आज से शुरू हो रही श्रीलंका में संसद की कार्यवाही, सांसद करेंगे पहली बार राष्ट्रपति का चुनाव

श्रीलंका में अगले राष्ट्रपति के चुनाव की कार्यवाही शुरू करने के लिए 16 जुलाई को संसद की बैठक बुलाई जाएगी.

Update: 2022-07-16 05:17 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। श्रीलंका में अगले राष्ट्रपति के चुनाव (Sri Lanka Presidential Election) की कार्यवाही शुरू करने के लिए 16 जुलाई को संसद की बैठक बुलाई जाएगी. आर्थिक और राजीतिक उथल-पुथल के बीच राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था जिसके बाद देश में अगले राष्ट्रपति का चयन होना है. द्वीप राष्ट्र के इतिहास में यह पहली बार है जब लोकप्रीय जनादेश की बजाय राष्ट्रपति की नियुक्ति सांसदों द्वारा की जाएगी. स्पीकर महिंदा यापा अभयवर्धने (Mahindra Yapa Abhaywardene) ने शुक्रवार को कहा कि 225 सदस्यीय संसद 20 जुलाई को गुप्त वोट से नए राष्ट्रपति का चुनाव करेगी. 1978 के बाद से राष्ट्रपति पद के इतिहास में कभी भी संसद ने राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मतदान नहीं किया था. नए राष्ट्रपति नवंबर 2024 तक गोटबाया राजपक्षे के शेष कार्यकाल की सेवा करेंगे. तब तक, प्रधान मंत्री रानिल विक्रमसिंघे अंतरिम राष्ट्रपति होंगे, हालांकि प्रदर्शनकारी चाहते हैं कि उन्हें इस पद से हटाया जाए.

शुक्रवार को कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद, विक्रमसिंघे ने कहा, "मैं संविधान की रक्षा करने के लिए बाध्य हूं," साथ ही जनता को आश्वस्त करने के लिए कदमों की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति की शक्तियों को कम किया जा रहा है. आर्थिक संकट से जूझ रहा श्रीलंका दिवालिया हो गया है. इस बीच हज़ारों की संख्या में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए और सरकार बदलने की एक स्वर में आवाज़ बुलंद की. हालांकि राजपक्षे सरकार के गिरने के बाद प्रदर्शनकारियों में खुशी है लेकिन देश का आर्थिक संकट अभी भी ख़त्म नहीं हुआ है.
इस बीच भारतीय हाई कमिशन के कमिश्नर ने श्रीलंकाई स्पीकर से मुलाक़ात की है और महत्वपूर्ण मोड़ पर लोकतंत्र और संवैधानिक ढांचे को बनाए रखने में संसद की भूमिका की सराहना की. कोलंबो स्थित भारतीय हाई कमिशन ने कहा कि भारत लोकतंत्र, स्थिरता और आर्थिक सुधार का समर्थन करता रहेगा.
श्रीलंका संकट की टाइमलाइन
प्रदर्शनकारियों ने 31 मार्च 2022 को देश की बिगड़ती आर्थिक स्थिति के विरोध में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के निजी आवास तक मार्च निकाला था. वहीं 3 अप्रैल को गोटाबाया ने कैबिनेट को भंग कर दिया, जिसमें उनके छोटे भाई बेसिल राजपक्षे को वित्त मंत्री के रूप में शामिल किया गया, लेकिन बड़े भाई महिंदा राजपक्षे प्रधान मंत्री बने रहे. 9 अप्रैल को राजनीतिक सुधारों का मार्ग प्रशस्त करने के लिए राष्ट्रपति को हटाने के उद्देश्य से गोटाबाया के कार्यालय के बाहर धरना प्रदर्शनों के साथ विरोध प्रदर्शन तेज हो गए. इसके बाद भी प्रदर्शनकारी सड़कों पर जमे रहे.
हालांकि दूसरी तरफ सरकार समर्थक प्रदर्शनकारी भी सड़क पर उतर आए जिनका सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों के साथ संघर्ष भी देखा गया, तब 9 मई को प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा. देशव्यापी हिंसा में 9 लोग मारे गए और लगभग 300 लोग घायल हो गए.
10 मई: रक्षा मंत्रालय ने देखते ही गोली मारने के आदेश जारी किए लेकिन प्रदर्शनकारी कर्फ्यू का उल्लंघन करते रहे.
27 जून: वित्तीय संकट गहराते ही आवश्यक सेवाओं को छोड़कर ईंधन की बिक्री निलंबित कर दी गई.
9 जुलाई: सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन पर धावा बोला, गोटबाया राजपक्षे घर से भाग गए. पीएम रानिल विक्रमसिंघे के घर में आग लगा दी गई. प्रदर्शनकारियों ने ऐलान किया कि वे दोनों प्रमुख सरकारी भवनों पर तब तक कब्जा करेंगे जब तक कि दोनों पद छोड़ नहीं देते.
9 जुलाई: राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने संसदीय अध्यक्ष को सूचित किया कि वो 13 जुलाई को पद छोड़ने की योजना बना रहे हैं. पीएम रानिल विक्रमसिंघे का कहना था कि वो भी इस्तीफा देने को तैयार हैं.
12 जुलाई: गोटबाया के भाई और पूर्व वित्त मंत्री बेसिल राजपक्षे ने देश छोड़ने की कोशिश की, लेकिन उन्हें रोक दिया गया.
13 जुलाई: गोटाबाया पत्नी और व्यक्तिगत सुरक्षा विवरण के साथ मालदीव के लिए श्रीलंका से भाग गया. प्रदर्शनकारियों ने आक्रोश में पीएम कार्यालय पर धावा बोल दिया और दोनों नेताओं के इस्तीफे की मांग की.
14 जुलाई: गोटाबाया सिंगापुर भाग गए और उन्होंने मेल के ज़रिए अपना इस्तीफा दिया.

15 जुलाई: अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्धने ने घोषणा की कि राजपक्षे का इस्तीफा आधिकारिक रूप से स्वीकार कर लिया और अगले सप्ताह नए राष्ट्रपति का चुनाव किया जाएगा. वहीं रानिल विक्रमसिंघे ने कार्यवाहक अध्यक्ष पद की शपथ ली.
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