रूस की टाइफून क्लास से भी बड़ी है चीन की यह पनडुब्बी
टाइफून क्लास की पनडुब्बियां दशकों तक रूसी नौसैनिक बेड़े की शान रही हैं। शीतयुद्ध के जमाने में रूस ने इसे अमेरिका को राजनीतिक संदेश और सैन्य ताकत को बढ़ाने के लिए बनाया था। नौसेना के मामलों पर करीबी नजर रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि बड़ी पनडुब्बियां ज्यादा स्टील्थ तकनीकी से लैस होती हैं। उन्हें गहरे पानी में खोजना अधिक मुश्किल काम होता है। ज्यादा बड़ी होने के कारण ये पनडुब्बियां समुद्र में महीनों तक पानी के नीचे छिपी हुई रहती हैं, जिससे सतह पर मंडरा रहे दुश्मन नहीं देख पाते हैं। आकार में बड़ी होने के कारण इन पनडुब्बियों में ज्यादा नौसैनिक, हथियार और प्रणालियां लगाई जा सकती हैं। रूस इन्हीं पनडुब्बियों के बल पर समुद्र में अमेरिका पर हमेशा से हावी रहा है। लेकिन, टाइफून का समय अब खत्म हो चुका है क्योंकि चीन ने टाइप-100 नाम से इससे भी बड़ी पनडुब्बी का निर्माण कर लिया है। इस पनडुब्बी को चीन के हुलुडाओ में बोहाई शिपयार्ड में बनाया गया है। इस पनडुब्बी को सन त्जु क्लास की पनडुब्बी भी कहा जाता है।
टाइप-100 नाम रखने के पीछे है एक कहानी
दुनिया की सबसे बड़ी इस पनडुब्बी का टाइप-100 क्लास नाम रखने के पीछे भी एक कहानी छिपी हुई है। इस साल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को सत्ता संभालते हुए 100 साल पूरे हो रहे हैं। यही कारण है कि आकार और पार्टी की 100वीं वर्षगांठ के कारण इसे टाइप-100 का नाम दिया गया है। यह पनडुब्बी लगभग 210 मीटर लंबी और 30 मीटर चौड़ी है। जबकि, रूस की टाइफून क्लास की पनडुब्बी 175 मीटर लंबी और 23 मीटर चौड़ी है। हालांकि अभी तक इसकी जानकारी नहीं है कि यह पनडुब्बी समुद्र में कितने टन का विस्थापन कर सकती है, फिर भी यह तो निश्चित ही है कि यह आंकड़ा टाइफून क्लास के 48,000 टन से ज्यादा ही होगा। बताया जा रहा है कि चीन की यह पनडुब्बी अमेरिका की सबसे खतरनाक मानी जाने वाली ओहियो क्लास की पनडुब्बी से तीन से चार गुना ज्यादा बड़ी है। ओहियो क्लास की पनडुब्बियां 24 बैलिस्टिक मिसाइलों को लेकर जा सकती हैं तो चीन की यह पनडुब्बी अपने साथ 48 बैलिस्टिक मिसाइलों को लेकर जा सकती है।
खतरनाक हथियारों से लैस है चीन की यह पनडुब्बी
चीन की टाइप-100 क्लास की पनडुब्बी 48 की संख्या में बैलिस्टिक मिसाइलों से लैस है। जिनमें से 8 तो इंटरकॉन्टिनेंटल रेंज तक (एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक) मार करने में सक्षम हैं। इस पनडुब्बी में हाइड्रोसोनिक टॉरपीडो लगे हुए हैं। ये हथियार रूसी नौसेना के पोसिडॉन हथियार के समान हैं। इनमें एक प्रभावी रूप से असीमित रेंज है और वर्तमान हथियारों से मुकाबला करना बहुत कठिन होगा। इस टॉरपीडो के जरिए रूसी नौसेना खुफिया जानकारी जुटाती है। यह एक अनमैंड अंडरवॉटर व्हीकल है, जो दुश्मन के इलाके में घुसकर खुफिया जानकारी इकट्ठा कर सकता है। पोसिडॉन को स्टेटस-6 ओशेनिक मल्टीपरपज सिस्टम के नाम से भी जाना जाता है। यह अंडरवॉटर ड्रोन दुश्मनों के ठिकानों पर परंपरागत और परमाणु मिसाइलों के साथ हमला करने में भी सक्षम है।
कितनी ताकतवर है रूस की टाइफून क्लास पनडुब्बी
दुनिया में सबसे विशाल पनडुब्बी रूस की नौसेना के पास है-टाइफून क्लास (Typhoon Class)। पश्चिम के एक्सपर्ट्स भी इसे इंजिनयरिंग का बेहतरीन नमूना मानते हैं। अगर यह बैलिस्टिक मिसाइलों से पूरी तरह लैस है तो यह पनडुब्बी किसी भी देश को उड़ाने की ताकत रखती है। हालांकि, अगर इसमें सिर्फ एक मिसाइल है तो यह किसी टेस्ट वीइकल जैसी है। दरअसल, इसे लेकर स्थिति साफ नहीं है कि इस पर कितनी न्यूक्लियर पावर है। इस बारे में भी जानकारी नहीं है कि रूस के पास मौजूदा वक्त में आखिर कितनी बैलिस्टिक मिसाइलें ऑपरेशनल हैं। Typhoon Class पर पहले R-39 (Rif) इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें तैनात रहती थीं। ये SS-N-20 Sturgeon मिसाइलें 53 फीट लंबी और 8 फीट चौड़ी थीं। ये मिसाइलें इतनी विशाल थीं कि इन्हें ले जाने के लिए बनाई गई पनडुब्बी भी दुनिया में सबसे विशाल चाहिए थी। R-39 मिसाइलों में रॉकेट मोटर के प्रॉपलेंट में लिक्विड की जगह सॉलिड ब्लॉक का इस्तेमाल किया जाता था जो कुछ समय बाद बेकार हो जाता है। करीब 20 साल पहले Typhoons की मिसाइलें एक्सपायर हो गईं और कोल्ड वॉर खत्म होने के साथ रूस ने तय किया कि मोटर बदलने पर वह लाखों रुपये खर्च नहीं करेगा। तभी R-39M मिसाइल का बेहतर वर्जन लाने का प्लान छोड़ दिया गया और Typhoons का काम भी खत्म हो गया। अब सिर्फ Dmitry Donsky बची है।
अमेरिका की यूएसएस ओहियो पनडुब्बी भी किसी से कम नहीं
परमाणु शक्ति से चलने वाली गाइडेड मिसाइल सबमरीन यूएसएस ओहियो आकार और प्रहार दोनों के मामले में दुनिया के शीर्ष हथियारों में से एक है। लंदन के रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञ सिद्धार्थ कौशल के अनुसार, अमेरिका की ओहियो क्लास की पनडुब्बी दुश्मन के क्षेत्र में अंदर तक घुसपैठ कर सैनिकों और मिसाइलों से हमला कर सकती है। अमेरिका के ओहियो क्लास की पनडुब्बियों में यूएसएस ओहियो के अलावा यूएसएस मिशिगन, यूएसएस फ्लोरिडा और यूएसएस जॉर्जिया शामिल हैं। ये सभी पनडुब्बियां घातक एंटी शिप मिसाइलों से लैस हैं और इनमें दुश्मन की पनडुब्बियों से बचाव करने की भी सबसे आधुनिक तकनीकी लगी हुई है। इस पनडुब्बी में पहले परमाणु मिसाइलों को भी लगाया गया था, लेकिन बाद में उन्हें हटाकर दूसरी इंटरकॉन्टिनेंटर बैलिस्टिक मिसाइलों को लगाया गया है। ओहियो को ताकत देने के लिए एक परमाणु रिएक्टर को लगाया गया है, जो इसके दो टर्बाइनों के लिए ऊर्जा प्रदान करता है। आकार में बड़ी होने के कारण यूएसएस ओहियो में 154 टॉमहॉक क्रूज मिसाइलें तैनात होती हैं। यह क्षमता अमेरिका के गाइडेड मिसाइल डिस्ट्रॉयर में तैनात मिसाइलों की दोगुनी है। हर एक टॉमहॉक मिसाइल अपने साथ 1000 किलोग्राम तक के हाई एक्सप्लोसिव वॉरहेड को लेकर जाने में सक्षम है। अमेरिकी सेना में 1983 से तैनात यह मिसाइल सीरिया, लीबिया, ईराक और अफगानिस्तान में अपनी ताकत दिखा चुकी है।