नैतिक पतन : कोरोना महामारी में भी नहीं छोड़ रहे अमीर मुल्क गरीबों का हक मारना
ओमिक्रॉन स्वरूप के कारण दुनियाभर में जारी कोरोना महामारी की ताजा लहर में एक बार फिर अमीर देशों ने गरीब मुल्कों का हक मारकर सिर्फ अपनी स्वार्थपूर्ति की है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ओमिक्रॉन स्वरूप के कारण दुनियाभर में जारी कोरोना महामारी की ताजा लहर में एक बार फिर अमीर देशों ने गरीब मुल्कों का हक मारकर सिर्फ अपनी स्वार्थपूर्ति की है। नर्सों की अंतरराष्ट्रीय परिषद (आईसीएन) की रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्व में पीपीई और टीकों पर कब्जा जमाने वाले धनी देशों ने अब कमजोर मुल्कों के नर्सिंग स्टाफ की जमकर भर्तियां कर ली है ताकि अस्पतालों में उनके मरीजों की उचित देखभाल हो सके।
लेकिन इस स्थिति ने न सिर्फ गरीब देशों में नर्सों की भारी कमी पैदा कर दी है बल्कि वैश्विक स्तर पर एक नैतिक सवाल भी खड़ा किया है। जिनेवा स्थित परिषद के सीईओ होवर्ड कैटॉन का कहना है, ओमिक्रॉन स्वरूप से बढ़ते संक्रमण के बीच गरीब देशों में नर्सिंग कर्मचारियों की अनुपस्थिति महामारी के दो साल में अब तक सबसे ज्यादा दर्ज की गई है।
अमीर देशों ने अस्पतालों में बढ़ते मरीजों को देखते हुए सैन्य कर्मियों, स्वयंसेवकों की सहायता तो ली ही है लेकिन वैश्विक स्तर पर नर्सों की भर्तियां भी की हैं। कोरोना और ग्लोबल नर्सिंग फोर्स पर रिपोर्ट के सह लेखक कैटॉन ने कहा कि ब्रिटेन, जर्मनी, कनाडा और अमेरिका जैसे देशों द्वारा नर्सिंग स्टाफ की अंतरराष्ट्रीय भर्तियों में जबरदस्त उछाल आया है।
इस स्थिति ने उनके द्वारा पहले की लहरों में पीपीई किटों और टीकों की जमकर खरीदारी और जमाखोरी की यादें ताजा कर दी हैं, जिनका गरीब मुल्क अब तक खामियाजा भुगत रहे हैं। वहीं, अब बड़ी तादाद में कमजोर देशों की नर्सों को अच्छे वेतन और घर का लालच देकर नियुक्त कर लेने से उन पर एक और संकट आ खड़ा हुआ है।
गरीब देशों में 90 फीसदी कमी
आईसीएन के डाटा के मुताबिक, महामारी शुरू होने से पहले वैश्विक स्तर पर 60 लाख नर्सों की कमी थी और इनमें से 90 फीसदी पद निम्न व मध्यम आय वाले देशों में खाली थे। हाल ही में हुई कुछ भर्तियां नाइजीरिया और कैरेबियाई हिस्सों समेत उप-सहारा देशों से की गई हैं।