तुर्की रूस-यूक्रेन युद्ध का फायदा उठाने की फिराक में, सीरिया पर हमले की दी चेतावनी दी
रूस-यूक्रेन युद्ध को 103 दिन हो चुके हैं और जंग रुकने के कोई आसार नहीं दिख रहे.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। रूस-यूक्रेन युद्ध को 103 दिन हो चुके हैं और जंग रुकने के कोई आसार नहीं दिख रहे. अमेरिका समेत तमाम देशों का ध्यान इस जंग को रोकने में लगा हुआ है. इसी का फायदा उठाने की फिराक में हैं तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन. उन्होंने अपने चिर विरोधी ग्रीस पर एक बार फिर जमकर आग उगली है और इसी के साथ सीरिया में नया मिलिट्री ऑपरेशन शुरू करने की धमकी दी है. अमेरिका समेत कई देश इसे लेकर तुर्की को चेता चुके हैं, लेकिन एर्दोगन पर कोई असर नहीं हो रहा है. संभवतः तुर्की की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था, आसमान छूती महंगाई और अपनी घटती लोकप्रियता से जनता का ध्यान हटाने के लिए उन्हें ये अच्छा मौका नजर आ रहा है.
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने पिछले हफ्ते ग्रीस के प्रधानमंत्री क्यारीकोस मित्सोटाकिस के साथ सभी संपर्क तोड़ने का ऐलान किया था. वह मित्सोटाकिस के अमेरिकी कांग्रेस में संबोधन और F-35 लड़ाकू विमानों के सौदे से नाराज हैं. मित्सोताकिस की अमेरिका यात्रा के बाद से ग्रीस के हवाई क्षेत्र में तुर्की के सैन्य विमानों की घुसपैठ काफी बढ़ गई है. 13 मार्च को इस्तांबुल में बैठक के दौरान एर्दोगन और मित्सोटाकिस ने भड़काऊ बयानबाजी से बचने, दोनों देशों के बीच तनाव घटाने, पूर्वी भूमध्य सागर में स्थिरता पर काम करने और आपसी संपर्क बढ़ाने पर सहमति जताई थी लेकिन ये सब हवा हो चुका है.
तुर्की ने हाल ही में ग्रीस को पूर्वी ईजियन द्वीपों से सेना हटाने की धमकी दी थी. ऐसा न करने पर उनकी संप्रभुता को चुनौती देने की घोषणा की थी. तुर्की के विदेश मंत्री ने तो 14 द्वीपों का नक्शा भी पेश कर दिया था. रॉयटर्स से इंटरव्यू में ग्रीस के पीएम ने कहा था कि वह द्वीपों को लेकर तुर्की की बेतुकी मांगों को स्वीकार नहीं कर सकते. तुर्की को अपना आक्रामक व्यवहार और बयानबाजी बंद करनी होगी. उन्होंने विश्वास जताया था कि जरूरत पड़ने पर अमेरिका और यूरोपीय यूनियन उनकी सुरक्षा करेगी. उधर, तुर्की के विदेश मंत्रालय ने ग्रीस पर आतंकी समूहों को पनाह और बढ़ावा देने का आरोप लगाया. उसने कहा कि ग्रीस आतंकियों को तुर्की में वारदातें करने के लिए पैसे और संरक्षण दे रहा है. ग्रीस भी तुर्की पर इसी तरह के आरोप लगाता रहा है.
एएनआई के मुताबिक, रूस के यूक्रेन युद्ध में फंसे होने के बीच तुर्की के राष्ट्रपति को सीरियाई सीमा पर 30 किलोमीटर लंबा सिक्योरिटी जोन बनाने के अपने पुराने प्लान पर अमल का ये अच्छा मौका दिख रहा है. तुर्की के लिए सीरिया से आए शरणार्थी एक बड़ी समस्या हैं. वह उन लोगों को रखने के लिए ये सिक्योरिटी जोन बनाना चाहता है. तुर्की के राष्ट्रपति का कहना है कि कुर्दिश आतंकियों (वाईपीजी) को तुर्की की सीमा से दूर रखने का समझौता फेल हो गया है, इसलिए वह सीरिया में इनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई करेंगे. उनके निशाने पर सीरियाई शहर मंजीब और ताल रिफ़ात हैं, जहां कुर्दिश फोर्स का कब्जा है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने पिछले बुधवार को तुर्की को सीरिया में संभावित सैन्य हमले को लेकर चेतावनी दी थी. उन्होंने कहा था कि ऐसा कोई भी कदम पूरे इलाके खतरे में डाल देगा. रूस ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी थी.
एएनआई की रिपोर्ट बताती है कि एर्दोगन को लगता है कि अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दोनों ही जगहों पर हालात इसके लिए बिल्कुल मुफीद हैं. यूक्रेन युद्ध में घिरे होने की वजह से रूस से तीखी प्रतिक्रिया की संभावना कम है. वहीं, अमेरिका चाहता है कि तुर्की फिनलैंड और स्वीडन के नाटो में शामिल होने में अड़ंगा न लगाए. इधर तुर्की के अंदर बिगड़ते हालात से लोगों का ध्यान हटाने के लिए एर्दोगन को ये अच्छा मौका दिख रहा है. तुर्की की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल हो चुकी है. महंगाई दर 75 प्रतिशत से अधिक बढ़ हो चुकी है. तुर्की से एक लाख से अधिक सीरियाई शरणार्थियों को सिक्योरिटी जोन में भेजने की एर्दोगन की योजना की जनता में बहुत लोकप्रिय है. ऐसे में वह इसी को हथियार बनाकर सीरिया पर नया मोर्चा खोल सकते हैं.