तालिबानी हुकूमत में महिला पत्रकारों पर बढ़े प्रतिबंध
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे और उनकी सरकार के गठन के बाद से महिला पत्रकारों के ऊपर प्रतिबंध लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे और उनकी सरकार के गठन के बाद से महिला पत्रकारों के ऊपर प्रतिबंध लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। कई सारी महिला पत्रकारों का कहना है कि तालिबान द्वारा उनपर कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं और ये लगातार बढ़ ही रहे हैं। इसकी वजह से अब उन्हें अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है। इन महिला पत्रकारों का आरोप है कि उन्हें तालिबान द्वारा की जाने वाली किसी भी प्रेस कांफ्रेंस में जाने की इजाजत नहीं होती है।
हालांकि, इसके उलट तालिबान सरकार के उप प्रवक्ता इनामुल्ला समंगनी का कहना है कि उनकी कोई भी मंशा महिला पत्रकारों पर अंकुश लगाने की नहीं है। इसको लेकर महिला पत्रकारों की तरफ से अब तक किसी भी तरह की कोई शिकायत भी सामने नहीं आई है कि उन्हें किसी तरह की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। वहीं दूसरी तरफ रविवार को कई सारी मीडिया आर्गेनाइजेशन और पत्रकारों ने महिला पत्रकारों के लिए किए जा रहे बर्ताव के खिलाफ अपनी आवाज उठाई। इन पत्रकारों का आरोप था कि अफगानिस्तान में प्रेस की आजादी को कुचला जा रहा है। कई तरह के प्रतिबंधों के चलते वो अपने काम को ईमानदारी के साथ नहीं कर पा रहे हैं।
पत्रकारों का ये भी कहना था कि उनकी समस्याएं हर रोज बढ़ती ही जा रही हैं। यदि ये आगे भी जारी रहीं तो एक बड़ी समस्या बन सकती हैं, खासतौर पर महिला पत्रकारों के लिए। बता दें कि दिसंबर 2021 में रिपोर्टर्स विदाउट बार्डर (आरएसएफ) और अफगानिस्तान इंडिपेंडेंट जर्नलिस्ट एसोसिएशन (एआईजेए) ने मिलकर एक सर्वे किया था जिसमें ये जानकारी सामने आई थी कि देश के करीब 40 फीसद मीडिया आउटलेट तालिबान के सत्ता में आने के बाद से बंद हो चुके हैं। अफगानिस्तान की महिला पत्रकार और मानवाधिकार समूह लगातार देश के हालातों पर अपनी चिंता भी जता चुके हैं और विरोध प्रदर्शन भी कर चुके हैं।
आपको यहां पर बता दें कि 15 अगस्त 2021 को तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। इसके एक माह के बाद वहां पर तालिबान ने अपनी अंतरिम सरकार का गठन किया था। तालिबान के कब्जे के बाद से ही महिलाओं के साथ लगातार दुर्व्यव्हार किया जा रहा है। कई तरह के प्रतिबंधों के खिलाफ कई बार ये महिला पत्रकार सड़कों पर भी उतर चुकी हैं। विश्व समुदाय भी इनको लेकर लगातार अपनी चिंता जाहिर कर चुका है।