श्रीलंका के तमिल प्रतिनिधियों ने भारतीय पीएम को लिखा पत्र, दिवालिया होने की कगार पर

भारत द्वारा परियोजनाओं और निवेश योजनाओं पर विचार-विमर्श किया था.

Update: 2022-01-19 08:28 GMT

श्रीलंका के नॉदर्न प्रांत के प्रमुख तमिल जनप्रतिनिधियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर भारत के हस्तक्षेप का अनुरोध किया है. पत्र में कहा गया कि भारत सालों से लंबित तमिल मुद्दों के दीर्घकालिक राजनीतिक समाधान और विवादास्पद 13वें संशोधन के क्रियान्वयन में बात करे.

राजीव गांधी के कार्यकाल में सामने आया था 13वां संसोधन
बता दें कि भारत-श्रीलंका के बीच 1987 में तत्कालीन श्रीलंकाई राष्ट्रपति जेआर जयवर्द्धने और तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच हुए समझौते के परिणामस्वरूप 13वां संशोधन सामने आया था. इसमें श्रीलंका में तमिल समुदाय को अधिकार सौंपने के प्रावधान हैं. भारत ने 13वें संशोधन का पूरी तरह क्रियान्वयन करने, प्रांतीय परिषद के चुनाव जल्द आयोजित करने और सुलह प्रक्रिया पूरी करने के माध्यम से श्रीलंका के अल्पसंख्यक तमिल समुदाय के अधिकारों के संरक्षण के लिए लगातार प्रतिबद्धता दोहराई है. हालांकि, सत्तारूढ़ श्रीलंका पीपल्स पार्टी के सिंहला बहुसंख्यक समर्थक प्रांतीय परिषद प्रणाली को पूरी तरह समाप्त करने की वकालत करते रहे हैं.
टीएनए के प्रतिनिधिमंडल ने पीएम के नाम का सौंपा पत्र
वरिष्ठ तमिल नेता और तमिल नेशनल अलायंस (टीएनए) के नेता आर संपन्तन के नेतृत्व में जनप्रतिनिधियों के एक शिष्टमंडल ने मंगलवार को यहां भारतीय उच्चायुक्त गोपाल बागले से मुलाकात की और प्रधानमंत्री मोदी को संबोधित पत्र उन्हें सौंपा. टीएनए के साथ दो अन्य समूह भी इसमें शामिल हुए, जिनमें तमिल बहुल नॉदर्न प्रांत के पूर्व मुख्यमंत्री सीवी विग्नेश्वरन भी शामिल थे.
भारत का जताया आभार
टीएनए नेता एमए सुमंतिरन ने कहा कि तमिल नागरिकों के प्रश्न पर समय-समय पर अनेक वादे किये गये हैं. हमारा अनुरोध इन्हें पूरा करने का है. पत्र में अतीत में भारतीय और श्रीलंकाई नेताओं द्वारा किये गये अनेक वादों की याद दिलाई गई, जिनमें 13वें संशोधन पर काम करने की बात कही गयी थी. प्रधानमंत्री मोदी से अनुरोध किया गया है कि एक अविभाजित राष्ट्र की रूपरेखा के तहत आत्म-निर्धारण के अधिकारों के साथ तमिलभाषी लोगों का उनके प्राकृतिक पर्यावास वाले क्षेत्रों में गरिमा, आत्म-सम्मान, शांति एवं सुरक्षा से रहना सुनिश्चित किया जाए. पत्र में लिखा गया कि भारत सरकार पिछले 40 साल से इस काम में सक्रियता से लगी है और हम एक न्यायोचित व दीर्घकालिक समाधान की तलाश में भारत द्वारा जताई गयी दृढ़ प्रतिबद्धता के लिए आभारी हैं.
भारत ने की थी श्रीलंका की आर्थिक मदद
यह पत्र ऐसे समय में महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जब करीब एक सप्ताह पहले ही भारत ने श्रीलंका में लगभग सभी आवश्यक वस्तुओं की कमी के बीच खाद्य आयात के लिए और कम होते विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करने के लिए कोलंबो को 90 करोड़ डॉलर का कर्ज देने की घोषणा की थी. भारत ने श्रीलंका को पेट्रोलियम उत्पादों की खरीद में मदद के लिए मंगलवार को 50 करोड़ डॉलर का ऋण देने की भी घोषणा की थी. श्रीलंका के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे ने पिछले सप्ताह विदेश मंत्री एस जयशंकर से बातचीत की थी और दोनों ने देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए भारत द्वारा परियोजनाओं और निवेश योजनाओं पर विचार-विमर्श किया था.


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