दुनिया के इन दो बड़े नेताओं ने पहले ही भांप लिया था मौत की आशंका
विजेता मार्टिन लूथर किंग अमेरिका में मानवाधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाले चर्चित नेता रहे और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो भी पड़ोसी मुल्क में काफी लोकप्रिय रहे
विजेता मार्टिन लूथर किंग अमेरिका में मानवाधिकारों (Human Rights) के लिए आवाज़ उठाने वाले चर्चित नेता रहे और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री (Pakistan Prime Minister) जुल्फिकार अली भुट्टो भी पड़ोसी मुल्क में काफी लोकप्रिय रहे. इस दोनों नेताओं की हत्या की तारीख एक ही है. साथ ही ये बात भी कॉमन है कि इन दोनों ही नेताओं ने पहले ही भांप लिया था कि इनके साथ कुछ क्या होने वाला है.
मार्टिन लूथर किंग (Martin Luther King) अमेरिका (America) के मशहूर सोशल एक्टिविस्ट और क्रांतिकारी नेता रहे. 4 अप्रैल 1968 को शाम 6 बजे के करीब जब वो एक मोटेल की बालकनी में खड़े हुए थे, तो उन्हें गोली मार दी गई. वहीं ज़ुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान (Pakistan) के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहे. 4 अप्रैल 1979 को उन्हें फांसी पर लटका दिया गया था. जुल्फिकार को जिस तरह फांसी दी गई, उसे न्यायिक हत्या और लोकतंत्र की हत्या भी कहा गया.
साझा किया खतरे का पूर्वाभास
9 सितंबर 1969 को द वॉशिंग्टन एफ्रो अमेरिकन अखबार में एक खबर छपी थी, इस खबर में मार्टिन लूथर किंग की विधवा कोरेटा के बयानों के हवाले से लिखा था कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की हत्या के बाद किंग ने उनसे अपना अंदेशा और खतरे का पूर्वाभास साझा किया था. मार्टिन लूथर को समझ आ चुका था कि वो भी जॉन एफ कैनेडी की तरह ही मारे जाएंगे. इस खबर में बताया गया था कि कैसे कैनेडी के मारे जाने के बाद वो परेशान थे.
साल 1963 में जॉन एफ कैनेडी के मारे जाने के बाद कोरेटा से मार्टिन लूथर ने कहा था कि ऐसा ही मेरे साथ भी होगा, मुझे लगता है, मैं तुमसे कहता रहा हूं कि यह समाज बहुत उन्मादी है. जिसका अंदेशा था, फिर हुआ भी वही. मार्टिन लूथर पर एक से ज़्यादा बार जानलेवा हमले हुए. 1968 में जब वो सफाई कर्मियों की एक हड़ताल के सिलसिले में मेम्फिस के एक मोटेल में थे, तब मार्टिन लूथर किंग को गोली मार दी गई. उस वक्त उनकी उम्र महज 39 साल थी. मार्टिन लूथर को 35 साल की उम्र में ही नोबेल शांति पुरस्कार मिल चुका था, तब वो सबसे कम उम्र में ये सम्मान और उपलब्धि पाने वाली शख्सियत बने थे.
जेल से लिखा, 'मेरी जिंदगी खतरे में है'
इसी तरह पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को भी पहले ही अंदेशा हो चुका था कि उनके साथ क्या होने वाला है. 1977 में पाकिस्तान में चुनाव हुए थे और भुट्टो पूरे बहुमत से चुने गए थे लेकिन विपक्ष को ये नतीजा मंज़ूर नहीं था इसलिए भुट्टो के खिलाफ माहौल बनाया जाता रहा. जनरल ज़िया उल हक की अगुवाई में पाकिस्तानी सेना ने चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंकने की कवायद शुरू की और भुट्टो को गिरफ्तार कर लिया गया. ज़िया उल हक ने दावा किया था कि वो सत्ता अपने हाथ में लेकर ईमानदारी से निष्पक्ष चुनाव करवाएंगे लेकिन हुआ कुछ और ही.
जनरल ज़िया उल हक ने अपनी फौजी ताकत के दम पर जुल्फिकार अली भुट्टो को सलाखों के पीछे धकेलने के बाद विपक्षी पार्टी पाकिस्तान नेशनल अलायंस को भी धोखा देते हुए दरकिनार कर दिया. फिर पाकिस्तान में तानाशाही बनाम लोकतंत्र की लड़ाई लंबे समय तक चलती रही. साल 1978 में जेल में बंद जुल्फिकार अली भुट्टो ने लिखा था कि, 'मेरी ज़िंदगी खतरे में है, ये समझना भूल होगी. मुझसे ज़्यादा पाकिस्तान का मुस्तकबिल खतरे में है. अगर मुझे फांसी देकर मार डाला गया तो पाकिस्तान दंगे, फ़साद और जंग की आग में झुलस सकता है.'
ये दोनों ही नेता जनता के बीच काफी चर्चित और लोकप्रिय रहे. दोनों के मारे जाने के बाद उनके चाहने वालों ने हत्या के खिलाफ तोड़-फोड़, आगज़नी और उग्र विरोध प्रदर्शनों को अंजाम दिया था लेकिन इन दोनों ही नेताओं के वो अल्फाज आज भी गूंजते हैं, जो उन्होंने अपनी मौत को लेकर जीते जी कहे थे.