बिहार में क्यों छेड़ दिया एक बार फिर नीतीश कुमार ने विशेष राज्य के दर्जे का मुद्दा, भाजपा से बढ़ेगी दूरी

बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग सीएम नीतीश कुमार लंबे समय से करते रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ वक्त से वह इसे लेकर शांत थे।

Update: 2021-12-15 06:03 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग सीएम नीतीश कुमार लंबे समय से करते रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ वक्त से वह इसे लेकर शांत थे। अब एक बार फिर से उन्होंने इस मुद्दे को उठाया है और कहा कि यह बिहार की जरूरत है। राज्य की डिप्टी सीएम और बिहार की नेता रेनू देवी ने शनिवार को ही कहा था कि विशेष राज्य का दर्जा मांगने का कोई अर्थ नहीं है और इस दावे को लेकर कोई विस्तृत जानकारी भी नहीं है। उनके इस बयान पर नीतीश कुमार ने बिना नाम लिए ही निशाना साधा है। नीतीश कुमार ने कहा कि यदि राज्य में कोई स्पेशल स्टेटस की डिमांड का विरोध करता है तो संभव है कि उसे मुद्दे की जानकारी ही न हो।

नीतीश कुमार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग 2007 से ही उठाते रहे हैं। आमतौर पर चुनाव से पहले यह मांग और तेज हो जाती है। आइए जानते हैं, एक बार फिर से क्यों उठने लगा है यह मुद्दा...
दर्जा मिला तो केंद्र से मिलेगी 90 फीसदी फंडिंग
यदि बिहार को केंद्र सरकार विशेष राज्य का दर्जा देती है तो फिर केंद्रीय योजनाओं की फंडिंग में उसकी हिस्सेदारी 90 फीसदी की होगी, जबकि राज्य सरकार को 10 पर्सेंट खर्च ही उठाना होगा। पहाड़ी राज्यों और पूर्वोत्तर के राज्यों को यह दर्जा प्राप्त है, लेकिन अन्य किसी मैदानी राज्य को ऐसा कोई स्टेटस नहीं मिला है। गैर विशेष राज्यों में चलने वाली केंद्रीय स्कीमों की फंडिंग में केंद्र और राज्य सरकार के खर्च का अनुपात 60:40 या फिर 80:20 रहता है। संविधान में किसी भी राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने का प्रावधान नहीं है, लेकिन दुर्गम पहाड़ी राज्यों, ऐतिहासिक कारणों, अधिक आदिवासी आबादी अथवा कम जनसंख्या, रणनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण, आर्थिक और ढांचागत पिछड़ापन जैसे कारणों के आधार पर यह स्टेटस दिया जाता रहा है।
बिहार के अलावा ये राज्य भी उठाते रहे हैं मांग
फिलहाल पूर्वोत्तर के 8 राज्यों के अलावा उत्तर भारत में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखं.ड को ही यह दर्जा प्राप्त है। ये सभी राज्य सीमांत इलाके हैं और पहाड़ी हैं। 1969 में योजना आयोग की सिफारिश पर इन राज्यों को यह दर्जा मिला था। अब इसकी जगह नीति आयोग ने ले ली है। बिहार, ओडिशा और झारखंड जैसे राज्य पिछड़ेपन के आधार पर विशेष राज्य के दर्जे की मांग करते रहे हैं। आंध्र प्रदेश के पुनर्गठन के दौरान कांग्रेस सरकार ने उसे विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की बात कही थी। इसके चलते वह भी अकसर ऐसी मांग करता रहा है, लेकिन मोदी सरकार में इस पर कोई विचार नहीं हुआ है।
नीति आयोग की रिपोर्ट से फिर तेज हुई मांग
हाल ही में नीति आयोग की एक रिपोर्ट आई है, जिसमें बिहार को मानव विकास सूचकांक और ग्रोथ रेट के मामले में निचले पायदान पर रखा गया है। इस पर नीतीश कुमार का कहना है कि राज्य के पास सीमित संसाधन हैं। ऐसे में उन्होंने एक बार फिर से विशेष राज्य के दर्जे की मांग उठा दी है। प्रतिव्यक्ति आय में भी बिहार काफी पीछे है। देश भर में यह 1,34,432 है, जबकि बिहार में 50,735 ही है। रिपोर्ट के मुताबिक बिहार की आधी से ज्यादा आबादी यानी 51.91 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। स्कूल ड्रॉपआउट, कुपोषण, मातृत्व पोषण जैसे मानकों में भी बिहार काफी पीछे है।
भाजपा पर दबाव बढ़ाने की रणनीति में नीतीश कुमार
भाजपा को दबाव में रखने के लिए अकसर नीतीश कुमार विशेष राज्य के दर्जे की मांग उठाते रहे हैं। भले ही भाजपा राज्य में सीनियर पार्टनर है, लेकिन अब तक वह नीतीश के ही पीछे चलती रही है। भाजपा की ओर से तारकिशोर प्रसाद और रेनू देवी को डिप्टी सीएम बनाया गया है, लेकिन वह अब तक कोई मांग करते नहीं दिखे हैं। नीतीश कुमार जानते हैं कि भले ही भाजपा राज्य में मजबूत होकर उभरी है, लेकिन अब भी वह चुनावी समर में अकेले उतरने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में वह गठबंधन में अपनी बढ़त को खोना नहीं चाहते।
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