स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय पैनल: विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले अलर्ट करता तो दुनिया में रुक सकती थी तबाही
महामारी की घोषणा 11 मार्च को की गई।
क्या हम कोरोना वायरस की महामारी को मौजूदा स्तर की तबाही मचाने से रोक सकते थे? क्या विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और विभिन्न देशों की सरकारें जागरूक होती तो लाखों लोगों का जीवन बचाया जा सकता था?
इनका जवाब हां में देते हुए महामारी से बचाव और तैयारी के लिए बने एक स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय पैनल ने बुधवार को अपनी रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर कोविड19 के प्रबंधन में हुई खामियों को बताते हुए नई पारदर्शी व्यवस्था लाने की सिफारिश की गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है, जानलेवा कोरोना वायरस और खराब तालमेल की वजह से चेतावनी के संकेत अनसुने कर दिए गए। विश्व स्वास्थ्य संगठन और पहले महामारी को लेकर अलर्ट कर सकता था। एक के बाद एक खराब निर्णयों की वजह से वायरस अब तक करीब 33 लाख लोगों की जान ले चुका है। साथ ही, वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी तबाह कर दिया है।
हर स्तर पर हुई देरी : सरलीफ
न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री हेलन क्लार्क और लाइबेरिया की पूर्व राष्ट्रपति व 2011 में नोबेल विजेता एलेन जॉनसन सरलीफ के अंतरराष्ट्रीय पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कई खामियों को रेखांकित किया है।
सरलीफ ने मीडिया को बताया कि दुनिया आज जिस स्थिति में है, उसे रोका जा सकता था। नाकामियों, इसके अंतराल, तैयारी और प्रतिक्रिया में देरी के कारण हम आज इस हालात में पहुंचे हैं। शुरुआती और तेजी से कार्रवाई तो की गई, लेकिन इसमें देरी ने नुकसान किया।
रिपोर्ट के जरिए सामने आई कुछ अहम खामियां इस प्रकार हैं
1- महामारी की घोषणा में देरी
क्योंकि 1 कोविड-19 को महामारी घोषित करने में काफी समय लगाया। 30 जनवरी तक चीन के हालात विकट हो चुके थे और विश्व के लिए खतरा बन चुके थे।महामारी की घोषणा 11 मार्च को की गई।