ब्रह्मांड के इन ग्रहों पर मौजूद हैं 4 सबसे अजीबोगरीब मौसम, सौरमंडल में है एक्सोप्लैनेट

पृथ्वी पर हम आमतौर पर तीन तरह के मौसम देखते, जिसमें गर्मी, सर्दी और बरसात का मौसम आम है

Update: 2021-05-09 08:25 GMT

पृथ्वी पर हम आमतौर पर तीन तरह के मौसम देखते, जिसमें गर्मी, सर्दी और बरसात का मौसम आम है. दुनियाभर के मुल्कों में मौसम का लगभग यही पैटर्न रहता है. लेकिन हमारे ग्रह से परे अन्य ग्रहों और एक्सोप्लैनेट पर मौसम कुछ ऐसा होता है, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे. पृथ्वी पर चक्रवाती तूफान, रेतीले तूफान और भारी बर्फबारी के आगे इंसान बेबस नजर आने लगता है और इसके खत्म होने की दुआ करने लगता है. लेकिन हमारे सौरमंडल में मौजूद ग्रहों समेत कुछ ऐसे एक्सोप्लैनेट भी हैं, जहां इस तरह की घटनाएं वर्षों तक चलती रहती हैं.

एक्सोप्लैनेट से हमारा आश्य उन ग्रहों से है, जो सूर्य की तरह एक तारे का चक्कर लगा रहे होते हैं. इन ग्रहों को लेकर वैज्ञानिकों का मानना है कि इनमें से कुछ पर जीवन मौजूद हो सकता है. 1992 में पहले एक्सोप्लैनेट की खोज के बाद से अब तक 4,000 से ज्यादा ऐसे ग्रहों की पहचान की जा चुकी है. एक्सोप्लैनेट को लेकर हो रही जांच में उनकी वायुमंडलीय संरचना की पहचान करने की कोशिश की जा रही है. हालांकि, वैज्ञानिकों को इन ग्रहों पर कुछ अजीबोगरीब मौसम के बारे में पता चला है. ऐसे में आइए आपको ऐसे चार ग्रहों के बारे में बताएं, जिनका मौसम बेहद ही अजीब है.
WASP-76b पर लोहे की बारिश
बड़े आकार वाले WASP-76b एक्सोप्लैनेट की खोज 2013 में की गई. ये ग्रह हमारे सौरमंडल में मौजूद सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति से दो गुना बड़ा है. इसकी सतह का तापमान दो हजार डिग्री है. इसका मतलब ये है कि पृथ्वी पर जो धातु कठोर अवस्था में है, वो यहां आसानी से पिघलकर भाप बन जाएगी. 2020 में हुए एक शोध में बताया गया कि यहां लोहे की बारिश होती है. दरअसल, जब भाप के रूप ऊपर उठ रहा लोहा रात के समय WASP-76b के ठंडे इलाके की ओर पहुंचता है तो ये जम जाता है. वहीं, जब WASP-76b पर दिन होता है तो ये लोहा भाप बनकर हवा में उड़ने लगता है.
टाइटन पर मौजूद मीथेन की झीलें
शनि ग्रह का सबसे बड़ा चांद टाइटन है, जो इसलिए खास है, क्योंकि इसकी सतह पर तरल पदार्थ बहता है. ये तरल पदार्थ ठीक उसी तरह बहता है, जैसे पृथ्वी पर नदियां बहती हैं, लेकिन ये पानी नहीं है, बल्कि कई सारे हाइड्रोकार्बन का मिश्रण है. पृथ्वी पर मीथेन जैसे केमिकल का प्रयोग ईंधन के लिए किया जाता है, लेकिन टाइटन इतना ठंडा है कि ये तरल के रूप में ठहर जाता है और झीलों का रूप धारण कर लेता है. माना जा रहा है कि ठंडे ज्वालामुखियों से ये हाइड्रोकार्बन वातावरण में गैस के तौर पर निकला होगा, फिर जमने के बाद इसकी बारिश होने लगी. लेकिन ग्रेविटी की मौजूदगी नहीं होने के चलते ये बारिश बेहद की धीमी रफ्तार से होती है.
मंगल ग्रह पर चलने वाली धूल भरी आंधी
पृथ्वी की तुलना में मंगल का मौसम बिल्कुल ही अलग है. इसके पीछे की वजह वातावरण का बेदह ही हल्का और ग्रह का सूखा होना है. लाल ग्रह का वातावरण भले ही बेहद हल्का है, लेकिन ये शांत बिल्कुल भी नहीं है. ग्रह पर हवा की रफ्तार 30 किमी प्रति घंटा होती है, जो किसी भी पदार्थ को एक-जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए काफी है. वहीं, वाइकिंग लैंडर के जरिए किए गए शोध में सामने आया कि मंगल पर हवा की रफ्तार 110 किमी प्रति घंटा तक भी पहुंच जाती है. मंगल ग्रह के सूखे होने और रेतीला होने की वजह से यहां धूल भरी आंधियां चलती हैं. ये आंधियां कई बार महीनों तक चलती रहती हैं और पूरे ग्रह को धूल से ढक देती हैं.
बृहस्पति ग्रह पर बिजली कड़कना
1979 में वॉयजर 1 पहली बार बृहस्पति ग्रह के पास गुजरा और उसने ग्रह पर बिजली की कड़कड़ाहट को देखा. फिर 2016 में जूनो मिशन ने बिजली की इस कड़कड़ाहट पर करीबी नजर रखना शुरू किया. इसने पाया कि बृहस्पति ग्रह के पोलर रीजन में बिजली गिरने को रिकॉर्ड किया. तस्वीरें सामान्य कैमरे के अलावा इंफ्रारेड और अल्ट्रावॉयलेट कैमरे से भी ली गईं. जूनो से प्राप्त तस्वीरों का अध्ययन करने पर पता चला कि यहां पर दो तरह की बिजली कड़क रही है. वैज्ञानिकों ने एक का नाम स्प्राइट और दूसरे का एल्व्स रखा. ये बिजली ग्रह की सतह पर नहीं, बल्कि वायुमंडल से ऊपर कड़कती है.


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