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- जूनियर महमूद: छोटी...
भारतीय सिनेमा के इतिहास में कई शानदार बाल कलाकार हुए हैं, लेकिन इनमें एक कलाकार ने नया इतिहास लिख दिया था. वह बाल कलाकार था जूनियर महमूद, जिन्हें सिनेमा का पहला ‘चाइल्ड स्टार’ कहा जाता है. एक बाल कलाकार के रूप में जो दौलत और शोहरत जूनियर महमूद को मिली, वह किसी और को नहीं मिली. जब गत आठ दिसंबर को जूनियर महमूद के देहांत की खबर आयी, तो दुख हुआ कि सिनेमा में इतिहास रचने वाला अब नहीं रहा. दुख इसलिए और ज्यादा था कि जूनियर को अपने निधन के सिर्फ 18 दिन पहले पता लगा कि उन्हें पेट में कैंसर है. उनके दोस्त राजू श्रेष्ठा ने जब कैंसर के बारे में सोशल मीडिया पर लिखा, तो यह खबर आग की तरह फैल गयी.
जॉनी लीवर कहते हैं, ‘हम जूनियर को टाटा अस्पताल ले गये, तो वहां बताया गया कैंसर चौथे स्टेज में है. इसलिए उन्हें घर वापस ले आये.’ ऐसे में जूनियर ने अभिनेता जितेंद्र और अपने पुराने दोस्त सचिन से मिलने की अंतिम इच्छा व्यक्त की, तो ये दोनों उनसे मिलने उनके घर पहुंचे. अभिनेता यशपाल शर्मा बताते हैं, ‘मैं जब उनसे मिलने गया, वो पहचान तो गये, लेकिन बोल नहीं पा रहे थे.’ जूनियर महमूद से पहले फिल्मों में जो बाल कलाकार सबसे ज्यादा मशहूर थीं, वह थीं डेजी ईरानी. साल 1955 से करीब 1965 तक डेजी बाल कलाकार के रूप में सभी की पहली पसंद होती थीं. बड़ी होने पर वे जब वयस्क भूमिकाएं करने लगीं, तो करीब तभी जूनियर महमूद का आगमन हुआ और देखते-देखते जूनियर फिल्मों में छोटी उम्र में बड़ा चमकता सितारा बन गया.
मेरी जूनियर महमूद से पहली मुलाकात 1990 में मुंबई फिल्म सिटी में एक शूटिंग के दौरान तब हुई, जब वे 34 साल के हो गये थे. जूनियर तब स्टेज शो करने के साथ-साथ फिल्म निर्माण में उतर चुके थे. उन्होंने मुझसे कहा, ‘मैंने एक फिल्म बनायी है. यदि आप मेरे घर आकर वह फिल्म देख, मुझे अपने सुझाव देंगे, तो मुझे खुशी होगी.’ तब मैंने उनके घर जाकर वह फिल्म देखी. कुछ बरस बाद वे दिल्ली आये, तो मेरे घर भी आये. अपने करियर के ढलान पर जूनियर महमूद ने हिम्मत दिखाते हुए अनेक फिल्में बनायीं. उन्होंने एक हास्य फिल्म ‘बाप का बाप’ बनायी, तो उसमें जूनियर के लिए संजीव कुमार और विनोद खन्ना ने मुफ्त में काम किया. बाद में एक फिल्म ‘किस्मत की बाजी’ भी बनायी. साथ ही, कुछ मराठी फिल्मों का निर्माण भी किया. लेकिन फिल्म निर्माण उनके लिए आर्थिक परेशानियों का सबब बनकर रह गया. जबकि बाल कलाकार के रूप में जूनियर के पास जहां फिल्मों की लाइन लगी थी और बांद्रा में उनका अपना घर था. उस दौर में इम्पाला जैसी महंगी कार में घूमते थे.
मुंबई के वडाला में 15 नवंबर, 1956 को जन्मे जूनियर महमूद का असली नाम नईम सईद था. इनके पिता मसूद अहमद रेलवे में ड्राइवर थे. परिवार में चार भाइयों और दो बहनों में नईम भाइयों में तीसरे नंबर पर थे. बड़े भाई अहमर फिल्मों में स्टिल फोटोग्राफी का काम करते थे. इधर नईम वडाला के निगम विद्यालय में पढ़ते हुए कलाकारों की मिमिक्री करने लगे. एक बार नईम भाई के साथ शूटिंग देखने गया, तो उसे बच्चों की भीड़ में रख लिया गया. जूनियर बताते थे, ‘तब पहली बार मुझे इस काम के दो रुपये मिले, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. बाद में पांच रुपये मिलने लगे. एक बार महमूद साहब के साथ फिल्म ’सुहाग रात’ में उनके साले का रोल मिला, तो उन्हें मेरा काम और अंदाज बहुत पसंद आया. उन्होंने मुझे बाकायदा अपना शागिर्द बना मुझे जूनियर महमूद कहना शुरू कर दिया.’
जूनियर की किस्मत तब बदली, जब निर्माता जीपी सिप्पी की फिल्म ‘ब्रह्मचारी’ के निर्देशक भप्पी सोनी ने नईम से फिल्म ‘गुमनाम’ में महमूद पर फिल्मांकित गीत ‘काले हैं तो क्या हुआ है’ पर डांस करने को कहा. नईम ने ऐसा डांस किया कि सभी हैरान रह गये. इसी फिल्म से नईम जूनियर महमूद बनकर पर्दे पर आये. इसके लिए जूनियर ने 1,500 रुपये का पहली बार कॉन्ट्रैक्ट साइन किया. इसके बाद जहां जूनियर की लोकप्रियता बढ़ती गयी, वहां पारिश्रमिक भी एक लाख रुपये तक पहुंच गयी. किसी और बाल कलाकार को ना कभी इतनी फिल्में मिलीं, ना इतना पारिश्रमिक, ना ही इतनी लोकप्रियता. इस अनोखे चाइल्ड स्टार ने अपने करियर में 250 से अधिक फिल्मों में काम किया. अभी चंद रोज पहले जूनियर ने कहा था, ‘मेरे बाद लोग मुझे एक अच्छे आदमी के रूप में जानें, बस मैं यही चाहता हूं.’
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय