इमरान खान के गले की फांस बना TTP का ये फैसला, पाकिस्तान में बढ़ेंगे आतंकी हमले

पाकिस्तान की इमरान खान सरकार को घरेलू आतंक के मोर्चे पर फिर विफलता का मुंह देखना पड़ा है.

Update: 2021-12-13 05:12 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पाकिस्तान (Pakistan) की इमरान खान (Imran Khan) सरकार को घरेलू आतंक के मोर्चे पर फिर विफलता का मुंह देखना पड़ा है. पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बन चुके कट्‌टरपंथी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (Tehreek-e-Taliban Pakistan-TTP) ने सरकार के साथ एक माह के सीज फायर (Ceasefire)को तोड़ने का एकतरफा ऐलान कर दिया है. टीटीपी ने इमरान खान सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया. अफगानिस्तान की तालिबान सरकार (Afghanistan Taliban Government) ने टीटीपी और सरकार के बीच वार्ता में मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी.

9 नवंबर से अब तक टीटीपी सीज फायर का पालन कर रहा था. दोनों पक्ष छह सूत्री शांति समझौते पर पहुंच भी चुके थे. इसमें पाकिस्तान की जेलों में बंद टीटीपी के 102 कैदियों को सौंपना शामिल था. टीटीपी प्रवक्ता का आरोप है कि पाकिस्तान सरकार की ओर से सहयोगात्मक रवैया नहीं अपनाया गया है. इमरान सरकार को आतंकी संगठन टीटीपी से वार्ता शुरू करने पर विपक्ष की आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. टीटीपी वर्ष 2007 से आतंकी वारदातों में लिप्त है.
टीटीपी प्रवक्ता का आरोप है कि इमरान सरकार ने वार्ता के दौरान दोहरा रवैया अपनाया. इसलिए सीज फायर खत्म कर दिया है. टीटीपी पाकिस्तान में शरिया कानून को लागू करेगी. साथ ही पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के खिलाफ जिहाद छेड़ कर पाकिस्तानी सरकार का तख्तापलट किया जाएगा. वैसे पाकिस्तानी सरकार ने टीटीपी के ठिकानों पर कार्रवाई शुरू कर दी है.
पाकिस्तान के राजनीतक विशेषज्ञ तारिक पीरजादा का कहना है कि आतंकी संगठन टीटीपी के हाथ निर्दोषों के खून से रंगे हुए हैं. पेशावर स्कूल में 132 बच्चों की मौत की जिम्मेदार टीटीपी था. ऐसे संगठन से सरकार बातचीत कैसे कर सकती है. सरकार और टीटीपी के साथ हुआ करार चलने वाला ही नहीं था. पाक सरकार आतंकियों को रिहा कैसे कर सकती है.
आतंकवाद की फैक्ट्री कहे जाने वाले पाकिस्तान में अब तक जितने भी चरमपंथी संगठन अस्तित्व में आए हैं, उनमें तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान सबसे खतरनाक माना जाता है. इसी संगठन ने मलाला यूसुफजई पर हमले की जिम्मेदारी ली थी और अब यह संगठन मानवता की तमाम हदें पार कर मासूम बच्चों को भी अपना निशाना बनाने से नहीं चूका.
दरअसल, पाकिस्तानी तालिबान की जड़ें जमना उसी वक्त शुरू हो गई थीं, जब 2002 में अमेरिकी कार्रवाई के बाद अफगानिस्तान से भागकर कई आतंकी पाकिस्तान के कबाइली इलाकों में छुपे थे. इन आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई तो स्वात घाटी में पाकिस्तानी आर्मी की मुखालफत होने लगी. कबाइली इलाकों में कई विद्रोही गुट पनपने लगे.
ऐसे में दिसंबर 2007 को बेयतुल्लाह मेहसूद की अगुवाई में 13 गुटों ने एक तहरीक यानी अभियान में शामिल होने का फैसला किया, लिहाजा संगठन का नाम तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान रखा गया. शॉर्ट में इसे टीटीपी या फिर पाकिस्तानी तालिबान भी कहा जाता है. यह अफगानिस्तान के तालिबान संगठन से पूरी तरह अलग है, लेकिन इरादे करीब-करीब एक जैसे.
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