहुत जरूरी है.
किसानों की मांग- सरकार दे मुआवजा
फिलहाल टमाटर का थोक भाव 2.5 रुपए किलो के आसपास है. वहीं शिमला मिर्च 5-7 रुपए किलो में मिल रहा है. लागत निकल सके और किसानों को कुछ लाभ हो, इसके लिए टमाटर कम से कम 9-11 रुपए प्रति किलो और शिमला मिर्च 15 से 17 रुपए किलो बिकना चाहिए. किसानों का कहना है कि 2 रुपए प्रति किलो के हिसाब से किराया लगता है. फसल तैयार होने के बाद ग्रेडिंग और तुड़ाई में प्रति किलो 2 रुपए का खर्च है और मंडी में 25 किलो का 5 रुपए शुल्क है. हमारी लागत भी नहीं निकल पा रही है. उनकी मांग है कि सरकार मुआवजा देकर किसानों की समस्या को दूर करे.
विशेषज्ञों का कहना है कि सब्जी और फल जल्दी खराब हो जाते हैं. उत्पादन ज्यादा हो रहा है और मंडियों में बड़ी मात्रा में टमाटर पहुंच रहा है. इस कारण किसानों को वाजिब दाम नहीं मिल रहा. इस बार तो लॉकडाउन का बहाना है लेकिन हर बार कटाई के समय सब्जियों की कीमत गिर जाती है और बाद में इनके दाम मे काफी तेजी दर्ज होती है. बड़े कारोबारी फसल तैयार होने के वक्त खरीद कर स्टोर कर लेते हैं और बाद में दाम बढ़ने पर माल को बाजार में छोड़ते हैं.
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि कभी कीमतें 100 रुपए तक पहुंच जाती हैं तो कभी दाम इतना कम हो जाता है कि किसान टमाटर को नष्ट कर देते हैं. ऐसा तब होता है जब उत्पादन बहुत ज्यादा हो जाए, या काफी कम हो या बिल्कुल भी न हो. किसानों को ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े, इसके लिए सरकार को कुछ कदम उठाने की जरूरत है क्योंकि इससे सिर्फ किसानों को ही परेशान नहीं होना पड़ता बल्कि ग्राहक भी दिक्कतों का सामना करते हैं.
बुवाई के वक्त ही निगरानी करने की जरूरत
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इस समस्या के सामाधान के लिए सरकार को यूरोप जैसे मॉडल पर काम करना होगा. यूरोप में फसल बुवाई की निगरानी की जाती है. इसका मतलब हुआ कि सरकार के पास डेटा रहता है कि किस फसल की कितने क्षेत्र में बुवाई हो रही है. कृषि एजेंसियां समय-समय पर इनका समीक्षा करें. अगर जरूरत से ज्यादा मात्रा में बुवाई हो रही है तभी किसानों को मना कर दिया जाए. उन्हें किसी अन्य फसल की बुवाई करने की सलाह दी जाए. विशेषज्ञों का मानना है कि बुवाई के समय ही इस समस्या का हल किया जा सकता है.
भारत जैसे देश में कोल्ड स्टोरेज सहित अन्य इंफ्रास्ट्रकचर की कमी है. सब्जी, फल और लंबे समय तक सुरक्षित नहीं रहने वाले उत्पादों को स्टोर कर के रखना एक नामुमकिन काम है. ऐसे में अगर बुवाई के समय ही इस पर ध्यान दिया जाए और सीधे किसानों से बात की जाए तो कुछ हद तक इस समस्या का सामाधान किया जा सकता है.
विशेषज्ञ सब्जी की फसलों के लिए भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) लागू करने की बात कहते हैं. उनका तर्क है कि एमएसपी तय कर देने से किसानों को थोड़ी राहत मिल सकती है. विशेषज्ञ कहते हैं कि जरूरी नहीं है कि एमएसपी तय होने के बाद सरकार ही उत्पादों को खरीदे. इन फसलों पर एमएसपी सबके लिए हो. यानी अगर ग्राहक बाजार में जाए तो उसे पता हो कि ये इस सब्जी या उत्पाद के लिए एक तय न्यूनतम मूल्य है, इससे कम पर सब्जी नहीं मिलेगी.
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को समाधान नहीं मानते किसान
केंद्र सरकार पिछले साल तीन कृषि कानून लेकर आई थी. हालांकि किसान अभी भी इसका विरोध कर रहे हैं. सरकार का कहना है कि इन कानूनों से किसानों की तमाम समस्याओं का समाधान हो जाएगा. लेकिन किसान इस बात को मानने को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने हिसाब से सब कुछ करेंगी. कुछ गलत होने की अवस्था में किसान उनके खिलाफ कुछ नहीं कर पाएगा. किसान कहते हैं कि अगर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में खेती करते हैं और फसल तैयार होने के बाद आंधी-तूफान के कारण अनाज खराब हो जाए तो उसे कंपनियां नहीं खरीदेंगी. सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए.
विशेषज्ञों का कहना है कि नए कृषि कानून में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और सरकारी मंडियों के इतर भी उपज बेचने का प्रावधान है. पहले से भी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग हो रही है. लेकिन इसके लिए राज्य या केंद्र सरकार को किसानों के पक्ष में खड़ा होना होगा. अगर ऐसा नहीं होता है तो बड़े कॉरपोरेट्स के सामने किसान टिक नहीं पाएंगे और स्थिति में कुछ बदलाव नहीं होगा.


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