ग्लासगो में भारत का डंका, कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता में डेडलाइन से पहले ही कर दी कम

हां चल रही जलवायु वार्ता के दौरान भारत ने कार्बन उत्सर्जन को लेकर अपनी द्विवार्षिक रिपोर्ट पेश की है।

Update: 2021-11-08 02:38 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हां चल रही जलवायु वार्ता के दौरान भारत ने कार्बन उत्सर्जन को लेकर अपनी द्विवार्षिक रिपोर्ट पेश की है। इसमें कहा है कि 2005-2014 के बीच उसने उत्सर्जन तीव्रता को 24 फीसदी तक कम करने में सफलता हासिल की है। भारत का यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में विश्व की 17 फीसदी आबादी रहती है और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में उसकी हिस्सेदारी महज पांच फीसदी की है। इसके बावजूद वह तेजी से लक्ष्यों को हासिल करने की ओर बढ़ रहा है।

यहां एक कार्यक्रम में भारत की तरफ से यह रिपोर्ट पेश की गई और उसके बाद पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जे. आर. भट्ट ने कहा कि 2005-14 के बीच भारत ने अपने सकल घरेलू उत्पादन के हवाले से उत्सर्जन सघनता में 24 फीसदी की कटौती की उपलब्धि हासिल की है। इतना ही नहीं भारत ने अपने सौर ऊर्जा कार्यक्रम में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी की है। स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में पिछले सात सालों में 17 गुना की बढ़ोत्तरी हुई है। यह दर्शाता है कि भारत पेरिस समझौते के तहत किए गए अपने लक्ष्यों पर सही दिशा में कार्य कर रहा है।
इसमें उसने 2030 तक ऊर्जा सघनता को 33-35 फीसदी कम करने की घोषणा की थी। हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लास्गो जलवायु वार्ता के दौरान इस लक्ष्य को बढ़ाकर 50 फीसदी करने का ऐलान किया है। यह रिपोर्ट दर्शाती है कि इस लक्ष्य को भारत तय समय में हासिल कर लेगा। क्योंकि 2015 के बाद जलवायु से जुड़े कार्यों में भारत ने पहले की तुलना में कई गुना की तेजी दिखाई है। बता दें कि भारत ने इसी वर्ष फरवरी में इस रिपोर्ट को यूएनएफसीसी को भी सौंप दिया था।
भट्ट ने कहा कि भारत जलवायु खतरों को लेकर सर्वाधिक जोखिमपूर्ण स्थिति में होने के बावजूद इसे कम करने के प्रयासों में जुटा है। इसके लिए तमाम कार्रवाई कर रहा है। पूरी अर्थव्यवस्था को इसके दायरे में रखा गया है तथा आर्थिक प्रगति को ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन से अलग रखने का प्रयास किया जा रहा है। भारत के इस प्रस्तुतिकरण के दौरान ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, चीन, दक्षिण कोरिया, लक्जमबर्ग, चेक गणराज्य, स्विट्जरलैंड, सऊदी अरब और इंडोनिशिया ने कार्यशाला के दौरान सवाल भी पूछे। साथ ही इन देशों के प्रतिनिधियों ने भारत के प्रयासों की सराहना भी की।
सवालों में आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचा (सीडीआरआई) का जिक्र भी किया गया। जिसके जवाब में भट्ट ने कहा कि विकासशील देशों में जलवायु जोखिम बढ़ रहे हैं तथा सीडीआरआई अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाने का एक कदम है। आज इसकी सबसे ज्यादा जरुरत है। भट्ट ने कहा कि भारत में वन क्षेत्रफल बढ़ रहा है जिसमें जनसमुदाय ने महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई है।


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